रेवा : विशेष अभी शेष है !!

(प्रस्तुत कहानी सर्वथा काल्पनिक है . किसी भी व्यक्ति से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है )
 वो नाईट शिफ्ट की ड्यूटी कर के अपने " कॉल सेंटर " से निकली . उसके मुख पर रात भर जागने की थकान साफ़ साफ़ परिलक्षित हो रही थी . उसने अपने ' स्कूटर ' का लॉक खोला और जम्हाई लेते हुए स्टार्ट किया . ठंडी के सुबह सात बजे वह डेयरी पहुँची और एक लीटर दूध का पैकेट लेकर अपने घर पहुँची .उसने अभी कॉलबेल पुश भी न की थी कि उसकी उपस्थिति का भान होते ही उसके छह साल के छोटे भाई 
' आलोक ' नें दरवाजा खोल दिया और उससे लिपट गया .
वह नहा धो कर फ्रेश होकर जब बाहर आई तो उसकी मम्मी नें उसका मनपसंद नाश्ता बटर टोस्ट उसके आगे रखा और उसी समय ' आलोक ' की स्कूलवैन नें हॉर्न बजाया . मम्मी ने जल्दी से आलोक का टिफिन उसके बैग में रखा , वाटर बैग उसके गले में लटकाया और स्कूल बैग लेकर ...उसकी उंगली पकड़ जल्दी जल्दी बाहर चली .
दीदी बाय कहता हाँथ हिलाता और अपनी मम्मी को गुडलक किस देकर आलोक अपनी वैन में जा बैठा ..

सुबह के नौ बज गये थे और बारह बजे से " रेवा "
की क्लास थी ....वह एक प्रतिष्ठित पैरा मेडिकल कॉलेज से " ओ .टी .टेक्नीशियन " का डिप्लोमा कोर्स कर रही थी .
बेटी ..कॉलेज गई ..बेटा स्कूल अब " आरती " घर में अकेली थी . जब तक घर भरा रहता तब तक तो सब ठीक रहता लेकिन अकेले होते ही वो अवसाद में डूब जाती थी .उसका अन्तर्मन बीता हुआ कल दोहराने लगता . ड्राइंगरूम में बैठी वो यूँ ही दरो दीवार देख रही थी कि उसकी नज़र अपने स्वर्गीय पति की मुस्कुराती तस्वीर पर पड़ी और वो तत्काल पांच साल पीछे चली गई ..................
" रेवा " के पिता पांच साल पहले ' हार्ट अटैक ' से मर गए , जब रेवा केवल पंद्रह साल की थी और उसका भाई मात्र एक वर्ष का . रेवा के पिता एक " होजरी बेचने वाली फर्म " के साझेदार थे . गांव में उनकी यही कोई चार एकड़ खेतीयोग्य ज़मीन थी जो उन्होंने लीज़ पर दे रखी थी और उससे उन्हें तकरीबन चालीस पचास हजार रूपए सालाना मिल जाते थे . अचानक उनके इस तरह गुज़र जाने से ...एक हॅसते खेलते परिवार के सिर से " कमाने वाले का साया उठ गया और आरती की जिन्दगी ....आँसुओं में डूब गई .
अभी उनकी " राख " भी ठंडी न हो पाई कि उनकी फर्म के अन्य साझेदारों नें कूटरचित दस्तावेज़ तैयार कर उन्हें ....फ़र्म से ' बेदख़ल ' कर दिया .
उनके चले जाने के बाद उनकी पत्नी ' आरती ' नें बच्चों का मुँह देखा और बड़ी हिम्मत से परिवार की कमान संभाली .
शहर से चालीस किलोमीटर दूर ....गांव में उनका खंडहर हो चुका मकान था . बहुत कम आवागमन और संवादहीनता के चलते वहां का सामाजिक संपर्क भी न के बराबर था .
आरती नें गांव की अपनी पूरी प्रॉपर्टी एक प्रॉपर्टी डीलर के माध्यम से डेढ़ करोड़ रूपए में बेंच कर और अपना शहर का अच्छा खासा मकान भी बेच कर पूरे पांच करोड़ की नकद रकम जिसमें वे सभी इंश्योरेंस ,
डिवीडेंट्स और फिक्स डिपॉजिट्स शामिल थे जिनकी वो सौ प्रतिशत की नॉमिनी थी . इन सब को लेकर अपने बच्चों के साथ वह सीधा " बैंगलोर " चली आई जहाँ वह किसी को भी नहीं जानती थी . ऐसा नहीं था कि उसने यह ' बड़ा कदम ' पति के मरने के बाद तत्काल उठा लिया . इस स्थिति तक पहुँचने और अंतिम निर्णय लेने में उसे पूरे तीन साल का समय लगा .
