मीठा मिरचा ( भाग - 2 )

गतांक से आगे .......
अब " रमन " नें जिंदगी से लोहा लेने का निश्चय किया . जिस समय बंटवारा हुआ ....उस समय आधी शर्दियाँ बीत चुकी थीं ....जो खेत उसके हिस्से आया उसमें आधे खेत में गेहूं और आधे में गन्ना लगा था . उसके महान चाचा गण तो इस फसल में भी हिस्सा चाहते थे लेकिन गांव के पुराने जमींदार ठाकुर श्रीनिवास सिंह नें उस ' दस्तावेज लेखक ' को हिस्सा मांगते ही ....ऐसी कड़ी नज़र से देखा कि उसकी सिट्टीपिट्टी गुम हो गई और " ठाकुर साहब " के अदृश्य सहयोग से ये खेती और खेत " रमन " को मिल गए . गन्ने की कटाई शुरू हुई ....फसल बहुत अच्छी तो नहीं थी लेकिन फिर भी अठारह हजार तो मिल ही गए . खेत खाली होने लगा और " रमन " जाने क्या सोच कर शहर की एक प्रतिस्ठित दुकान से " अधिक पैदावार देने वाला ...रिसर्च संकर प्रजाति का ' हरे मिरचे ' का बीज " लाया और घर के पीछे क्यारी बना कर बो दिया . फिर वह दो हार्स पावर की एक मोटर लाया और घर के हैंडपंप से जोड़ दिया .
कुछ ही समय में " मिरचों की बेहन " तैयार हो गई तो उसने खाली हुए खेत को तीन हिस्सों में बाँट कर एक हिस्से में बड़ी कुशलता और रूचि के साथ मिरचों की पौध लगा दी . शेष बेहन वो स्थानीय व्यापारियों को दे आया ....यद्यपि " रमन " किंचित अनभिज्ञ था फिर भी उसे उचित मूल्य मिल गया .
इसप्रकार धीरे धीरे खेत तैयार हुआ और फिर पूरे खेत में मिरचों की पौध लहलहा रही थी . कहीं क्यारियों में बीज पड़ा था जिसकी की सिंचाई में " टुल्लू " सूँ ...सूँ करता बिजी था . कहीं पौधे लग रहे थे . कहीं पौधे अपनी किशोरावस्था में पहुंच गए थे . कहीं पौधे छोटे छोटे सफेद फूलों से लद गए थे और उन पर रक्षक जैविक औषधियों का छिड़काव हो रहा था . कहीं पौधे छोटी छोटी फलियों से इस तरह लदे थे कि पत्तियाँ कम दिखती थीं और कहीं वयस्क होकर मिरचे " नई मंडी " जाने को बेक़रार दिख रहे थे .
रात तीन बजे .....रमन हाथ में प्लास्टिक लपेटे ....खेत में पहुँचा और बड़ी नफ़ासत से " मिरचे " तोड़ने लगा माँ को कुछ अनुभव हुआ तो वो भी चली आई और उनके पीछे " संज्ञा " भी ......"और खेत में लगा बड़ा बल्ब उन्हें देख मुस्कुरा रहा था ."
जब तक पूरब दिशा लाल होती ...." रमन " की साईकिल पर एक बड़ा बोरा भरके और सिलके और बंधके ....मिरचे सफर के लिए तैयार थे . किताबें पीठ पर लादे ताबड़तोड़ पैडल मारता वो तीस किलोमीटर दूर " नवीन मंडी " पहुंचा .....और वहां उसे अपनी उपज का ठीक ठाक मूल्य प्राप्त हुआ .
साठ किलोमीटर साईकिल चलाने और कड़ी मेहनत के कारण घर पहुँचते ही उसे बुखार हो गया . माँ चिंतित हो कर उसके माथे पर ठन्डे पानी की पट्टियां रख रही थी . दो दिन के बुखार से उसे इतनी कमजोरी हुई कि खड़े होने पर चक्कर आते . लेकिन इस दौरान उसे एक दृश्य तो दूसरा अदृश्य लाभ हुआ . पहला तो ये कि उसके मिरचे वज़नी और तंदरुस्त हो गए और दूसरा ....अपना काम सही ढंग से करने के लिए उसे सोचने का मौका मिला .
शाम को स्थानीय मंडी से उसे उस गाड़ी के संचालक का नाम और नम्बर मिल गया जो प्रति दिन सवेरे छह बजे माल लेकर ' नवीन मंडी ' जाती थी . और फिर उसने गाड़ीवाले से बात की और प्लान बन गया .
