वृंदा : एक अजीब दास्तान (भाग - 2 )

गतांक से आगे ......
तीन महीने बाद ....जब " वृंदा " कोमा से बाहर आई ....तो तीन घटनायें एक साथ घटित हुईं .
पहली घटना तो ये घटी कि ....
सत्ताधारी दल की विधायक के साथ घटी इस दर्दनाक घटना नें प्रदेश की कानून व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा दिया और प्रधानमंत्री के दबाव में मुख्यमंत्री को त्यागपत्र देना पड़ा .
दूसरी घटना .....
घटना को अंजाम देने वाले सभी अभियुक्त पकड़ लिए गए और वे अब जेल में थे , उनपर संगीन धाराओं में केस दर्ज हुए थे और हाई कोर्ट से उनकी ज़मानत अर्ज़ी नामंजूर हो चुकी थी घटना की जाँच सी बी आई को सौंप दी गई थी .
तीसरी घटना .....
ये सबसे बड़ी घटना थी और वो ये थी " वृंदा "एक भयंकर मानसिक रोग से ग्रस्त हो चुकी थी . वह हमेशा चुप रहती , एकांत चाहती और एक टक एक ही दिशा में देखती रहती . इस तरह वो भूल ही गई कि वो कौन है ? अपने मातापिता तक को नहीं पहचानती थी .

इस तरह छह महीने बीत गए ...." वृंदा " में केवल एक ही सकारात्मक परिवर्तन आया कि अब वो हमेशा कुछ न कुछ लिखती रहती थी .
और एक दिन ....
हॉस्पिटल के एक कर्मचारी " अर्जुन से " वृंदा नें कहा कि वह बाहर घूमना चाहती है . छह महीने में पहली बार किसी से वह कुछ बोली थी और एक इच्छा प्रकट की थी .
वो भागा और जाकर ' हेड ' को ये सूचना दी और उस दिन वृंदा बाहर घूमने निकली .उसके साथ अर्जुन और वो नर्स थी जो उसकी देखभाल के लिए नियुक्त की गई थी . उस दिन वृंदा घूम कर आई तो बहुत खुश थी .
डॉक्टर और वृन्दा के मातापिता उसमें आए इस सकारात्मक परिवर्तन से बहुत खुश थे . धीरे धीरे वृंदा ...अर्जुन और उस नर्स से घुलमिल गई . हमेशा गुमसुम रहने वाली अब हसने मुस्कुराने लगी थी लेकिन पहचानती अभी भी वो किसी को नहीं थी . अब वो नए नए फ़ैशनेबल कपड़ो की और मेकअप के सामान की मांग करने लगी थी . एक दिन वह नहाधोकर ...मेकअप करके और अत्याधुनिक कपड़े पहिन कर अर्जुन के सामने पड़ी और अर्जुन उसकी सुंदरता को देखता रह गया .
शाम के सात बज रहे थे और अर्जुन की बाइक के पीछे ....वृंदा उसे दोनों हाँथों से जकड़े चिपकी थी और बाइक हवा से बातें कर रही थी .
यकायक एक स्थान पर " वृंदा " नें उसे रुकने का इशारा किया और बाइक से उतर कर उसके सामने खड़ी हुई और बोली ...." तुम्हारे साथ सेक्स करना चाहती हूँ ." और अर्जुन इतना खुश हुआ कि मानो मन की मुराद पूरी हो गई हो .

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अगले दिन ....
सेंट्रल पार्क के पुराने खंडहरों के बीच से गुजरती आर सी सी रोड पर सम्पूर्ण नग्नावस्था में  "अर्जुन " की लाश मिली . लाश के शरीर पर कहीं भी किसी चोट चपेट का कोई निशान नहीं था .उसके कपड़े तक नहीं मिले 
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सुबह के सात बजे थे और " वृंदा " एक लगभग नई हार्ले डेविडसन पर सवार हाई वे पर उड़ी जा रही थी . स्याह हेलमेट लगाए वृंदा को कोई नहीं पहचान सकता था . वह बाइक चलाती पड़ोसी शहर जो घटनास्थल से लगभग 500 किलोमीटर दूर था के एक शानदार फाइव स्टार होटल में पहुंची .