जब उसने यह निर्णय लिया तब रेवा अठारह साल   की और आलोक चार साल का था . उसी वर्ष उसकी होनहार बिटिया नें इंटरमीडिएट (बायोलॉजी ) की परीक्षा में अपना स्कूल टॉप किया था . लगभग अठारह वर्ष की रेवा ....जल्दी से जल्दी स्वावलम्बी होना चाहती थी और इसी कारण उसने एक रोजगार परक ' शार्ट टर्म मेडिकल कोर्स ' का चयन किया और अपनी माँ को बताया . इस तरह उसका चयन पैरामेडिकल के टॉप कालेजों में शामिल एक कॉलेज में हो गया और वो कॉलेज ' बैंगलोर ' में था जिसे आज बंगलुरु कहा जाता है .
घर के मुखिया के इस तरह अचानक मर जाने के बाद
जिंदगी इन तीन वर्षो में " निर्वस्त्र " होकर उनके सामने आई . सारे सगे सम्बन्धी ,मित्र और रिश्ते नाते बदल गए . अपनी होनहार बिटिया को अपना अवलम्बन समझ ....आरती नें बड़ी बहादुरी और समझदारी से अपने निर्णय लिए .
बैंगलोर शहर के मध्यमवर्गीय इलाके में जो ' रेवा ' के कॉलेज के पास था ...वहाँ उन्हें सालाना एक लाख रुपए के किराए पर एक एक सुन्दर और सुरक्षित मकान मिल गया .....और इन सभी कामों में जो ' आरती नें तीन सालों में किये थे ...." आरती " के छोटे भाई नें उसकी बहुत मदद की . वही तो एक था जिसके कंधे पर सिर रख कर यदि वो रो सकती थी तो खिलखिलाकर हँस भी सकती थी वर्ना तो ' उनके ' चले जाने के बाद जिंदगी अपने हाईवे से उतर कर एक ऐसी ऊबड़खाबड़ सड़क की ओर चल दी थी जिस पर बड़ी बड़ी गिट्टियां पड़ी थीं और जिसके बनने के आसार भी नहीं दिख रहे थे . अपनी शानदार सवारी से हाथ धो कर वो पैदल तो चल पड़ी लेकिन उसका " प्यारा छोटा भाई " उसके कदमों के नीचे अपनी हथेली रख कर उसे हर तरह के नुकीले कंकड़ पत्थरों से बचाता रहा ....यद्यपि इस प्रयास में उसके हाँथ ही नहीं ....आत्मा तक जख़्मी हो गए . लेकिन बहन के मुँह पर एक झीनी मुस्कुराहट देखने की खातिर ....हथेली बिछाना तो क्या वह तो खुद भी बिछ जाता .
नए मकान में स्थापित होने के पहले ही आरती के कॉलेज की पूरे दो साल की फ़ीस एडवांस जमा हो चुकी थी और एक प्ले स्कूल में आलोक का भी एडमीशन हो गया था .
आरती का भाई यानी " बच्चों का प्यारा मामा " वहाँ तब तक रहा जब तक उसकी गृहस्थी ठीक से जम न गई और पूरा पैसा सुरक्षित न हो गया . वो एक         " ब्रोकर फर्म " का मैनेजर था ....रुपए के चालचलन और स्वभाव की उसे अच्छी जानकारी थी . उसी के प्रताप से एक ही महीने बाद " आरती " को तकरीबन पचास हजार रुपए प्रति माह प्राप्त होने लगे और उसकी हिचकोले खाती धक्कापलेट जिंदगी की गाड़ी रफ़्तार पकड़ने लगी .
कुछ ही समय में " रेवा " उस बड़े मेट्रो सिटी से और वहां की आबोहवा से पूरी तरह परिचित हो गई . उसकी ज़िद थी कि वह अपना और अपने छोटे भाई का खर्च ख़ुद उठायेगी ....बीते तीन सालों के उस भयानक दौर नें उसे जिंदगी की सच्चाइयों से रूबरू करवा दिया था . उसने ठान लिया था कि जिन लोगों की आँखों में उसने ' दया ,उपहास और तानों के कुत्सित भाव ' देखे थे ....फिर कभी न दिखाई दें .
और " रेवा " नें लगभग बदनामी की सीमा छू रही उस " कॉल सेंटर " की नौकरी को न सिर्फ किया बल्कि नाईट शिफ्ट में किया .
उसका प्रिय वाक्य था ...." जो भी काम तुम्हें सुख और संतुष्टि दे ,उसे पूरे मनोयोग से करो " ....इस वाक्य को उसने अपने नए घर की हर दरोदीवार यहाँ तक कि बाथरूम में भी अपने हाँथ से बड़े ही आकर्षक ढंग से लिख कर चिपका दिया था .
