आदत खराब हो गई

रंजन मिसिर का बेटा ....आनंद , अच्छे नम्बर से इण्टर पास कर अपने पिता से बोला ....' बाउ जी हम आगे शहर में पढ़ेंगे" . पहले तो मिसिर जी टुकुर टुकुर उसका मुँह देखते रहे ....फिर उठ कर चले गए . मिसिर जी के घर के हालात अच्छे नहीं थे . खेती तो पांच एकड़ थी लेकिन लगातार प्राकृतिक विपदाओं और पिछले साल पत्नी की बीमारी के कारण वे बड़े कर्ज में थे .
आनंद के दो बड़े भाई थे ...उनके बाल बच्चे थे लेकिन परिवार अभी संयुक्त ही था . आनंद घर में सबसे छोटा किंचित वयस्क होने की सीमा पर खडा था . एक दिन एक बहुत छोटी बात पर ......शायद उसने उनके किसी काम को तत्काल करने से मना कर दिया था ...
.....उसकी छोटी भाभी ने घर के सभी बड़ों के सामने उसे बुरी तरह अपमानित किया और उस समय उसका हमउम्र " भाभी का भाई " वहीं खड़ा था . भाभी लगातार पंचम स्वर में उलाहना देती व्यंग्य बाणो की बरसात कर रहीं थीं और वो साला हो हो कर हंस रहा था . वो बहुत दुखी हुआ ....और ये बात उसे खल गई कि भाभी उल्टा सीधा बोलती रहीं और किसी नें कुछ भी नहीं कहा .....और "आनंद" घर से भाग गया .

.......................................................................................................पैसे धेले तो उस के पास थे नहीं अपनी जीविका के लिए वह एक बड़े शहर की बड़ी मेडिकल मार्केट में दवाओं के गत्ते चढाने उतारने लगा और उसकी रोजी रोटी का मसला हल हुआ .
एक दिन ' सरदार मेडिकल सप्लायर्स ' की दुकान पर वो माल पहुंचा रहा था . सिर पर दवा का गत्ता लादे वो तीसरे फ्लोर की इस दुकान पर पहुंचा . वापसी में उसे काँच के दरवाजे पर सैलोटेप से चिपका एक कागज़ दिखा . उस पर लिखा था ......
जरूरत है 
दुकान में काम करने के लिए एक 
लड़के की . अंग्रेजी जानने समझने
वाले को ...वरीयता .
शाम हो चुकी थी और लोग बाग अपनी दुकान बढ़ाने की तैयारी कर रहे थे .....और ' आनंद ' ....सरदार मेडिकल की दुकान पर पहुँचा . ' सरदार जी ' सिर नीचा किये अपने हिसाब किताब में व्यस्त थे . वो जा कर उनके सामने खड़ा हुआ ....सरदार जी ने सिर उठाया और प्रश्नवाचक नेत्रों से उसे देखा . " आनंद " ने उस चिपके कागज की ओर इशारा किया . सरदार नें उसे ऊपर से नीचे तक देखा और एक प्रिंटेड पेपर निकाल कर उस से कहा ......पढ़ ..
और उसने अंग्रेजी में छपे उस मजमून को धाराप्रवाह पढ़ दिया . फिर सरदार जी नें वह कागज उठा लिया और एक सादा पेपर और पेन निकाल कर उसके सामने रख कर बोले ....जो पढ़ा है उसे लिख ...
और उसने लिख दिया ....
सरदार जी नें उसे पारखी नजरों से देखते हुए पूछा ....
......कितनी तनख्वाह लेगा ?
"आनंद " स्थिर स्वर में बोला ....सरदार जी ! मुझे अनुमान नहीं कि जो काम आप करवाना चाहते हैं उस काम का कितना पैसा मिलना चाहिए ? आप जो मुनासिब समझें दे देना ....
सरदार जी ने सिर हिलाया और बोले ....दुकान बढ़ाने में मदद कर ...
