ऊ वाली बात

अपने मकान के ओसारे में लेटा " पुद्दन " अचानक हड़बड़ा कर उठ बैठा ....गांव के परधान उसके मोहरे पर खड़े थे . वह झटके से उठना चाहता था लेकिन ...
हाय री कमजोरी ....वह उठ नहीं सका और पत्नी को आवाज दी ....लेकिन कोई जवाब न पाकर वह जोर से चिल्लाया .....और उसे खाँसी आ गई .
' लेटा रहौ ....लेटा रहौ . हम तो तुहै देखै आयन हैं . सुनित है ...तबियत खराब है !....'....परधान जी बोले .
' हाँ बाबू ! जाने का भै है '......पुद्दन बोला .
'दवइया करावत हौ ?' ....परधान जी नें पूछा .
."...कहाँ से दवइया होई बाबू ....इहाँ खाय के नहीं . सब का कारड मिला हमै नाही ....".....पुद्दन कुछ दार्शनिक परन्तु शिकायती स्वर में बोला .
'अच्छा ! ठीक है हम कोटेदार से बात करब .' ....... .....परधान जी नें आश्वासन दिया .
ठीक है बाबू .....फिर जोर से पत्नी को बुलाने की कोशिश में " पुद्दन" को जोर की खाँसी आयी ...खाँसने के बाद वह बड़बड़ाया ---- जाने कहाँ मरि गई . सुनतै नाही है .
परधान जी चले गए .
और " पुद्दन " के मन में उथल पुथल मच गई .वह सोचने लगा ---- " काहे आवा रहै परधनवा सार ...यतने दिन तौ कबहूँ हाल चाल न पूछिस !
तभी हरहराती हुई तेज हवा की तरह उसकी पत्नी आयी और बोली --- " काहे चिल्लात रह्यो ? तोहरे नाते अब हम हारे सिवाने न जाई . " 
इतना कह कर वो हैंडपंप पर गई और नल के नीचे से चिकनी मिट्टी निकाल कर वो हाथ मटियाने लगी और बड़बड़ाई ---- " पंदरह दिन से खटिया पकरे हैं ...न जर न बोखार ...हाँ इ खांसी जरूर करेजा चाले डारत है ." हाँथ पैर धोकर वो " पुद्दन" के पास आयी तो पुद्दन फुसफुसाकर बोला --- " परधनवा आय रहा , जाने कौन बात है ? हमार तो करेजा बैठा जात है . 
पुद्दन की बीवी का चेहरा फक्क हो गया और वो बोली ----- " सूनो ...' ऊ वाली बात ' जउन तू हमे बताये रह्यो ....केहू और से तो नहीं बतायो ?
न हम कुछ न बोलेन ---- पुद्दन बोला .
तौ चुप रह्यो ...इहे मा भलाई है --- पत्नी उसे समझाती हुई बोली . 
अच्छा चलो कुछ खाय लेव ....तोहार तो जैसे भुखियै मर गई . तू ठीक से खात्यो नाही तो हमहू न खाय पायित .---- पत्नी नें कहा .
नाही मन नाही करत --- पुद्दन बोला .
अरे ! तू नहके मरे जात हो . नाऊ मरे सहर के अनेसा 
उठो हाथ धोवो .------ पत्नी बोली .
पुद्दन उठा ...हाथ धोकर चौके में बैठा और उसकी बीवी ने उसके सामने मोटी रोटी , पिसा हुआ नमक मिरचा और आलू बैगन का भरता रखा . गरम गरम चार रोटी और एक गिलास दूध खा पी कर ...पुद्दन अपनी खटिया पर लेट गया . शर्दियाँ शुरू होने वाली थी . रात में रजाई तो नहीं लेकिन कुछ ओढ़ने की जरूरत पड़ती थी . 
.........................................................................लेटे लेटे पुद्दन को लगभग पन्द्रह दिन पहले की घटना याद आई -------

वो साइकिल की हैंडिल पर हँसिया लटकाये ...कैरियर पर रस्सी बांधे ...घास काटने जा रहा था . घास काट कर गट्ठर बनाया और उसे जोर की हाजत महसूस हुई . वो सइकिल , हसिया , घास सब खेत पर छोड़ कर पास ही परधान की बोरिंग पर गया . गड्ढे में पानी था . बगल के गन्ने के खेत में दो मीटर अंदर जाकर उसने शंका समाधान किया और पानी का उचित प्रयोग किया .

चारो तरफ गहन निःशब्दता व्याप्त थी और शाम के छह बजे ...पंछी सारे आसमान को नाप कर अपने घोसलों की तरफ लौट रहे थे . सामने खेत में साइबेरियन सारस का जोड़ा प्रेमालाप कर रहा रहा था और " पुद्दन " खेत की मेढ़ पर खड़ा हो कर कच्छे का नाडा बांध रहा था .

