फलाने

पता नहीं क्यों " फलाने " भइया ऐसे हैं ? लोग उनको सनकी समझते थे ....कुछ लोग तो यहाँ तक सलाह देने लगे कि " फलाने " पगला गए हैं और इनको डॉक्टर को दिखाओ .एक दिन " फलाने " को चाहने वाले ....उनको समझा बुझा कर पागलों के डॉक्टर के पास ले भी गए . बड़ी भीड़ थी वहाँ ....अजीब अजीब सा मुँह बना कर ....अजीब अजीब हरकतें करते लोग यत्र तत्र बैठे खड़े थे .
" फलाने " कभी भी कोई पागलों वाली हरकत नहीं करते थे .केवल मौन हो कर एक ही जगह बैठे रहते और किसी को भी अपने पास फटकने नहीं देते थे . जाने क्या क्या लिखते रहते और उनके " एकांत " में यदि कोई ...चाहे वो कोई भी हो ....बाधा डालता , तब वे इतना क्रोधित हो जाते कि लोग समझने ....कहने लगे ....." लगता है पगला गए हैं !" यह सब अचानक नहीं हुआ .....' छह साल पहले वे हफ्ते भर के लिए कहीं गए और जब वे लौटे .....तभी से यकायक उनमें यह परिवर्तन आ गया और वे एकांत खोजने लगे . दाढ़ी बाल बनवाना बंद कर दिया और अब तो उनकी दाढ़ी उनकी नाभि तक झूलती है . दरमियानी उमर के " फलाने " बूढ़े नहीं थे लेकिन लगते बूढ़े जैसे थे .
तभी कम्पाउंडर जोर से बोला .....11 नंबर !!
और फलाने को अगल बगल से पकड़े " चंगू मंगू " नें डॉक्टर के केबिन में कदम रखा . फलाने ने झटक कर अपने आप को छुड़ाया और कुर्सी पर बैठे .....डॉक्टर ने उन्हें एक गहरी नजर से देखा और डॉक्टर की भाव भंगिमा देख कर ....फलाने नें भी उन्हें गहरी नजर से देखा .ऎसा लगा जैसे दो पहलवान अखाड़े मैं उतरनें से पहले .....एक दूसरे का मुआयना कर रहे हों .
हाँ जी ! तो आप का नाम क्या है ?...डॉक्टर बोले .
फलाने हैरानी से उसे देखते हुए बोले ....' परचा आपके सामने है . यहीं से बैठ कर मैं अपना नाम पढ़ सकता हूं ...जब कि डॉक्टर की राइटिंग पढ़ पाना आसान नहीं है और आप मेरा नाम पूछ रहे हैं !'
डॉक्टर नें पलकें झपका कर सहमति से सिर हिलाया .
डॉक्टर नें आगे कुछ कहने के लिए मुँह खोलना चाहा तभी फलाने बोले ....' एक मिनट साहब ! मैं आपसे अकेले में कुछ बात करना चाहता हूँ .' 
डॉक्टर के इशारे पर चंगू मंगू बाहर चले गए .
आधे घंटे तक वे डॉक्टर से जाने क्या क्या बतियाते रहे और डॉक्टर सिर हिलाते रहे और घंटी बजाई ......कम्पाउंडर अंदर आया तो बोले ...इनके साथ जो लोग हैं ,उन्हें अंदर भेजो .
चंगू मंगू अंदर आए . 
डॉक्टर नें चश्मा उतार कर उसका सीसा पोंछा और आँखों पर चढ़ा कर बोले ..." ये दवाएं हैं .नियम से दिलवाइए ." 
और फिर दूसरा मरीज अंदर आया ..." फलाने " अभी अपनी बात पूरी नहीं कर पाए थे और अभी वे डॉक्टर से बतियाना चाहते थे लेकिन उनकी इच्छा अधूरी रह गई और वे बाहर निकल आए . पीछे से डॉक्टर नें कहा ...." दवा दिखा लीजियेगा . जो लिखी है वही लेना ".
मेडिकल स्टोर से एक महीने की दवा लेकर " मंगू " डॉक्टर से मिला . डॉक्टर नें दवा देखी भी नहीं और बोले ...." आपका मरीज पागल या मानसिक बीमार नहीं है ...उसे डॉक्टर की जरूरत नहीं है . फिर भी ये दवाएँ उन्हें देते रहिए . कोशिश कीजिए वे खुश रहें और उन्हें पागल वागल कहना बंद कर दीजिए ." 
