कहानी की तलाश : और वे कुछ करना चाहते थे !!!

कहानी की तलाश में वह घर से बाहर निकला . सामने वाली लड़की अपने घर के बाहर ....शिवलिंग का जलाभिषेक कर रही थी . अभी दो साल पहले ही उसका विवाह हुआ था और तीन महीने पहले ही उसके पति की अकालमृत्यु हो गई थी . और अब वह अपने मायके में थी .
उसे इस तरह श्रद्धा से जलाभिषेक करते देख वो खड़ा हो गया और जाने क्यों एकटक उसे देखता रहा . उसने एकाग्रचित्त हो पूजा की और घर के अंदर चली गई .उसे पता ही नहीं चला कि कोई उसे देख रहा है .
वह अपने रास्ते चल दिया . कहानी की तलाश में वह गांव के बाहर काफी दूर पुराने बाग में " घुमंतू आदिवासी " .....नट लोगों के काफिले में पहुंचा . इन दिनों उन लोगों का " डेरा " वहीं लगता था . चारो तरफ पन्नी और बांस के सहारे बने अस्थाई टेन्ट लगे थे .दर्जनों मुर्गे , मुर्गियां और बटेर इधर उधर घूम रहे थे . तीन खतरनाक दिखने वाले कुत्ते उसकी तरफ गुर्राते हुए बढ़े ....तभी करीब सत्तरह अठारह वर्ष की एक अतिसुन्दर लड़की न जाने किस भाषा में बोली ....कि वे कुत्ते शांत हो गए .
लड़की उसकी तरफ बढ़ी और बड़ी बेबाक निगाहों से उसे देखा जैसे उसे तौल रही हो . कुछ देर तक एकटक देखने के बाद उसने उसके वहां आने की वजह पूछी .....तो उसने जवाब दिया ....' भैंस गरम है'
लड़की बोली ...' कहाँ है भैंस ?' वो बोला ....' अभी सिर्फ पूछने आया हूँ  , रेट क्या है ? '
वो बोली ....पचास रुपए .
ठीक है कल आऊंगा ...अब ये बताओ देशी अंडा मिलेगा ?....वो बोला .
उसने कहा ....हाँ मिलेगा सात रुपए का एक .
उसने फिर कहा ....उबला अंडा खाना चाहता हूँ .......
मिलेगा ?
बैठना पड़ेगा और आधा घंटा लगेगा ....दस का एक मिलेगा .
और उसने उसे पचास रुपए दिए .....इस तरह आधे घंटे के बाद वह देसी अंडो का स्वाद ले रहा था .
पाँच अंडे खाने के बाद वो बोला ....शाम को " दारू "
मिलेगी ?
वह बोली ....मिलेगी ...लेकिन दो घड़ी रात होने पर अकेले आना ....नहीं तो दारू नहीं मिलेगी .
उसकी कहानी की तलाश लगभग पूरी हो चुकी थी ...लेकिन उसे नहीं पता था कि इस कहानी में एक दिलचस्प मोड़ आने वाला है ....
वह नियत समय पर डेरे पर पहुँचा . ऐसा लगा लड़की उसी का इंतजार कर रही थी . डेरे पर करीब दस औरतें अलग अलग चूल्हों पर खाना बना रहीं थीं . बच्चे कुछ सो रहे थे और कुछ हुड़दंग मचा रहे थे . मर्द नशे की तरंग में थे .
उसका डेरा उन लोगों से बीस फिट की दूरी पर था ....उसके वहाँ पहुँचने का उन सब पर कोई असर न पड़ा .
उसने " उसके लिए " एक साफ सुथरा बोरा बिछाया . इस समय वह ' सुबह ' से ज्यादा सुन्दर लग रही थी . कुछ देर बाद वह एक बोतल शराब ,दो गिलास ,पानी और एक पत्ते पर पांच छह अंडे और नमक लेकर आई और उसके सामने आ कर बैठ गई .
एक घंटे बाद पूरे डेरे में नीरवता छाई हुई थी ....शुद्ध महुआ और देसी अंडे की जुगलबंदी नें असर दिखाया और वह देर रात गिरता पड़ता अपने घर पहुंचा . फिर तो यह रोज का नियम बन गया .एक दिन दोनों साथ बैठे दारू पी रहे थे . रात गहराने लगी थी . पूरा डेरा नींद की आगोश में जाने की तैयारी लगभग कर चुका था . शराब अपना रंग दिखाने लगी थी .....कि तभी बगल के टेंट से ' सिसकारियों ' की आवाज आने लगी . इस आवाज को पहचान कर उसकी साँसे उत्तेजित होने लगीं . तभी लड़की ने अपनी बेबाक नज़रों से जाने क्या इशारा किया कि दोनों गुत्थमगुत्था हो गए .
पूरे साठ दिन वो काफिला वहां रहा और लगभग चालीस दिनों तक ...." वे दोनों " प्रतिदिन मिलते रहे . और एक दिन काफिला न मालूम कहाँ गया ? दस साल बाद ...