अगले दिन तड़के पुनः पूरा परिवार हाँथ में प्लास्टिक के दस्ताने पहने पहुँचा और ' बल्ब उस दिन भी मुस्कुरा रहा था .'
जैसे कि हर व्यक्ति का कोई न कोई मित्र होता ही है .रमन का भी एक बालसखा था ' नीरज ' ...वह भी अपने एक साथी के साथ मित्र धर्म निभाने तड़के ही खेत पर पहुँचा . और कुछ समय बाद चार बोरा मिरचा सिलके तीन साइकिलों पर बंधा हुआ था .
नियत समय पर एक मैक्स ...नियत स्थान पर खड़ी " मिरचों " की प्रतीक्षा करती मिली और समय पर अपने मिरचों के साथ " रमन " मंडी पहुंचा .
आज रमन की किस्मत ...खेत में मुस्कुराते बल्ब की तरह ही मुस्कुरा रही थी . ' मिरचे का भाव ' उस दिन बहुत तेज भगा और माल के बदले पूरे 3800 रुपए लेकर ...रमन , रोडवेज की बस से वापस लौटा . नीरज के घर से साईकिल उठा वह तेजी से भागता अपने घर पहुँचा .
उस दिन वो संज्ञा की पसंद की मिठाई , हनुमानजी का लड्डू और संज्ञा के लिए एक ' प्यारी सी ड्रेस ' लाया था पहली बार " भाई का उपहार " पा कर वो खुशी से झूम उठी . और तत्काल वह ' ड्रेस ' पहन खुशी से नाचती भाई के सामने पहुंची . बहन की खुशी देख
 ' रमन ' इतना खुश हुआ कि ....रोने लगा .
जिस रमन की आंखों में ....पिता की असमय मृत्यु होने पर भी ...माँ और बहन के सामने आँसू न आए . आज वह सुबक रहा था ....अचानक उसे लगा कि उसकी नाभि से एक हूक उठी और जिस बांध को बाप की मौत न तोड़ पाई ...उसे बहन की निश्छल खुशी नें तोड़ दिया . रमन बिलख बिलख कर रो रहा था . घबराई बहन जा कर माँ को बुला लाई . बुरी तरह से रोते ...रमन नें माँ और बहन को अपने अंक में भर लिया और रोता रहा .
ओसारे की दक्षिणी दीवार पर पंडित सीताराम शास्त्री का चित्र फूलमाला पहने था और उसके नीचे ..." रमन " अपने परिवार को अंक में भींचे जोर जोर से रो रहा था . जाने क्या सोच कर माँ नें न तो उसके आंसू पोछे और न रोने से रोका . रमन निढाल सा एक तख़्त पर लेटा ....छत में लगी सरियों को देख रहा था . उसे आज फिर बुखार आ गया .
गर्मियों के दिन थे और शाम के आठ बज रहे थे .
रमन अपने पिता के बालसखा ठाकुर श्रीनिवास सिंह के सामने बैठा था . उसे देख ठाकुर साहब बहुत प्रसन्न हुए ....आवभगत की और हालचाल जाना . सारी बातें समझ वे अपनी अनुभवी आँखो से शून्य में देखते हुए मुस्कुराए और उनके मुँह से एक लम्बी ...हूँ ...निकली .......
उन्हें वह दिन याद आया जब बंटवारे के दिन इस परिवार पर अन्याय हुआ था जबकी ठाकुर साहब वहीं पर थे . उस समय तो वे खून का घूँट पी गए लेकिन आज उनके अंदर का ' राजपूत ' ....उन्हें मित्र धर्म निभाने के लिए कुछ भी कर गुजरने की जिद पर अड़ा था .
उन्होंने फौरन अपने नौकर हरिया को बुलाया और जाने क्या कहा की वह उल्टे पाँव भाग कर गांव में गया और तीन लोगों को बुला लाया . वे तीनों इस तरह बुलाए जाने से सशंकित थे .ठाकुर साहब नें तमाखू मलते हुए हरिया से कहा ....तौ हरिया बिहान तुह का का करे का है ?
आपै के खेते मा रहे का है मालिक.....हरियाबोला 
ठाकुर ने खखार कर गला साफ किया और बोले ......तौ बिहान कब खेते जाबो ?
हरिया बीस साल का मुँहलग घरेलू सदस्य जैसा नौकर था . वह बड़ी ढिठाई से बोला ....काहे खीसा बुझावत हो मालिक ...जौंन बात होय साफ साफ काहे नाही कहते ?
और फिर मामला तय हुआ .