मंगू बहार आए . फलाने गाड़ी में बैठे मुस्कुरा रहे थे वे बोले ....क्या कहा डॉक्टर नें और हंसने लगे . घर पहुँच कर ...फलाने की बीवी को मंगू नें वही बताया जो डॉक्टर ने कहा था और वह हैरानी से उसका मुँह देखती रही .
एक महीना बीतने को आया और एक दिन " फलाने की बीवी " उन्हें साथ लेकर बस में बैठ कर डॉक्टर के यहाँ गई . पिछली बार अपने किसी काम से " चंगू मंगू  " शहर गए तो फलाने को भी लेते गए . चंगू मंगू ...फलाने के भतीजे थे ...सगे नहीं थे ....पटीदारी का सम्बन्ध था लेकिन ' गवईं राजनीति ' के माहिर खिलाड़ी थे . इलेक्शन आने वाले थे सो इस तरह की छोटी मोटी मदद कर अपना वोट पक्का करने का जुगाड़ करते थे .
पिछली बार की तरह इस बार भी वहाँ बड़ी भीड़ थी .
वहाँ " ओरिजनल पागलों " को देख कर फलाने की बीवी घबरा गई और सोचने लगी ....' तो ये हैं पागल लेकिन उसके फलाने तो ऐसे नहीं हैं . लगता है मंगुआ सही कह रहा था .' 
परचा जमा हुआ और चालीसवां नंबर लगा . लेकिन हैरानी हुई जब दसवें नम्बर का मरीज आया और कम्पाउंडर नें फलाने को बुला लिया . फलाने अपनी बीवी के साथ डॉक्टर के पास पहुंचे . डॉक्टर ने फलाने से पूछा ....कैसे हैं आप ? तभी फलाने की बीवी बात काट कर बीच में बोली ...' वैसे ही हैं. दवइया कउनो फ़ायदा न की .' डॉक्टर नें उनसे बाहर बैठने को कहा और उस दिन ...एक घंटे तक फलाने डॉक्टर से बतियाते रहे . 
इधर बीवी बेचैनी से पहलू बदलते हुए बड़बड़ा रही थी .....' जाने कौन सा इलाज कर रहा है डाक्टरवा . येतने लोग बैठे हैं का सबका ऐसे ही बइठावत है .' उस दिन जब फलाने डॉक्टर के केबिन से निकले तो बड़े खुश दिख रहे थे .
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गोधूलि की बेला थी और सूर्यदेव अस्ताचल गामी हो रहे थे और " फलाने " शब्जी लेकर ....गुनगुनाते हुए घर पहुंचे और सीधे घर में घुस गए . रसोई के दरवाजे तक पहुंचे और उनकी पत्नी आहट सुन कर पीछे घूमी और जोर जोर से चिल्लाने लगी ...." अरे ! कौन हो तुम सीधे घर में घुसे चले आये . चलो बाहर बइठो. फलाने अभी बाहर हैं . चलो चलो निकलो बाहर ." और फलाने मुँह फाड़े हक्का बक्का उसका मुँह देखते रहे और वापस लौट कर दालान में पड़ी कुर्सी पे जा कर बैठ गए .
इतने में फलाने का दस वर्षीय पुत्र ....ट्यूशन पढ़ कर घर लौटा .साईकिल खड़ी की . ओसारे में आया और एक निगाह ' फलाने ' पर डाल कर अंदर गया और अपनी माँ से बोला ....' अम्मा !कौन आए हैं ? बाहर बइठे हैं .' पता नाही कौन है ...घर में घुसे चले आए जब डाटेन तब गए .....अम्मा ने जवाब दिया .
लड़का एक हाँथ में पानी और दूसरे हाथ की प्लेट में तीन " पारले .जी " लेकर बाहर आया और फलाने के सामने रख कर ....अंदर भाग गया .
तभी " फलाने " का पालतू खूँखार कुत्ता आया . बड़ा कटहा था .कई लोगों का मांस नोच चुका था .दबंग इतना कि कोई भी कुत्ता उसके सामने न खड़ा होता .....अगर रोटी खा रहा होता तो ' डब्बुआ ' के आते ही छोड़ कर भाग जाता . " डब्बू " फलाने के कुत्ते का नाम था . कुत्ता मस्ती में टहलता हुआ आया और पहले साईकिल के पिछले पहिये को सूंघा और टांग उठा दी . ओसारे में किसी अजनबी को देख कर उसने भौंकना शुरू कर दिया . उसकी आवाज सुन कर माँ और बेटा भाग कर आए कि कहीं " डब्बुआ " उस आदमी को काट न ले .