कॉल सेंटर की नौकरी करते उसका साल पूरा हुआ और साथ ही उसका प्रमुख लक्ष्य वह ....
" मेडिकल डिप्लोमा कोर्स " भी अपना आधा सफ़र पूरा कर चुका था . और तत्कालीन सेमिस्टर का एग्जाम सिर पर था और " रेवा " अपनी परीक्षा की तैयारी में व्यस्त थी .
दिन के दस बज रहे थे और रेवा गहरी नींद में सो रही थी और माँ रोज़ की तरह घर के कामों में व्यस्त थी .
बारह बजे " रेवा " हड़बड़ा कर उठी और माँ को 
' जगाया क्यों नहीं ' का उलाहना देते हुए झटपट तैयार हो कर स्कूटर पर सवार हुई और दस मिनट में कॉलेज पहुंची .
चार बजे उसकी छुट्टी हुई और वह पार्किंग में खड़े अपने स्कूटर की तरफ बढ़ी तभी उसके सहपाठी " संजीव " नें उसके साथ कॉफी पीने का आग्रह किया . स्पष्ट था वह उसमें आकर्षित था और उसके साथ कुछ समय बिताना चाहता था .....
" रेवा " मुस्कुराई और बोली ....आर यू सीरियस फॉर कॉफी ?
वो जल्दी से बोला ....ऑफकोर्स 
" रेवा " संजीदा होकर बोली ....." अगर तुम वास्तव में कॉफी पीना पिलाना चाहते हो तो मेरे साथ चलो ...मेरा घर यहाँ से सिर्फ़ दस मिनट दूर है और मेरी मम्मी बहुत अच्छी कॉफी बनाती है .
" कॉफी " तो नज़दीकी बढ़ाने का एक बहाना ही था और यहाँ तो कॉफी के साथ मम्मी भी बीच में आ गईं !!
सॉरी एक काम याद आ गया कहते हुए वो भागता हुआ दूसरी दिशा की ओर चला गया और " रेवा " हँसती हुई पार्किंग की तरफ बढ़ी .
घर पहुँच कर आधे घंटे ' आलोक ' के साथ हँसती खेलती रही और फिर अपने कमरे में जा कर गहरी नींद सो गई .
रात दस बजे वह सो कर उठी ...डिनर किया , अपने फ्लास्क में कॉफी भरी ,चार पाँच पेपर कप रखे और अपनी किताबों के साथ " कॉल सेंटर " पहुँची . उसकी रोज़ की साथी ,कुलीग और एक तरह से सहेली " नलिनी " से मुस्कुरा कर ' हैलो '
कहा . वह भी हॅसते हुए बोली ....यू आर टेन मिनट लेट टुडे ! आरती बोली ....सड़क पर इस टाइम बहुत ट्रैफिक होता है .थोड़ी देर जाम में फंस गई थी .
यह कह कर रेवा नें कम्प्यूटर ऑन किया और हेड फोन कान पर चढ़ाया .दो पेपर कप निकाले . कॉफी भरी और एक कप नलिनी को दे कर कॉफी पीने लगी . इसी काम से रोज़ उसकी नौकरी शुरू होती थी .




रात के समय ज्यादा फ़ोन कॉल आते नहीं थे और रात 11 बजे से सुबह 6 बजे तक वह अपनी पढाई करती और नलिनी जो उससे उम्र में बड़ी थी और राजदार भी थी उसकी बहुत मदद करती थी . कभी कभी जब वो देखती कि " रेवा " पढाई में लीन है तो वह उसके कॉल्स भी अटेंड कर लेती थी और उसका निस्तारण भी कर देती थी .
" नलिनी"  23 साल की अतिआधुनिक लड़की थी जो अपने " ब्वाय फ्रेंड " के साथ ' लिव इन रिलेशनशिप "
में रहती थी . इन दिनों बड़े शहरों में बिना शादी के लड़के लड़कियों का एक साथ पति पत्नी की तरह रहना आम बात हो गई है .
" रेवा " तो रात भर पढ़ती लिखती और नींद आने पर कॉफी पीती . और " नलिनी " कोई न कोई अंग्रेजी नॉवेल पढ़ती रहती ...बीच बीच में सिगरेट के कश लगाती और अपने वैनिटी बैग से " ब्राण्डी बैग " निकाल दो तीन घूँट भर लेती .
इस तरह वक़्त गुजरता रहा और एक दिन वह भी आया जब " रेवा " एक प्रतिष्ठित हॉस्पिटल में .....
...." ओ .टी .टेक्नीशियन " नियुक्त हुई . कॉल सेंटर की नौकरी के आखिरी दिन " नलिनी " उससे गले लग कर फूट फूट कर रोई और रात भर रह रह कर हिचकियाँ लेती रही .