सुबह तीन बजे हरिया अपने तीन साथियों के साथ ...ट्रैक्टर ट्राली लिये " रमन पंडित " के खेत पर पहुंचा और उसने जो खेत की कमान संभाली कि सुबह छः बजते बजते छह बोरा सिलासिलाया मिरचा ट्राली पर लद कर हाइवे पहुँचा .उस बंदे नें रमन के अलावा परिवार के किसी सदस्य को खेत में घुसने न दिया . आज खेत का बल्ब कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रहा था . नियत स्थान पर ट्राली पर लदा मिरचा पहुँचा और रमन के साथ अपनी मंजिल की ओर रवाना हो गया .
जापर कृपा " राम " की होई !
तापर कृपा करै " सब कोई " !!
यह उक्ति आज रमन की जिंदगी में चरितार्थ हो रही थी . 
गरमी के इस मौसम में " मिरचा " आसमान छू रहा था और उस दिन " रमन " पांच हजार नकद ले कर घर पहुँचा .
पूरे खेत में मिरचे की पौध लगी थी . और बेहन बेच कर कमाए गए पैसों से रमन नें खेत के चारो तरफ मजबूत कंटीले तारों की बाड़ लगा दी .
जल्दी ही वो दिन आया जब रमन माँ के अंचल में चालीस हजार रूपए नकद डाल चुका था .
उसके मिरचे " रमन के मिरचे " के नाम से मंडी में मशहूर हो गए थे ....सिर्फ रमन के मिरचों के लिए व्यापारी मंडी में इंतजार करते थे और बढ़ चढ़ कर बोली लगाते थे . क्यों न हो मिरचे थे ही इतने स्वस्थ और आकर्षक . कुछ दिनों के अंतराल से बोए जाने से फसल लगातार तैयार रहती थी .....
..............................................................
तीन साल बाद ....
रमन ग्रेजुएट हो चूका था . 
बहन एक प्रतिस्ठित कान्वेंट में सातवीं कक्षा में पढ़ रही थी और प्रतिदिन स्कूल वैन से स्कूल जाती थी . पढ़ने में अच्छी थी .
रमन का खुद का अधिकारी बनने का सपना गृहस्थी के जंजाल में तार तार हो चूका था और अब वह सपना " संज्ञा " पर आरोपित हो गया था ..रमन नें ठान लिया था कि उसकी बहन अधिकारी बनेगी .
" समय न किसी पर दयावान होता है , न ही किसी की प्रतीक्षा करता है !
वह तो बहता है .
जिसकी गरज हो साथ बहे ....नहीं तो डूब जाय "
.....................
...................
12 साल बाद ....
" रमन " तैतीस का हो गया है .
और " संज्ञा " पच्चीस की . 
रमन के मिरचों की मिठास अब उनके जीवन में दिख रही है . मिरचे प्रतिदिन मंडी जाते हैं . और खड़ंजे की रोड पक्की हो चुकी है .
रमन नें चाय पत्ती और अगरबत्ती की थोक एजेंसी ले ली है .जिसकी तिमाही ग्रोथ लगातार बढ़ रही है . अधबना मकान पूरा बन कर अपने दो मंजिला भव्य रूप में ...पट्टीदारों के अन्याय का मुंहतोड़ जवाब दे रहा है .
" खेत का बल्ब ...अब हैलोजन बन कर सिर्फ मुस्कुराता ही नहीं ...खिलखिलाकर हँसता भी है .
" संज्ञा "  कमिश्नर बन गई है .
स्वर्गीय पंडित सीताराम " शास्त्री " की फोटो ताजे फूलों का हार पहने अपनी पंडिताइन को देख रही है ...." जो अपने जुड़वाँ नातियों को गोद में खिला रही हैं और खुशी से चहकते हुए आवाज लगा रहीं हैं.....अरी बहूरानी पानी गरम कर दे ....मेरे " चंगू मंगू " नहाना चाहते हैं ." 
" रमन पंडित " अपनी नई कार खुद चलाते हुए जा रहे हैं और कार का अतिआधुनिक म्यूजिक सिस्टम मधुर स्वर में गा रहा है .. ....
प्रभु ! आपकी कृपा से सब काम हो रहा है !
करते हो तुम " कन्हैया " मेरा नाम हो रहा है !!
.........................
इति शुभम ...







Comments

Anil. K. Singh said…
बहुत अच्छा। सुखान्त कहानी है जिसे मैं वैसे भी पसंद करता हूं। बहुत अच्छा।
Anil. K. Singh said…
बहुत अच्छा। सुखान्त कहानी है जिसे मैं वैसे भी पसंद करता हूं। बहुत अच्छा।