.....कुछ देर तक डब्बू भौकता रहा और फिर  फलाने के सामने बैठ कर उनका मुँह देखने लगा . पास आया और सूंघा फिर पैरों से लिपट कर कूँ कूँ करने लगा .   " फलाने " नें तीनों बिस्कुट " डब्बू " को खिला दिए .
ये दृश्य देख कर फलाने की बीवी को भारी आश्चर्य हुआ और वो उनके पास आई और " फलाने " से उसकी आँखें चार हुईं और फलाने ...मुस्कुराए . उनकी पत्नी जोर से चिल्लाई ...." अरे ! ई तुम हो . ई का रूप बनाये हो . तोहार दाढ़ी मूँछ कहाँ गई .तुहूँ रहि गयो पागल के पगलै .अरे बोल तो दिए होते ."
फलाने स्थिर आँखों से आसमान देख रहे थे और सोच रहे थे .... " आदमी से ज्यादा तो ई कुत्ता समझदार है फौरन पहिचान लिया और ये हमारा लड़का जिसे गोद में खिलाया और ई मेहरारू सारी जिंदगी जिसके साथ सोया खाया पिया ऊ न पहिचान पाए ."
" फलाने " अपने कमरे में गए और सीसा देख कर खुद ही चौंक गए ...कि ई कउन है ? और मुस्कुराने लगे . भोजन तैयार हुआ और फलाने नें चौके में बैठ कर भोजन किया . बरतन वरतन माँज मूँज कर साफ सफाई करके उनकी बीवी उनके पास आई और रजाई में घुस कर उन्हें आलिंगन में बांध लिया और शोखी से बोली ...." आज बड़े सुन्नर लगि रहे हो ...आज तो तुहे देखि के हमारी नीयत खराब हुई गई "....और .......
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बात सिर्फ इतनी थी कि छह साल पहले " फलाने " लेखकों के एक विशिष्ट सेमिनार में अपने एक लेखक मित्र के साथ गए थे . वहाँ उन्हें जाने क्या लगा कि उन्होंने लिखने का फैसला कर लिया . और उन्हें ऐसी धुन सवार हुई कि उन्होंने छह साल में " दर्शन और मनोविज्ञान " पर बारह किताबें लिख डालीं . इस साधना में वे इतना डूब गए कि उन्हें अपना भी होश नहीं रहा . बारह में से दस किताबें उन्होंने विभिन्न प्रकाशकों को भेजीं लेकिन हर जगह से वे वापस आ गईं .
दो महीने पहले उस पागलों के डॉक्टर की सलाह पर उन्होंने इन किताबों को एक विशिष्ट प्रकाशक को भेजा . आज ही उन्हें पता चला था कि उनकी तीन किताबें प्रकाशन के लिए चयनित हो गईं . प्रकाशक नें उन्हें पचास हजार के चेक के साथ ....कुछ अन्य किताबों को रिव्यू करने और ठीक से टाइप करवाने का आग्रह पत्र भेजा था ....सुबह उन्हें रजिस्ट्री मिली .दोपहर में चेक जमा किया और शाम को दाढ़ी बाल बनवा कर घर लौटे .
यह कहानी सुनने के बाद उनकी पत्नी बोली ...तो येही लिए ऊ डाक्टरवा तुह से घंटा भर बतियावत रहा मंगू ठीकै कहत रहा और बीवी की बाहों में जकड़े फलाने कह रहे थे ....पचीस साल से तुम्हारे साथ हैं हम ...जब तुम ही हमें अंदर से तो क्या बाहर से भी न पहिचान पाई तो दुनिया क्या पहिचानेगी ? देखो "डब्बू " नें  पहिचान लिया .




Comments

Anil. K. Singh said…
कहानी बहुत अच्छी है और नयापन भी है। विषय रुपान्तर जरूरी है। बहुत अच्छा।
Anil. K. Singh said…
कहानी बहुत अच्छी है और नयापन भी है। विषय रुपान्तर जरूरी है। बहुत अच्छा।