वृंदा : एक अज़ीब दास्तान (भाग -1)


(प्रस्तुत कहानी एक कल्पना मात्र है . किसी भी स्थान , व्यक्ति या वस्तु से इसका किंचित मात्र भी सम्बन्ध नहीं है )
.........कॉलेज में ' वृंदा ' का पहला दिन था .अब स्कूली जीवन एक कहानी हो गया था . अब न कोई ड्रेस कोड था और न ही होमवर्क का दबाव . बालिग होते ही जैसे उसकी दुनिया ही बदल गई .अचानक ही उसके प्रति पूरी दुनिया का नजरिया ही बदल गया . बात बात पर डांट पिलाने वाली 
' मम्मी ' भी अब ऐसा व्यवहार करने लगी मानो वह उनकी बेटी न होकर कोई और हो . अचानक ही उसके प्रति दुनिया और अपनों में आये इस बदलाव से वह दुःखी थी .
वह चाहती ....मम्मी पापा पहले की तरह उसे छोटी छोटी गलतियों के लिए डांटे फटकारें . अभी कल ही उसने जानबूझ कर पापा की कार की चाबी खो दी . मम्मी के सामने ही पापा ने चाबी उसे रखने के लिए दी थी ...जब वे कार लॉक कर किसी काम से घर के बाहर ही रुक गए थे .और सुबह तैयार हो कर उन्होंने चाबी मांगी तो उसने ढिठाई से कहा ....मुझे नहीं मालूम !! पापा ने एक नज़र मम्मी को देखा और चुपचाप बाहर चले गए और टैक्सी लेकर चले गए . मम्मी नें भी कुछ नहीं कहा .
उसने चुपचाप चाबी ले जाकर मम्मी को दी और उनसे लिपट कर बोली ....मम्मी डाटो न प्लीज !
बिटिया अब तू बड़ी हो गई है ...अपना भला बुरा समझने लगी है ....अब डाटना फटकारना ठीक नहीं . वो अपने दोनों हथेलिओं में माँ का चेहरा समेट कर बोली .....मैं बड़ी होना नहीं चाहती . तुम मेरे साथ पहले की तरह ही व्यवहार करो . मैं ये बदलाव बर्दास्त नहीं कर सकती और वह रोने लगी .
वह " वृंदा " जो हल्की सी डांट फटकार मिलने पर दो दिन तक मुँह फुलाए रहती थी और रोना धोना शुरू कर देती थी ...अब इसलिए रो रही थी कि उसे कोई डांटता क्यों नहीं .
आज युनिवर्सिटी कैम्पस में उसका पहला दिन था ..जो नए नए फैशनेबल कपड़े उसने अब तक विशाल शो रूम्स और मॉल्स में देखे थे ....उसके सामने खेलते कूदते , हॅसते मुस्कुराते , टहलते और बात करते दिखाई दे रहे थे .
अजनबी जगह पर अपने में सिमटी सिकुड़ी "वृंदा" ...चुपचाप जाकर अपनी क्लास में बैठ गई 
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कॉलेज में नव आगंतुक छात्रों के साथ जान पहचान के बहाने " रैगिंग " अपने पूरे शबाब पर थी और ऐसा लगता था जैसे कॉलेज कैम्पस में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज ही न हो .यूनिवर्सिटी प्रशासन नें भी " रैगिंग " को एक परंपरा मान लिया था .
" वृंदा " अपने माता पिता की इकलौती बेटी थी .
लाड प्यार में पाली ....अभावग्रस्तता का उसे किंचित भी अनुभव नहीं था .होनहार होने के कारण स्कूल में भी उसे कभी भी किसी भी प्रकार के दंड का भागी न होना पड़ा .
सुबह सुबह वो " मोतीझील " दौड़ने जाती और वहाँ सुबह के समय ' कराटे और ताईक्वांडो ' का प्रशिक्षण लेती . कम उम्र में ही वो ब्लैकबेल्ट चैम्पियनशिप में भाग ले चुकी थी . वह चैम्पियन तो न हो सकी लेकिन इस विधा में काफी कुछ पारंगत तो हो ही गई थी .