कुछ देर तक सामान इधर उधर करने के बाद वो  सरदार जी के साथ दुकान से बाहर आया . सरदार ने सीसे के दरवाजे से चिपका वो इश्तहार उखाड़ा और फाड़ कर डस्टबिन में डालते हुए बोले .....शटर बढ़ा और ताला लगा .
दुकान की चाभियाँ जेब में डालते हुए सरदार जी नें पहली बार मुस्कुराते हुए उसके उलझे बालों को अपनी उंगुलियों से और भी उलझाते हुए कहा ....कल सुबह नौ बजे आ जाना .
" आनंद " समझ गया ...उसकी नौकरी पक्की .
एक ही महीने में सरदार जी की अनुभवी आँखों ने आनंद को परख लिया और धीरे धीरे आनंद की जिम्मेदारी और वेतन दोनों बढ़ते गए .
तीन महीने बीत चले थे और शर्दियाँ आने वाली थीं हवा में ठंढक धीरे धीरे बढ़ रही थी . अब वो सोचने लगा था कि अभी तक तो रातें " रेलवे स्टेशन " पर कट गईं ...आगे क्या होगा ? अब उसे हर महीने तकरीबन बारह हजार रुपए मिल जाते थे और उसने रहने लायक किराए पर एक कमरा तलाशना शुरू किया . एक दिन उसे इसी चक्कर में दुकान पहुँचने में देर हो गई और दोपहर के समय लंच करते हुए सरदार नें उससे ...सुबह देर से आने की वजह पूछी और उसने ' वजह ' बताई .
जहाँ रहता है वहां क्या प्रॉब्लम है ?....सरदार जी नें पूछा ....तो आनंद ने सारा वृतांत गा कर सुना दिया .
सब कुछ जानने के बाद ....सरदार जी हैरानी से उसका मुँह देखते हुए बोले ....तो तू इतने दिनों से रेलवे स्टेशन पर सो रहा है ?....आनंद नें हामी भरी .
ठीक है तो तू आज मेरे साथ चल लेकिन तेरा सामान कहाँ है ....सरदार जी नें पूछा .
सुबह स्टेशन से निकल कर मैं अपना सामान एक दोस्त के कमरे पर रख देता हूँ . वो पल्लेदारी करता है ......आनंद नें सिर झुका कर कहा .
सरदार जी बोले ....तो तू उसी दोस्त के साथ ही क्यों नहीं रहता ?
आनंद शून्य में देखते हुए दार्शनिक स्वर में बोला ....मैं स्टेशन पर सोता हूँ ...ये बात वो जानता है . जब उसने खुद कुछ नहीं कहा तो मैं क्या बोलूँ ? वहाँ मेरा सामान सुरक्षित रहता है ....नहाने धोने को मिल जाता है ....यही बहुत है .
.........................................................................
सरदार जी उसे साथ लेकर अपने घर पहुंचे और लॉन के किनारे बने एक कमरे में भेज दिया . लगता था अभी अभी किसी ने कमरा साफ किया हो . कमरे में निवाड़ से बिनी एक चारपाई , लकडी का कबर्ड और कुर्सी मेज के अलावा कुछ नहीं था . वह कुर्सी पर बैठा भगवान को अपनी बहुत बड़ी समस्या हल होने के लिए धन्यवाद दे रहा था कि तभी घर का बूढ़ा नौकर ' रग्घू ' बिस्तर ' लेकर आया . वह गूंगा बहरा था और केवल इशारा समझता था .
रात के आठ बज रहे थे और " आनंद " चहलकदमी करता बंगले के गेट तक आया . सड़क के दूसरी ओर सामने ही एक जनरल स्टोर की दुकान थी . आनंद वहाँ पहुँचा और एक साबुन , कच्छा बनियान ,एक गमछा , छोटी सीसी अलमोनड्रॉप तेल , पांच रूपए वाला फेयर एंड हैंडसम , एक ब्रेड और नमकीन और कंघी खरीद कर वापस अपने कमरे में पहुंचा .
