बहुत दिन बाद मज़ा आया !!!

लल्लू भइया , जब भी सो कर उठते ....चाहे सुबह के पांच बजे हों या सात ....वे नित्यक्रिया से निवृत होकर सीधे अपने पूजा स्थल पर चले जाते और दत्तचित्त होकर दो घंटे पूजा करते ....लेकिन जैसे ही वे बाहर आते कुछ न कुछ ऐसा हो जाता कि उनका "मूड " ऑफ हो जाता .
सबसे ज्यादा परेशानी थी उन्हें अपनी पत्नी से .वह किसी न किसी बहाने आए दिन ....विश्वयुद्ध स्तर का और आर या पार की मुद्रा में ....सभी अत्याधुनिक घरेलू हथियारों से लैस होकर ....उनके सामने खड़ी हो जाती .मजे की बात तो ये कि इस मुद्रा में आने के पूर्व वह पूरी घेराबंदी कर लेती .....अर्थात लल्लू भइया न तो भाग सकते थे और न ही खड़े हो सकते थे . युद्ध करके जीत जाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता .
एक बार भइया जी नें सोचा ....' रोज रोज मार खाने से अच्छा आज युद्ध कर ही लूँ . भगवान कृष्ण ने भी कहा है ...." युद्ध से भागना उचित नहीं ". 
लेकिन लल्लू भइया ये भूल गए कि उनके पास युद्ध के लिए न तो पर्याप्त प्रशिक्षण है और न ही गोला बारूद
जिस तरह अपनी हार सुनिश्चित जान कर भी महाराणा प्रताप जी ........अकबर की फौज से भिड़ गए थे ....
उसी प्रकार ....उस दिन पत्नी के सामने वे अपनी .....
" जंग लगी तलवार " के साथ मैदान में आ डटे .
पत्नी नें अपना लेटेस्ट अत्याधुनिक हथियार नीचे रखा ...जो अभी तीन दिन पहले " ऑनलाइन " मगवाया था . और भइया जी को हैरानी से देखने लगी .भइया जी को देखते देखते उसे उस " चूहे " की याद आई जो बिल्ली के डर से भागते भागते एक शराब की बाल्टी में गिर पड़ा और अंदर बाहर से धुत हो कर बिल्ली से बोला ...." कहाँ है बिल्ली ?" ......और वह खिलखिला कर हँसने लगी .फिर अपने सारे हथियार और युद्धक परिधान उतार कर वह भइया जी के सामने पहुंची और उनकी " जंग लगी तलवार " को सहलाने लगी .
पूजा पाठ कर अंदर बाहर से साफ हुए भइया जी केवल " वीरता के एक दिखावे " के कारण पत्नी के सामने " गंदे " हो गए .और फिर वही हुआ जो होना था . दोनों लोग खूब खेले कूदे और फिर पत्नी बोली .
...." बहुत दिन बाद मजा आया !!!" इस प्रकार एक और युद्ध बिना लड़े ही समाप्त हो गया .

Comments

Anil. K. Singh said…
बहुत अच्छा। पढ़कर अच्छा लगा। लल्लू भइया ने हथियार उठाने में बहुत देर कर दिया। खैर देर आये दुरूस्त आये। बहुत अच्छा।