इतने में उसे पत्तियों की सरसराहट सुनाई दी . साँझे बनिया की अठारह साल की लड़की उसे गन्ने के खेत में घुसती दिखी . समय भी ऐसा था सो अपना सर झटक पुद्दन वापस अपने खेत में आया और घास का गट्ठर उठा कर सइकिल पर लादा और उसे बांधने के लिये रस्सी खोलने लगा ...तभी उसे अपने मोबाइल का ख्याल आया ...." पिछले साल सुकई पँजाब से आया था सुकई उसका बाल सखा था और उसके पास एक स्मार्ट फोन था उस साले सुकया नें उसे उस फोन पर ऐसी ऐसी फिल्में दिखाईं जिन्हे देख कर उसकी साँसे उखड़ने लगतीं और वो तुरंत भाग कर अपनी बीवी के पास भागता और वही सब करने की कोशिस करता लेकिन बीवी उस तरह न करती न करने देती . फिर जो वो देखता उसे अपनी बीवी को दिखाता और फिर उसकी बीवी भूखी शेरनी बन जाती .....फिर भी वो न करती जो फिल्म में देखा था ." ...सुकया जाते जाते वो स्मार्ट फोन " पुद्दन " को दे गया .

अब ऐसी महत्व की चीज गायब हो जाय तो ..उसने कुरता ,पायजामा ,अंडरवियर जहाँ भी मोबाइल रखना संभव था ...सब चेक किया ...अरे .रे रे उस बनियवा की लड़की को देखे के चक्कर मा मोबाइलिया तो हम मेड़वे पे छोड़ आये ....बड़बड़ाता हुआ पुद्दन सड़फड़ सड़फड़ मेढ़ पर पहुंचा . मोबाइल मौजूद था . उसकी जान में जान आई .
उसने मोबाइल उठा कर जेब में रखा और उसे एक मादक सीत्कार सुनाई दी जो कामकेलि के दौरान ही निकलती है और पुद्दन के कान खड़े हो गए और वो दबे पाँव आवाज की दिशा में गया गन्ने के भीतर पत्तियों की सरसराहट को दबाता वो अभी तीन मीटर अंदर गया था कि ......उसने जो देखा उसे देख कर उसके पाँव जड़ हो गए और शरीर में चीटियां रेंगने लगीं ....वो लड़की सामने गन्ने को तोड़ कर बनाए गए बेड पर निर्वस्त्र लेटी थी . वह अपना ही शरीर नोचते हुए अपने मुँह से वही आवाजें निकाल रही थीं जिन्होंने पुद्दन को यहाँ तक पहुंचने के लिए मजबूर किया था .

और लड़की की नज़र पुद्दन पर पड़ी . पुद्दन पचीस साल का तगड़ा नौजवान था .उसकी बीवी भी बाइस साल की सांवली और सुन्दर थी लेकिन यहाँ तो .....पुद्दन कुछ समझता इसके पहले ही वापस घूमा और उस लड़की नें पुद्दन को धर दबोचा और .....और फिर क्या ...तूफान आया ...घनघोर बारिश हुई ...और फिर मौसम साफ हो गया .

इतना मजा तो कभी उसकी नौजवान बीवी नें न दिया .जउन जउन फिलिम मा देखा सब कुछ उकिहिस ....यही सब सोचता वो घर लौटा .

और एक दिन ....वही लड़की गाँव के प्राइमरी स्कूल कक्ष में परधान के साथ खेल रही थी कि तभी न जाने कैसे " पुद्दन " वहाँ पहुँच गया . परधान को देख कर पुद्दन पीछे भागा . उस लड़की ने परधान से जाने क्या कहा कि वो जोर से चिल्लाया -----" पुद्दनवा ! ए पुद्दनवा !!" लेकिन पुद्दन को कुछ सुनाई न दिया .