तभी " रग्घू " कमरे में आया और एक थाली को दूसरी थाली से ढांप कर मेज पर रख कर चला गया . पांच मिनट बाद वो एक जग पानी और गिलास लेकर आया और भोजन करने का इशारा किया और आनंद नें महीनों बाद घर का बना स्वादिष्ट भोजन किया . पेट भर जाने पर भी कुछ भोजन बच गया .
कुछ देर बाद ' रग्घू ' आया और थाली उठा कर ले जाने लगा तो बचा भोजन देख कर उसे अपने पीछे  आने का इशारा किया . पोर्च के सामने एक खतरनाक दिखने वाला ' बुलडॉग ' बंधा था .रग्घू ने बचा खाना उसके बर्तन में डाल कर ...उसे इशारों में समझाने की कोशिश की यदि भोजन बचा रह जाय तो उसे क्या करना है ?
उस रात आनंद बड़ी गहरी नींद सोया . अब उसकी रहने खाने की समस्या हल हो गई थी और वह सरदार जी का कृतज्ञ था .
वह अपने मालिक सरदार जी का बहुत सम्मान करता और उनकी छोटी से छोटी आज्ञा का तत्काल पालन करता था और तीन महीने में ही " आनंद"  नें सरदार जी का दिल जीत लिया .
..............................................................आनंद उन्नीस साल का तंदरुस्त और मेहनती लड़का था . गोरा रंग ,गठीला बदन उस पर वो अब मनपसंद फ़ैशनेबल कपड़े भी पहनने लगा था बाल करीने से सवारने लगा था . सुबह उठ कर जॉगिंग करने जाता था . उसने कुछ ऐसा जादू किया ....क्या इतनी जिम्मेदारी और ईमानदारी से काम किया कि सरदार जी की वो जरूरत बन गया . 
उस घर में उसने ...सरदार जी ,उनकी बीवी ,वो बुलडॉग और मूक बधिर रग्घू के अलावा और किसी को नहीं देखा . सरदार जी की पत्नी बहुत कम बोलती , सारा दिन टी वी देखतीं ,सुबह शाम योगा करतीं और खाती पीती रहती थीं ....हाँ खाना बनाने की बड़ी शौक़ीन थीं . अक्सर विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाती और बड़े शौक से रग्घू के हाँथ भिजवा देतीं .उनके हाँथ का बना भोजन बड़ा स्वादिष्ट होता था . ये उनका ही प्रताप था कि सूखे पिचके गालों वाले आनंद के चेहरे पर एक स्वस्थ निखार साफ दिखता था .
..............................................................और एक दिन ....

सुबह वह जॉगिंग से लौटा . कपड़े उतारे ,कंधे पर तौलिया रखा और रोज़ की तरह गुनगुनाता हुआ केवल वी शेप की अंडरवियर में बाथरूम की तरफ बढ़ा , जिसे उसके अलावा कोई इस्तेमाल नहीं करता था ....इतने में हटाथ उसकी नजर लॉबी की ओर उठी . वहाँ झूले पर एक निहायत खूबसूरत 22-23 साल की लड़की बैठी ....हाँथ में चाय का कप पकडे ...उसी की ओर देख रही थी .
आनंद ने फौरन कंधे से तौलिया उतार कर कमर में लपेटा और बाथरूम में घुस गया ...फिर वह अपनी ड्यूटी बजाने चला गया और सुबह की ये बात भूल गया .
दूसरे दिन उसे वहां कोई न दिखा ...फिर बात आई गई हो गई . एक दिन वह जोर जोर से गाते हुए नहा रहा था . बाथरूम का दरवाजा भिड़का तो था लेकिन अंदर की कुंडी न होने से बंद नहीं था .
उसीसमय दरवाजा ठेल कर " वही लड़की " बाथरूम में घुस आई और उसे ललचाई नजरों से देखने लगी .तौलिया लपेट वहां से आनंद सिर पर पैर रख कर भागा ....
