रिक्शा वाला

 


रिक्शा वाला


. ( प्रस्तुत रचना पूर्णतः काल्पनिक है और किसी भी व्यक्ति विशेष व स्थान से इसका किंचित भी सम्बन्ध नहीं है .....)
......................................

रात भर पन्नी तान कर बारिश से बचने के प्रयास मे वो बेचारा भीग गया था । पछुआ के प्रभाव से ठंड बढ़ गयी थी । यद्यपि महीना मार्च का मध्य था .... फिर भी कहते हैं न ... माघ जाड़ न पूस जाड़ , जब चले बयार तब लगे जाड़ ।
.....................................

मिस्टर डी.के. मजूमदार की बीवी ... रोज सुबह सोलह श्रृंगार करके सैर को जाती थी सेन्ट्रल पार्क में । सुबह की सैर में सोलह श्रृंगार की आवश्यकता को शायद वो हमसे आपसे ज्यादा समझती थी !
खैर ... जाती तो वो पैदल थी क्योंकि घूमने का मकसद तो स्वास्थ्य लाभ ही था लेकिन लौटती किसी साधन से ही थी ....
.....................................
संयोग ही था कि उस भीगे रिक्शेवाले ने अभी अभी रिक्शा निकाला था ... उसे चाय की तलब लगी थी और कल शाम को अपने सारे पैसे वो देसी दारू में डुबो चुका था । अब इस हालत में वो रिक्शा न निकालता तो चाय कहाँ से पीता ?

मिसेज मजूमदार बड़ी बेसब्री से घर लौटने के लिए किसी साधन की प्रतीक्षा कर रही थीं और वो उन्हे दिख गया ..

ए रिक्शा ... वो जोर से चिल्लायीं ... उनकी आवाज ऐसी थी जैसे कान में सुई घुस जाय ।

जी मालकिन .... वो बोला ।

चलो ... कह कर वो रिक्शा में बैठ गयीं ।

कहाँ जाएंगी मालकिन ? ... वो बोला ।

तुम चलो मै रास्ता बताती हूं ... वे बोलीं ।

दो ढाई किलोमीटर चलने के बाद मिसेज मजूमदार ने रिक्शा रुकवाया ....
हाथ रिक्शे वाले अक्सर गरीब होते ही हैं और लाचारी उनके चेहरे पर साफ दिखती भी है .... फिर भी वो अपने रिक्शे को इतना टिपटॉप रखता था कि मिसेज मजूमदार का सोलह श्रृंगार भी फीका पड़ जाय । फर्क ये था कि मिस्टर मजूमदार अपनी बीवी के ब्यूटीपार्लर खर्च से दुखी होते थे और वो रिक्शेवाला अपने रिक्शे का मेकअप करके खुश होता था ।

कितने पैसे ? ... मिसेज मजूमदार बोलीं ।

बीस ... वो बोला ।

बाहरी समझ रखा है ? ... रोज आती जाती हूं ... लूटने के लिए सुबह सुबह मै ही मिली थी ? ... वो तीखे स्वर में बोलीं ।

हम क्या लूटेंगे मेमसाब ... बीस ही होते हैं .... वो लाचारी से बोला ।

घृणा से मुँह बिचकाती मिसेज मजूमदार ने अपने ब्लाउज में हाँथ डाल कर दस का नोट निकाल कर उसकी हथेली पर रखा और .... चली गयीं ।
.........................................

पानी की टंकी के पास ... चाय के ठेले पर उसने रिक्शा खड़ा किया और चाय वाले को दस रूपये पकड़ा दिये । चाय चुसकता वो बेचारा शून्य में देखने लगा ....
और उसी समय ... उसका फोन बजा ।

कमर में ठीक से खोंस कर पन्नी से लिपटे अपने टेबलेट के आकार के स्मार्ट फोन को निकाल कर उसने कान से लगाया ....

हाँ रज्जो ... वो बोला ।

कैसे हो ? ... आवाज आई ।

बिल्कुल फिट और टिपटॉप ... अपने रिक्शे की तरह ... वो बोला ।

कई दिन से तुम मिले नहीं ... रज्जो बोली ।

आज मिलूँ जानेमन ? .... वो बोला ।

वो सब बाद में ... तू एक काम कर ...मै रमेश को तेरे अड्डे पर भेजती हूँ ... उसे तू कहीं से भी एक हजार का इंतजाम करके दे ... अर्जेंट है ... बारह बजे के आसपास वो अड्डे पर होगा ... इतना कह कर रज्जो ने फोन काट दिया ।

रज्जो एक तरह से उसकी गर्लफ्रेंड थी ... जवान और खूबसूरत थी लेकिन उसका पति एक नंबर का कमीना और चरसी था ... जिससे रज्जो कभी संतुष्ट न होती थी ।
रमेश उसका छह साल का बेटा था जिसकी शक्ल काफी हद तक उस रिक्शेवाले से मिलती थी ।