आज दस दिन हो गए इस घटना को तभी से वो सशंकित था . इसी बीच नदी पार सांडों का झुंड खेदने गया और असमय भीग गया . तभी से खाँसी जान लिये ले रही है .....ठीकै नहीं हो रही . 
तभी उसकी पत्नी की आवाज आई --- सोइ गए का ?
नाही अब ही कहाँ नींद आयी ...पुद्दन कुछ सोचते हुए बोला . पुद्दन की बीवी उसके सीने पर गरम तेल की मालिश करने लगी ....फिर उठी और कुछ देर के बाद " काढ़ा " बना कर लाई और पुद्दन पीने लगा . 
कइसन काढ़ा है ई ...पिये के बाद दुइ घंटा बड़ा आराम रहत है ...फिर खाँसी आवे लागत है -- पुद्दन नें अजीब सा मुँह बना कर कहा .
ठीक हुई जाई ...तु चिंता न करो . दुइयै दिन से तो पिलाय रहे हैं --- पत्नी नें आश्वस्त किया ...और फिर वो अलथी पलथी मार कर ...पुद्दन के बगल में बैठ गई और दोनों हाँथो से उसके पूरे शरीर पर गरम तेल की मालिश करने लगी .
चारो तरफ सन्नाटा था . उसके घर के अगल बगल इने गिने घर थे और रात के इस समय कुत्तों और झींगुरों की आवाज के अलावा कुछ सुनाई नहीं दे रहा था .
और वो दृश्य जो अभी अभी पुद्दन कल्पना में देख रहा था ...उसे याद आने लगा . 
वो अपनी बीवी से बोला --- काहे रे जेतना मजा तू देत है वो से जादा मजा भी होत है का ?
हम तुमसे कइयो बार कहि चुके हैं ...हम रंडी नाही . जो तुम चाहत हो ऊ हम नाही कर सकित --- उसकी बीवी तमक कर बोली .
चलो ठीक है जउन मिलत है ओही मा संतोष करै क चही ...और उसने अपनी बीवी को बिस्तर में खींच लिया और यथार्थ ,इतिहास ,वर्तमान और कल्पना में खो गया .

" यथार्थ कुछ और था ...कल्पना कुछ और ." 

तीन ही दिन में पुद्दन चंगा हो गया . गांव में कहीं कहीं अलाव जलने शुरू हो गए थे . अब दिन डूबने के बाद ठंडी होने लगी थी . पुद्दन आग जलाए कौरा ताप रहा था .उसकी बीवी घर में थी और ...

परधान जी आ गए और खुद ही बिड़वा सरका कर बैठ गए .और बोले -- कहो पुद्दन अब तबियत कैसी है ? परधान को देख कर पुद्दन फिर सशंकित हो गया .

ठीक है बाबू अब तो ....पुद्दन बोला 
कुछ देर तक मौन छाया रहा और फिर पुद्दन बोला ---
--- बाबू आपन बताओ .
हमरौ ठीकै है --- परधान जी बोले 
फिर चुप्पी छा गई .............
अब पुद्दन को विश्वास हो गया कि ...कउनो बात है जरूर !!
हिम्मत जुटा कर बोला -- बाबू ऊ दिन हम कुछ नाही देखन .
कब ? परधान बोले
पुद्दन धीरे से बोला ---- अरे उहे दिन ...जब आप स्कूल के कमरा मा ....आप रह्यो और ऊ ...
परधान बीच मे ही बात काट कर बोले ...." अरे ऊ ! भइया माल टनाका है ....जवानी छलकी पड़त है ..खुदै हमरी गोद मा आ गिरी तो हम का करि सकत हैं 
पुद्दन बोला --बाबू हम तो सोचेन आप कुछ कहे चाहत हो. ऊ दिन आप पुद्दन ..पुद्दन गोहराए तो.... लेकिन हम रुकब मुनासिब न समझेन .
परधान बोले --- अरे ! हमका कछू यादै नहीं .
तब तक पुद्दन की बीवी दो गिलास में दूध ले आई . पुद्दन गिलास उठाए और परधान को दिये . फिर बोले ----- तौ बाबू का बात है ? सच बताओ हाले चाले आवत हो या कउनो अउर बात है ?

परधान गला खखार कर बोले --- " अरे नाही हम तो ई कहे आये रहन कि तीन महीना बाद परधानी के चुनाव है अउर अबकी सुरक्षित सीट है . हम चाहित है ई बखत तू परचा दाखिला करौ और लड़ि जाव परधानी . हम मदत करब .

" पुद्दन जानता था कि वो बलि का बकरा बनाया जा रहा है .इलेक्शन जीत कर प्रधान का नाम तो " पुद्दन " होई लेकिन प्रधान की मोहरिया तो परधनवै सारे के पास होई ."

लेकिन आज वो खुश था ....एक तो उसकी खाँसी ठीक हो गई ...कल रात से नाही आई . दुसरे परधनवा " ऊ वाली बात " न कही जउन ऊ सोचत रहा !!











Comments

Anil. K. Singh said…
कहानी मजेदार तरीके से पेश की गयी है गांव की कहानी को गांव का आदमी ही ढंग से पेश कर सकता है। बहुत अच्छा।
Anil. K. Singh said…
कहानी मजेदार तरीके से पेश की गयी है गांव की कहानी को गांव का आदमी ही ढंग से पेश कर सकता है। बहुत अच्छा।
Anonymous said…
प्रशंसनीय प्रस्तुति