वह चुपचाप क्लास में सिर झुकाए बैठी न जाने किस सोच में गुम थी कि तभी कुछ ' सीनियर्स ' छात्रों का गैंग ....क्लास में घुस आया . उनके आते ही उनके सम्मान में .....क्लास में बैठे सभी नवागंतुक (फ्रेशनर्स ) अपने स्थान से खड़े हो गए 
" वृंदा " इस तरह अपनी सोच में गुम थी कि उसे पता ही नहीं चला कि अगल बगल क्या हो रहा है 
उस तीस साला सीनियर्स छात्रों के गैंग लीडर को " वृंदा " का इस तरह बैठा रहना ...अपनी शान में गुस्ताख़ी लगा . फिर वो वृंदा के सामने पहुंच कर हल्के से खखारा . वृंदा की तन्द्रा भंग हुई और जब तक वो कुछ समझती ....उस उद्दंड गुंडे छात्र नेता नें उसे एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया और भद्दी एवं अपमानजनक भाषा का प्रयोग करते हुए और अपशब्दों का प्रयोग करते हुए ...तमीज़ सिखाने लगा . उस थप्पड़ से " वृंदा " के सुकुमार गालों पर ...उंगुलिओं की छाप उभर आई . आँखों में पानी भर आया और कभी भी इस तरह प्रताड़ित न होने वाली ' वृंदा ' का क्रोध भड़क उठा . वह झटके से अपने स्थान से उठी और उस छात्र नेता की आँखों में देखने लगी . उसके सुन्दर मुख पर क्रोध की काली छाया मंडराने लगी . आंखे सुर्ख हो गईं होंठ फड़फड़ाने लगे और एक हुंकार भर कर " वृंदा " नें उस उद्दंड छात्र की नाक पर एक जोरदार पंच जड़ दिया ....वह लड़खड़ाकर गिरा और खून उगलने लगा .
गैंग के शेष पुछल्ले शागिर्द जो बड़ी शान से उस नेता की शागिर्दी में आए थे ...आतंकित हो उठे.
उन्ही में से एक बलिष्ठ लड़का आगे बढ़ा और सामने पड़ी कुर्सी को एक लात से किनारे करता हुआ ...फुर्ती से वृंदा की ओर बढ़ा और उसे पकड़ने की कोशिश के दौरान ही " वृंदा " का एक जोरदार कराटे चाप उसकी गर्दन के पिछले हिस्से पर पड़ा और वो चारो खाने चित हो गया .
" वृंदा " पहले ही दिन मशहूर हो गई . कॉलेज प्रशासन तो पहले ही इन सीनियर नेता छात्रों से त्रस्त था ....उन्होंने भी घटना पर कान न दिया .
इस घटना से दो घटनाएँ एक साथ घटित हुईं . पहली तो ये कि वो गुंडा छात्र जो वृंदा के एक ही पंच से खून उगलने लगा था ....वह अपने प्रभावशाली राजनीतिक गॉड फादर के साथ थाने पहुँचा . थाने पर पहले से ही उस पर कई संगीन मामले दर्ज थे सो थानेदार नें कोई ऐक्शन न लिया ....लेकिन ऊपर से प्रेशर पड़ा तो वह अपने दलबल के साथ कॉलेज की ओर चला .
दूसरी घटना ये घटी कि इस अकल्पनीय घटना से जूनियर और उन सीनियर छात्रों और इतर लोगों में भी खुशी की लहर दौड़ गई ....जो इस प्रकार की खुल्लमखुल्ला गुंडागर्दी से पहले ही त्रस्त थे .वे
सब " वृंदा " के समर्थन में एकजुट हो गए .
अपने नेता के एक लड़की के हाथों पिट जाने से उद्दंड सीनियर्स का पूरा ग्रुप ....गधे के सिर से सींग की तरह जाने कहाँ गायब हो गया .
कॉलेज प्रिंसिपल को सारे मामले की ख़बर हुई और उन्हें अनुमान हुआ कि आगे कुछ जरूर होने वाला है और उन्होंने कॉलेज का मेन गेट बंद करवा दिया .
सायरन बजाती हुई पुलिस की गाड़ी आकर गेट पर खड़ी हुई .......और उस थानेदार को प्रिंसिपल नें साफ साफ बताया ....." ये घटना सीनियर्स छात्रों में वर्चस्व की लड़ाई और सीनियर्स की रैगिंग का नतीज़ा है . किसने किसको मारा कहा नहीं जा सकता . विश्वविद्यालय प्रशासन नें अपने स्तर से पूरे मामले की जाँच के लिए एक कमेटी के गठन का फैसला किया है ." 
यह बयान सुन कर बड़ा दरोगा मुस्कुराते हुए आकर अपनी गाड़ी में बैठ गया .....और मामला ठंडे बस्ते में चला गया . 
बिना कुछ विशेष प्रयास के " वृंदा " न चाहते हुए भी ' कालेज की लीडर ' हो गई . किसी भी टीचर नें और न ही कॉलेज प्रशासन नें उससे कुछ पूछना तो दूर ....कोई आपसी चर्चा तक न की .