वो परेशान हो गया ... एक हजार !! कहाँ से लाऊँ ? इस समय तो उसने दस रूपए कमाए थे जिसकी वो चाय पी चुका था । दोपहर का खाना कैसे मिलेगा ? .. ये तक वो नहीं जानता था ।

वो हाँथ में पकड़े स्मार्टफोन को देखते हुए बड़बड़ाया ... लगता है आज ये भी हाँथ से गया ।

ऐसी ही किसी परिस्थिति में उसके एक संगी साथी ने दो महीने पहले मात्र दो हजार में उसे ये स्मार्टफोन बेचा था और जिसके लिए उसने रज्जो से रूपये मांगे थे और उसने तुरत-फुरत दिये भी थे ।

उसे दुःख केवल इस बात का था कि वो अभी एक आध घंटे में फोन के बदले रूपये तो पा जायेगा लेकिन फिर अपनी जानेमन से बात कैसे करेगा ? ... जो महीने में एक आध बार ही मिलती है ! और जिसकी याद में वो रात रात भर पोर्न फिल्में देखता है !!

खैर मजबूरी थी ... वो आखिर करता भी क्या ?
थके कदमों से उसने अपने टिपटॉप रिक्शे का हैंडल थामा तभी उसकी नजर रिक्शे की चमकती गद्दी पर पड़ी .....
जहाँ एक कीमती लेडीज पर्स पड़ा था ...!!

मिसेज मजूमदार ने अपने ब्लाउज में हाँथ डालने की कोशिश में पर्स गद्दी पर रखा और भूल गयीं ..!!!

उसकी आँखे चमक उठीं ...
दिल धड़क उठा ...
और वो ताबड़तोड़ रिक्शा चलाता एक सुनसान गली में घुस गया । वो गली हमेशा सुनसान रहती थी जो आजू बाजू बने मकानों का पिछवाड़ा थी ।

उसने पर्स खोला ....
उसकी आंखे चौंधिया गयीं । उसमे लगभग पांच हजार से ज्यादा रूपए और कागज़ात थे और था मेकअप का ब्रांडेड सामान जिनकी कीमत उस स्मार्टफोन से कहीं ज्यादा थी जो उसके हाँथ में था ।

उसका दिल बल्लियों उछलने लगा ... उसने फ़ौरन रिक्शे की सीट उठाई और पर्स अंदर रखा ।

वो सीधा सुलभ शौचालय पहुंचा और दैनिक क्रियाओ से निवृत्त हुआ ... नहा धो कर उसने अपने रिक्शे के हैंडल पर लगी स्टाइलिश डोलची से कपड़े निकाले ... पहने और सीसे मे अपना थोबड़ा देख सकपकाया ... दाढ़ी नहीं बनी है ।
कोई नहीं ... सिर झटक कर वो बड़बड़ाया ।

वो सुलभ काम्प्लेक्स उसके लिए हमेशा सुलभ ही रहता था क्योंकि उसका संचालक उसके गांव का ही था । इतना तो वो लिहाज करता ही था कि वो अपने मुलुक के आदमी से टट्टी करने के पैसे न लेता ।

सीटी बजाता वो रिक्शे पर बैठा और सीधा हनुमान मंदिर पहुंचा । अब हनुमान मंदिर का पुजारी तो उसके मुलुक का था नहीं जो बिना दक्षिणा  उसे मनचाहा प्रसाद देता और गर्भ गृह में दर्शन करने देता ...
सो उसने बाहर से ही माथा टेका और रज्जो को समय से पहले ही इंतजाम हो जाने की सूचना देनी चाही ...

इस कोशिश में उसने स्मार्टफोन हाँथ में लिया ही था कि उसे अपनी मां की नसीहत याद आ गयी ।
पांच साल पहले मरते समय उसकी मां ने उससे वचन लिया था ....." बेटा ! तू बाहरगांव रहता है । जहाँ अच्छे बुरे सभी तुझसे मिलेंगे । तू मुझसे वादा कर ... मेहनत की कमाई ही खायेगा ... चोरी चकारी और बेईमानी हरगिज नहीं करेगा ... ईमानदारी से मेहनत करेगा ।
और ... उसने अपनी मरती हुई मां की इस अन्तिम बात को गाँठ बाँध लिया था ।

उसका दिल हाहाकार कर उठा ...
अभी तक खुशियों के जिस उड़ानखटोले पर वो उड़ रहा था ... वो धड़ाम से जमीन पर आ गिरा ।