उस दिन सुबह घर लौटते समय " रेवा " उसे जबरदस्ती घर ले आई . उसकी माँ से मिलकर वो बहुत खुश हुई . चलते समय वह फिर रेवा से लिपट कर रोने लगी और किसी तरह रोते धोते हँसते मुस्कुराते वह वहां से गई .
" रेवा की दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं हुआ . वह अब भी नाइट शिफ्ट में ही काम करती थी और उसका एडमिशन " मेडिकल कॉलेज " में 
ओ .टी .टेक्नीशियन के एडवांस कोर्स में हो गया था . उसे अब चालीस हज़ार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था और उसने अब एक " प्यारी सी कार "
ले ली थी .वह प्रसन्न और संतुष्ट थी . अब भी वह रात ११ बजे से सुबह छह बजे तक ड्यूटी कर सुबह डेरी से दूध ले ...अपनी प्यारी कार से घर लौटती .यदाकदा नलिनी उससे मिलने आती रही लेकिन बाद में उसका अपने ' ब्वॉय फ्रेंड ' से ब्रेक अप हो गया .अब वो कहाँ है और क्या करती है ..
....? कुछ पता नहीं . 

एक दिन हॉस्पिटल में रात एक बजे एक " इमर्जेन्सी केस " आया , जिसके लिए शहर के मशहूर और अनुभवी सर्जन ...." डॉक्टर जालान " को बुलाया गया .उस जटिल शल्य क्रिया में एक अमेरिकी विशेषज्ञ सर्जन की " ऑन लाइन " मदद ली जा रही थी . ऑपरेशन शुरू था और " रेवा " अपना काम कुशलता से संभाल रही थी .डॉक्टर जालान के तीन सहायक डॉक्टर भी पूरी गंभीरता से इस प्रक्रिया में भाग ले रहे थे .
ऑपरेशन तक़रीबन पूरा हो चुका था कि तभी मरीज़ की नब्ज़ गिरने लगी और मशीन से ' बीप बीप ' की आवाज़ आने लगी . ओ .टी . में बेचैनी फैलने लगी .
मरीज़ को ऑक्सीजन पहले से लगी थी और बेहोशी में उसे झटके आ रहे थे . सभी डॉक्टर और स्टाफ चिंतित थे की तभी डॉक्टर जालान ने उसे " मृत " घोषित कर दिया और ओ .टी .में सन्नाटा छा गया .
मरीज़ के मुँह पर कपड़ा डाल दिया गया और ....
डॉक्टर्स सिर झुकाए बाहर जाने लगे .
तभी रेवा ज़ोर से चिल्लाई ...." ही इज एलाइव ..!!" पिन ड्राप साइलेंट में उसकी आवाज़ ' धमाके ' की तरह गूँजी . डॉक्टर जालान पीछे घूमे ...उन्होंने देखा ..." रेवा " दौड़ती हुई " ऑपरेशन टेबल " तक पहुंची और मरीज़ के मुँह से कपड़ा हटा कर ...उसका मुँह पूरा खोल कर ...उसके मुँह से अपना मुँह सटा कर ....ज़ोर से फूँका और उसे ठोकने पीटने लगी . एक बार फिर उसने यही प्रक्रिया दोहराई . डॉक्टर जालान से " रेवा " का हर ऐक्शन बड़े ध्यान से देख रहे थे .....और तभी शांत पड़ी मशीनों से आवाज आने लगी ....बंद पड़ी धड़कन फिर धड़कने लगी . और डॉक्टर फिर युद्ध स्तर पर अपने काम में जुट गए और वो मरीज़ ....मर कर भी फिर से जिन्दा हो गया .
डॉक्टर जालान नें अपने सहायकों को कुछ निर्देश दिए और  " रेवा " से सिर्फ इतना बोले ....." वेल डन माय चाइल्ड . आई वांट यू इन माय हॉस्पिटल ."
और अब " रेवा " डॉक्टर जालान के विश्वप्रसिद्ध मल्टी स्पेशलिस्ट हॉस्पिटल में जहां विदेश से भी लोग इलाज़ के लिए आते थे ....वहां के भव्य और जटिल ऑपरेशन थिएटर्स की ....स्पेशलिस्ट टेक्निशियन थी .उसका " एडवांस कोर्स " भी पूरा हो चुका था . अच्छा खासा पैकेज था ........
जिंदगी जिंदादिली से मुस्कुरा रही थी ." आरती"  को हर माँ की तरह बेटी के विवाह की चिंता होती थी और रेवा माँ से कहती थी ......" अभी तो मेरा सर्वश्रेष्ठ आना ...कुछ विशेष आना बाकी है !!"

Comments

Anil. K. Singh said…
श्री मान जी आपने बहुत अच्छी कहानी लिखी है। कहानी बहुत जानदार है। पढ़कर बहुत अच्छा लगा।