विश्वविद्यालय के वार्षिक छात्रसंघ चुनाव में 
"वृंदा " को उसके समर्थकों नें " अध्यक्ष " पद का उम्मीदवार बना दिया .उसकी लोकप्रियता का अंदाज लगा कर लगभग राजनीतिक दलों के छात्र संगठनों नें उसका खुल कर सपोर्ट किया और मात्र उन्नीस साल की उम्र में " वृंदा " राजनीति की नर्सरी कहे जाने वाले उस विश्वविद्यालय की "छात्र संघ अध्यक्ष " चुन ली गई .
अब तो वो राजनीति में इस तरह उलझी कि पढाई लिखाई कम और नेतागीरी ज्यादा होने लगी और लगातार बढ़ती अपार लोकप्रियता के कारण वह बड़े राजनैतिक दलों की नजरों में आ गई .
दूसरे वर्ष ...वह निर्विरोध अघ्यक्ष चुनी गई और तीसरे वर्ष तो प्रशासन के किसी आदेश के कारण चुनाव ही नहीं हुआ . परास्नातक तक पहुँचते पहुँचते वह लगातार " अध्यक्ष " बनी रही ........
फिर तो उसका ऐसा जलवा फैला कि वह जिसे चाहती " अध्यक्ष " बनवा देती . जब तक वह स्नातकोत्तर उपाधि पाती ....विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई और एक बड़े राजनैतिक दल ने प्रेस कांफ्रेंस कर " वृंदा " को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया .
सत्ताविरोधी लहर और नौजवानों में अपनी अपार लोकप्रियता के चलते " वृंदा " भारी मतों से विजयी हुई और उसके निकट प्रतिद्वंदी की जमानत जप्त हो गई .
मात्र चौबीस साल की उम्र में " वृंदा " अपने इलाके की " माननीय विधायक " चुनी गई .अब तक उसका राजनैतिक प्रभाव इतना फैल चुका था कि उसकी धमक लोकसभा तक में सुनाई पड़ती थी .
वृंदा के माता पिता उसकी इस अविश्वसनीय सफलता पर बहुत खुश थे ....लेकिन वे ये नहीं जानते थे कि " काजल की कोठरी " में आगे क्या होने वाला है ?
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" वृंदा " के इलाके के ग्रामीण इलाके में भीषण प्राकृतिक आपदा आई . भारी बरसात के कारण आयी बाढ़ और बांध टूट जाने के कारण आई इस आपदा के कारण बहुत से लोग मारे गए और करोङो की संपत्ति नष्ट हो गई . बाढ़ उतरने के बाद वह मौका मुआयना करने गई थी . 
आपदाग्रस्त क्षेत्र से वापस लौटते समय उसकी गाड़ियों का काफिला हाई वे से गुजर रहा था .आगे चलती पुलिस एस्कॉर्ट सायरन बजाती भागी जा रही थी और पीछे " वृंदा " की दस गाड़ियों का काफिला था .
बीच सड़क पर यकायक एक भयानक विस्फोट की आवाज गूँजी . लगा कानों के परदे फट गए और कुछ देर तक कुछ भी सुनाई न दिया . चारो तरफ गाढ़ा धुआं फैला था और कुछ दिखाई नहीं दे रहा था . आँखों में अजीब सी खुजली और जलन हो रही थी . " वृंदा " के सिर पर कोई वजनदार चीज़ टकराई और उसकी चेतना लुप्त हो गई .
" वृंदा " की आँख खुली तो उसने अपने आप को एक अंधेरे कमरे में पाया . आँखे अंधेरे की अभ्यस्त हुई तो उसे अनुभव हुआ कि कमरे में वह अकेली नहीं है .
इधर सत्ताधारी दल की विधायक के काफिले पर हुए बम हमले की खबर ...पूरे देश में फैल गई और पता चला कि इस हमले में न तो कोई मरा और न घायल ही हुआ लेकिन " माननीया विधायक जी  कहीं गायब हो गईं .
इस घटना से प्रशासन में खलबली मच गई और इतनी थू थू छीछालेदर हुई और इतना शोर मचा कि मामले में प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा .
पूरी प्रशासनिक मशीनरी केवल " वृंदा " को खोज रही थी .
तीन दिन बाद हाई वे के घटनास्थल से 200 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी इलाके की एक निर्जन सड़क पर " वृंदा " ......बिना कपड़ो के चेतनाशून्य मिली .
उसके साथ कई बार सामूहिक बलात्कार हुआ था .....और वो कोमा में थी .
इसके बाद वृंदा में .............


क्रमशः जारी ........

Comments

Anil. K. Singh said…
अभी तक कहानी अच्छी है। आगे क्या है कुछ कह नहीं सकता। बहुत अच्छा।
Anil. K. Singh said…
अभी तक कहानी अच्छी है। आगे क्या है कुछ कह नहीं सकता। बहुत अच्छा।