वो कन्फ्यूज हो गया ...
और वहीं मंदिर की सीढ़ियों पर बैठ गया और  हनुमान जी से बोला .... " अब तुम्ही बताओ बजरंगबली ! मै क्या करूँ ? "
उसके अंदर से आवाज आयी ... " तूने अपनी मरती हुई माँ को वचन दिया है और माँ को दिया वचन तोड़ना महापाप है  ... दारू पीने से भी बड़ा पाप ! "

उसके चेहरे पर दृढ़ता के भाव आये । एकान्त में पहुँच कर उसने उस पर्स की अच्छी तरह तलाशी ली तो उसे मिसेज मजूमदार का कार्ड मिल गया .... जिस पर उनका फोन नम्बर लिखा था !
जोड़ तोड़ कर वो इतनी अंग्रेजी वो पढ़ ही लेता था कि कार्ड पर लिखा नाम पढ़ सके ।
उसने फ़ौरन कॉल लगाई ...

हैलो ... एक कर्कश आवाज आई ।

आप उषा मजूमदार बोल रही हैँ ... वो बोला ।

हाँ ... आवाज आई ... आप कौन ?

मेमसाब .. आपका पर्स मेरे रिक्शे में छूट गया । आ कर ले जाइये ..... वो बोला ।

क ..क्या ... थैंक्स यू ... थैंक्स यू वेरी मच ... कहाँ हो तुम ? .... पता नहीं कैसे वो कौवे जैसी आवाज कोयल की कूक में बदल गयी !!

हनुमान मंदिर पर ... जल्दी पहुंचिये ... वो बोला ।

.......................................

दस मिनट में एक लक्जरी कार हनुमान मंदिर पहुंची ...

लुटी पिटी सी मिसेज मजूमदार कार से उतरीं । उनका सोलह श्रृंगार इस समय गायब था । वे बद हवास चारो तरफ देखने लगीं और उन्हे रिक्शा दिखा ... जो सैकड़ो रिक्शों के बीच भी खड़ा हो तो लगता कौवों के बीच हंस खड़ा हो !

वो लगभग भागती हुई रिक्शे तक पहुंची ....

ये लीजिये मेमसाब ..आपका पर्स ... वो बोला ।

कृतज्ञ भाव से उन्होंने रिक्शेवाले वाले को देखा तो वो बोला ... देख लीजिये मेमसाब ... सारा सामान है या कुछ गायब हुआ है ?

सिर हिलाते हुए मैडम ने पर्स खोला और रूपये निकाल कर रिक्शे की गद्दी पर रख दिये । उनका सारा ध्यान कागज़ों को खंगालने में लगा था .... अंततः उन्हे वो कागज़ दिख गया जिस में शायद उनकी जान बसी थी ।

उन्होंने पुनः कृतज्ञ भाव से रिक्शेवाले को देखा और मुस्कुरा कर शहद चुआती वाणी में बोलीं .... तुम नहीं जानते ... तुमने मेरे लिए क्या किया है ... सुबह बीस के बजाय दस देकर मै खुद को स्मार्ट समझ रही थी ... लेकिन तुम ... और वे चुप हो गयीं ।

उन्होनो पर्स में रखे रूपयों में से एक हजार उसे देते हुए कहा .... ये रख लो ।

क्यों मेमसाब ? ... वो बोला ।

इसे इनाम मत समझो ... अपनी खुशी से दे रही हूँ ... तुमने मेरे लाखों बचा लिए ...ये पर्स वापस करके ... देखो न मत करना ... प्लीज़ ले लो ..... मिसेज मजूमदार लरजते स्वर में बोलीं ।

उसे लगा कि अगर उसने रूपये नहीं लिए तो मेमसाब अभी रोने लगेंगी ।

रूपये देकर मिसेज मजूमदार अपनी कार तक पहुंची ..
डोर खोल कर उसकी ओर देखते हुए हाँथ हिलाया ।

अचानक ... वो जोर से चिल्लाया ... मेमसाब ... रुकिए एक मिनट ... और भागता हुआ वो मैडम के पास पहुंचा और बोला ...इक्कीस रूपये और दे दीजिये मेमसाब ... प्रसाद चढ़ाऊंगा ।
मुस्कुराते हुए मेमसाब ने उसे सौ का नोट दिया और चली गयीं ।

हनुमान जी को इक्कीस रूपये का प्रसाद और तुलसी गेंदे की माला चढ़ा कर उसने धन्यवाद दिया ... आज हनुमान जी ने उसे महापाप से बचा जो लिया था ।

फोन कान से लगा कर वो किलकते हुए बोला ... इंतजाम हो गया जानेमन , भेज देना रमेश को ।

रिक्शा चलाता वो रिक्शेवालो के पसंदीदा ढाबे पर पहुंचा उसके हाँथ में अभी रूपये शेष थे । उसे जोर की भूख लगी थी । उसने तय किया कि वो आज पेशल खाना खायेगा ।

समाप्त
© अरुण त्रिपाठी ' हैप्पी अरुण '


Comments