जनवरी का आखिरी हफ्ता और अचानक बारिश ओलावृष्टि और बर्फीली हवा से तापमान तीस साल के सबसे निचले स्तर पर जा पहुंचा . रजाई में दुबका ...हाथ पाँव सिकोड़े आनंद गहरी नींद सो रहा था और दो आँखे उसे उसके कमरे की खिड़की से देख रहीं थीं .
चारो तरफ गहरा सन्नाटा फैला था . इतनी धुंध थी कि हाँथ को हाँथ नहीं सूझता था . रग्घू की वजह से दरवाजा अंदर से कभी बंद नहीं होता था ...वो कभी कभी आनंद के सो जाने पर बर्तन उठाने आता और बंद दरवाजे को तब तक भड़भड़ाता जब तक आनंद उठ कर खोल नहीं देता . रग्घू बर्तन उठा कर जा चुका था और उस दिन भी दरवाजा अंदर से बंद नहीं था .
" उस लड़की " नें दरवाजा ठेला और वो खुल गया . वो अंदर आई और दरवाजा बंद कर कुंडी लगा दी ....कड़ाके की ठण्ड के बावजूद उसने अपने सारे कपड़े उतारे और केवल अन्तःवस्त्र पहिने ...रजाई में घुस गई . आनंद की आंख खुल गई और जब तक वो कुछ समझता " उस लड़की " ने उसके होठों पर उंगली रख चुप रहने का इशारा किया और बोली ....." जो हो रहा है होने दो .विरोध किया या शोर मचाया तो मैं चिल्लाने लगूंगी . आनंद की घिग्घी बंध गई और फिर कमरे में तूफ़ान आ गया और जोरदार बारिश हुई .

पूरे दो घंटे बाद " वो लड़की " वहां से उठ कर चुपचाप चली गई . सुबह उठ कर रात की बातें याद कर वह खुश होने के बजाय डर गया . बिस्तर से उठने पर उसने देखा कि उसके सिरहाने दो हजार रूपए पड़े थे .
बाद में उसे पता चला कि ' वो लड़की ' कोई और नहीं ...सरदारजी की इकलौती बेटी " लवली " थी जो कनाडा में अपने ताऊ के परिवार के साथ रह कर सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग का कोर्स कर रही थी . यह जान कर उसके प्राण सूख गए ...लेकिन इस बात की चर्चा वो किसी से नहीं कर सकता था और वो लड़की " लवली " अब तकरीबन रोज ही उसके साथ सोती और अपने मन की करके चली जाती और हर बार सिरहाने दो हजार रुपए रख जाती .
आखिरकार दो महीने बाद वो वापस " कनाडा " चली गई . उसके यहाँ रहने पर वो हमेशा डरता रहता था लेकिन उसके साथ गुजारी उन दिलफ़रेब रातों को याद कर अब दुखी होता रहता था .
दिन जाते देर नहीं लगती .
एक दिन ...सरदार जी ने अपने बिजनेस का विस्तार किया और एक और दुकान खोली . उस दुकान की पूरी जिम्मेदार " आनंद "को सौंप वे अपने कारोबार में रम गए . आनंद नें बड़ी कुशलता से दुकान सम्हाल ली . अब तक वो कार चलाना भी सीख गया था और यदा कदा सरदार जी उससे ड्राइवर का काम भी ले लेते थे . सरदार जी उस से हरतरह की बातें कर लिया करते थे लेकिन कोई पारिवारिक चर्चा उन्होंने कभी नहीं की . एक दिन सरदार जी उससे बोले ...." कुछ मेहमान आने वाले हैं उन्हें रिसीव करने एयरपोर्ट जाना है . शाम सात बजे की फ्लाइट है टाईम से पहुंच जाना ." 