 वे ....एक ख्यातिप्राप्त ....साहित्यकार थे. और  जूनियर सबार्डिनेट की....परीक्षा
पास कर सरकारी नौकर हो गए थे . घटनाएँ कुछ इस तरह घटीं कि उसी सामने वाली विधवा लड़की से उन्होंने विवाह किया .
गांव अब गांव नहीं रह गया था . पास के शहर के विस्तारीकरण में वह गांव भी विकास की भेंट चढ़ गया . जिस बाग में उन्होंने अपनी नौजवानी के शुरूआती तूफानी और दिलफरेब दिन बिताए थे ,वहां नमकीन बनाने की एक विशाल फैक्ट्री खड़ी थी और गांव तो अब शहर का रूप ले चुका था .
बीते दस सालों में वह " कारवां " फिर नहीं आया .उनका वैवाहिक जीवन मजे से कट रहा था .

प्रयागराज में कुंभ मेला लगा था ....और वे सरकारी कर्मचारी होने के नाते ...मेला ड्यूटी में सेक्टर मजिस्ट्रेट के तौर पर तैनात थे . आने जाने का मार्ग बाधित न हो इस कारण रात में अकेले ही मेला स्थल का अपनी जीप से निरीक्षण कर रहे थे .एक स्थान पर उन्होंने कुछ औरतों को लड़ते देखा ....वे अपनी गाड़ी से उतर कर उन स्त्रियों के पास गए और झगडे का कारण जानना चाहा . उनकी बकझक सुनते सुनते उन्होंने अपना चश्मा उतारा और रूमाल से साफ करने लगे . वापस आँखों पर चश्मा लगा कर उन्होंने जैसे ही सिर उठाया ....एक औरत को अपनी तरफ ध्यान से देखता पाया . उन बेबाक नजरों को देखते ही उन्होंने उसे तुरंत पहचाना ....आँखे चार हुईं और वो औरत एक दम चुप होकर उन्हें एकटक देखने लगी ....अचानक लोकलाज की सारी मर्यादाएं भूल कर वह स्त्री उनसे लिपट गई और बाबू - बाबू कहते हुए फूट फूट कर रोने लगी .
उसे अपनी जीप में बैठा कर वे अपने कैम्प कार्यालय पहुंचे उसे भोजन करवाया और हालचाल पूछने लगे . इस क्रम में उन्हें जो जानकारी मिली उसे सुन कर उनके पैरों तले जमीन खिसक गई .
उसने अभी तक शादी नहीं की थी . उसे कबीलेवालों ने निकाल दिया था क्योंकि वह गर्भवती थी . मेहनत मजदूरी और मेले ठेलों में छोटी मोटी चीजें बेच कर वह किसी तरह गुजर बसर कर रही थी .
अगले दिन वह अपने नौ साल के लड़के के साथ आई ....उस लड़के को देख कर उन्हें अपनी " नौ साल की तस्वीर याद हो आई .
वह " अपने नौ साल के लड़के " और " उसकी माँ " के लिए कुछ करना चाहते थे ...लेकिन कैसे ? ये उनकी समझ में नहीं आ रहा था !!!
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Comments

Anil. K. Singh said…
कहानी बहुत पसंद आयी। कहानी साहित्यिक कहानी के बहुत करीब है। इसे आधुनिक कहानी में स्थान मिल सकता है। यह पूरी तरह काल्पनिक है या किसी घटना से जुड़ी है कुछ कह नहीं सकता। बहुत अच्छा।

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