होटल के फाइव स्टार " बार " में बैठी वह " जिन " की चुस्कियां ले रही थी और कुछ ही देर बीती थी कि एक नौजवान उसके पास पहुंचा ....कुछ देर तक वो वृंदा से खुसुर फुसुर करता रहा और फिर ........

उस फाइव स्टार होटल के बेडरूम में वह "नवयुवक " ......वृंदा को गोद में उठाए खड़ा था " वृंदा " चुलबुला कर बोली ....कुछ एक्स्ट्रा एक्साइटमेंट चाहिए ? ....ऑफकोर्स ...नौजवान जल्दी से बोला ....
देन कम विद मी .....वृंदा शोखी से बोली .
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उस हारले डेविडसन पर सवार " वृंदा " ...उस नौजवान को पीछे बैठा ....उड़ी जा रही थी . वो शहर के बाहर एक निर्जन और बहुत बड़े कब्रिस्तान के गेट पर पहुंची और बोली कभी आउट डोर सेक्स का मज़ा लिया है ?
यहाँ कहाँ ....नौजवान हैरानी से बोला .
बाइक पर !!!.....और कहाँ !
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और सुबह के सात बजे उस कब्रिस्तान के बाहर सम्पूर्ण नग्नावस्था में " एक नौजवान "की लाश को लोग घेरे खड़े थे स्थानीय पुलिस मौका मुआयना कर रही थी . उसके कपड़े गायब थे जो खोजे न मिले .
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वृंदा का मानसिक रोग अपनी निर्णायक अवस्था में पहुँच गया था और उस अवस्था में रोगी की कामपिपासा इतनी भड़क उठती थी कि उसकी पूर्ति के लिए वह कुछ भी कर गुजरता था .
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अब वृंदा एक नए शहर में थी और जिस दिन वह शहर में घुसी उसके अगले दिन एक सुनसान सड़क पर एक सुन्दर नौजवान की नंगी लाश ..मिली और कपड़े गायब थे .
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इस तरह पाँच साल मैं अलग अलग शहरों में एक ही अवस्था में ....एक निश्चित क्रम में 500 नौजवानों की लाशें मिलीं तो खूफिया एजेंसियों के कान खड़े हो गए . सरकारी जाँच के गुप्त आदेश जारी हो गए .......लोग ! वृंदा को भूल चुके थे उसे गायब हुए छह साल बीत गए . उसके मातापिता भी यह स्वीकार कर चुके थे कि उनकी लड़की पागलपन की अवस्था में कहीं गुम हो गई 
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एक दिन वृंदा भटकते भटकते एक आश्रम में पहुँच गई . उसे अपने " कुकृत्यों " का पूरा ज्ञान था लेकिन अपने ' मन ' से मजबूर थी ....वह एक भयानक मानसिक रोगी थी . 
जाने किस प्रेरणा से वह उस आश्रम में रुक गई .तीन महीने में ही उसमें बड़े व्यापक परिवर्तन आये .लेकिन न तो वहाँ कोई काउंसलर था और न ही वह दवाएं ले रही थी . अंततः इन ' व्यापक परिवर्तनों ' का साइड इफेक्ट .....आत्म ग्लानि के रूप में प्रकट हुआ और अपने भयानक कुकृत्यों का उसे इतना पछतावा हुआ कि उसने "आत्महत्या " कर ली . उसकी लाश के बायें हाँथ में एक मोटी " नीली डायरी " मिली . उस डायरी नें वे सारे " राज " खोल दिए जो चर्चा का विषय थे और जिनका पता लगाने के लिए ....सरकार नें अपने गुप्तचरों की पूरी फौज उतार दी थी .











Comments

Anil. K. Singh said…
आप गोपाल राम गहमरी की जैसी जासूसी कहानी लिख रहे हैं। कहानी का समापन बहुत रहस्यमयी ढंग से किया है। कोई अनुमान नहीं लग पाया कि आगे क्या होने वाला है। बहुत अच्छा ।
Anil. K. Singh said…
आप गोपाल राम गहमरी की जैसी जासूसी कहानी लिख रहे हैं। कहानी का समापन बहुत रहस्यमयी ढंग से किया है। कोई अनुमान नहीं लग पाया कि आगे क्या होने वाला है। बहुत अच्छा ।