" आनंद " एयरपोर्ट लाउंज में हाथ में एक तख्ती लिये खडा था . फ्लाइट लैंड हुई और उसकी तरफ दो बला की सुंदरियों ने कदम बढ़ाये . एक तो " लवली " थी और दूसरी कोई विलायती लड़की थी . कार में बैठने के बाद लवली ने उस अंग्रेज नस्ल की गोरी से जाने क्या कहा और वह आनंद को देख मुस्कुरा दी .
एक सप्ताह हो गया था उन दोनों को आए ...वे उसे देख हँसती मुस्कुराती लेकिन कुछ कहती नहीं थीं .
एक दिन सरदार जी दुकान पर आनंद के साथ बैठे हिसाब किताब कर रहे थे ...उसी समय उनके फोन की घंटी बजी ....उधर से जाने क्या कहा गया कि सरदार जी ....हाय निम्मो ! हाय निम्मो !!
कहते रोने लगे . आनंद ने " अपने सरदार " को कभी रोते नहीं देखा था . वह उनका बिलखना नहीं देख सका . पहले दौड़ कर पानी लाया और सरदार को पिलाया . फिर दुःख का कारण जानना चाहा . जो कुछ उसने जाना उसके अनुसार सरदार जी के सत्तर साल के बहनोई मर गए थे और निम्मो सरदार जी की बहन का नाम था .
दो घंटे बाद ....सरदार जी अपनी पत्नी के साथ अम्बाला जा रहे थे और गाड़ी आनंद चला रहा था .इस बीच वह एक सेकेण्ड के लिए भी सरदार से दूर नहीं गया .
अम्बाला पहुंच कर वहाँ दो घंटे रुक कर सरदार जी से बिजनेस वाली बातें कर और खाना खा वहाँ से रवाना हुआ .
रात के नौ बजे दोनों दुकानें बढ़ा कर और हाँथ में कुछ पेपर लेकर आनंद सरदार जी के घर पहुँचा . कार गैरेज में खड़ी की और रग्घू उसके सामने पहुंचा ....इतने दिनों के साथ नें उन दोनों को एक दूसरे की भाषा सिखा दी थी . दोनों ने कुछ इशारे बाजी की और रघु घर में घुसा और अपने मालिक का बैडरूम खोल दिया . आनंद अंदर गया ....अलमारी खोली उसमें कागज रखे और लॉक कर दी . वो बेडरूम से बाहर निकला और एक खूबसूरत अंग्रेज छोकरी से सीधा टकराया . वो लड़की संभली और एक आंख दबा कर मुस्कुराते हुए बोली ....हाय हैंडसम !
सकपकाया आनंद बाहर भागा और सीधा अपने कमरे में घुस गया उसका मन सूखे पत्ते की तरह कांप रहा था . तभी उसका फोन बजा ....और उसने फोन कान से लगाया और बातें करने लगा .बातें करते करते वह कमरे से बाहर निकला .वह बंगले में फिर घुसा और रग्घू को पकड़ा फिर उसे साथ लिए गेट तक आया और उसके ताले को पकड़ काल्पनिक चाबी घुमाई और रग्घू अंदर भागा . बंद गेट के ऊपर बाजू रखे वह फोन से बतियाता रहा और हाँ जी हाँ जी करता रहा . तभी रग्घू लौटा और ताला लगाने लगा . फोन से बात करते हुए वो " बुलडॉग " के पास गया और वो उसे देखते ही पूँछ हिलाने लगा और उसके ऊपर चढ़ने की कोशिश करने लगा . आनंद ने उसके बर्तन में झाँका और उसकी जंजीर खोल दी कुत्ता भागता हुआ गेट तक गया और एक टांग उठा दी ...फिर वह लौटा और चहल कदमी करने लगा . फिर आनंद अपने कमरे मे आया और फिर फोन रख दिया . वो अपने सरदार जी से बतिया रहा था ........
कुछ देर बाद रग्घू खाना पानी लेकर आया . उसने रग्घू की ओर प्रश्नसूचक मुद्रा में देखा और रग्घू ने इशारों में ही समझाया कि " वो खाना उसने बनाया है .खुद खा चुका है ....कुत्ते को खिला चुका है ....दोनों लड़कियाँ बाहर खा कर आयीं हैं ....अब बैठ कर शराब पी रहीं हैं और ठहाके लगा रहीं हैं .अब जल्दी से खाओ और बर्तन खाली करो .मुझे अभी बर्तन माजना है ......" 
और खाना खा कर लेट गया .गरमी का दिन सारे दिन की दौड़ धूप और ऊपर चलता पंखा और उमस ......
रग्घू बर्तन उठा कर जा चुका है और कुत्ता गेट पर सो रहा है . वह कमरे में आया अपने कपड़े उतारे तौलिया कंधे पे रखा और उसी वी शेप के अंडरवियर में बाहर निकला और अपने बाथरूम की ओर बढ़ा कि उसकी नज़र उसी झूले पर पड़ी जिस पर उस दिन " लवली " बैठी चाय पी रही थी और एक बिजली सी कौंधी ....उसे सब याद आ गया और उसकी देह में चीटियाँ रेंगने लगीं उसे ऐसा लगा जैसे ....आज जरूर कुछ होने वाला है . ठंडे पानी के नीचे इस सड़ी गरमी में खडे होकर देर तक नहाना उसे पसंद था . आंखे बंद किये वो इसी आनंद में खोया था और उसे पता नहीं चला कि बाथरूम के दरवाजे पर ' लवली ' खड़ी उसे देख रही है .और वो भी शावर के नीचे जाकर खड़ी हो गई . आनंद की आंखे खुली और एक बार उसे लगा कि वो सपना देख रहा है लेकिन वो सपना तो नहीं था .

और फिर जैसे वह सम्मोहित हो गया और " लवली " उसे अपने बेड रूम में उठा ले गई . वहाँ उसके साथ दो लड़कियों नें वह सब कुछ किया जो सिर्फ पोर्न फिल्मों में ही देखा जा सकता है .
लगातार एक हफ्ते प्रतिदिन ये खेल खेला गया और सरदार जी अम्बाला से वापस आ गए .
तीन दिन बाद वे दोनों भी चली गई और जाते जाते उसे किस्म किस्म के अंडरगारमेंट्स, तरह तरह के महंगे इत्र और पचासहजार रूपए नकद भी दे गई .
" लवली " और वो दिलफरेब विलायती "डॉली " चली तो गयीं लेकिन उसकी आदतें खराब कर गयीं . अच्छा भला आदमी अब " जिगोलो " बन गया और उसकी शाम विभिन्न बदनाम  क्लबों में कटने लगीं जहाँ वह अपनी बेलगाम कामवासना को शांत करने लगा .
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और एक दिन बहुत बीमार अवस्था में हड्डियों का कंकाल बना वो अपने गांव पहुँचा .उसका सारा पैसा इलाज में खर्च हो गया .उसकी बीमारी का इलाज़ कोई डॉक्टर नहीं कर कर सका क्योंकि उसकी बीमारी का कोई इलाज ....था ही नहीं .
और तीन दिन बाद ....
" रंजन मिसिर " के सबसे छोटे लड़के की लाश जमीन पर लेटी थी . उनकी सूजी हुई लाल लाल आंखे आँसुओं की गंगा जमुना बहा अब सूख चुकी  थीं .अपनी ओर देखती छोटी बहू को वे एक कातर परन्तु बड़ी शिकायती आंखों से देख रहे थे ..............................
उन्होंने घुटनों पर बैठ ....अपने बेटे के मुँह से कफ़न उठा कर चेहरा देखा और उनके कानों में एक आवाज़ गूँजी ...."बाउ जी हम आगे शहर मे पढ़ेंगे ......" 


Comments

Anil. K. Singh said…
कहानी बहुत अच्छी है। ढंग से पेश किया गया है। सच्चाई कोदर्शाती कहानी है। बहुत अच्छा।