ताकि " मूड " बन सके

मित्रों !
आज मैं अपने ब्लॉग की ' 100 वीं ' पोस्ट लिख रहा हूँ . इतने दिनों तक ....इस ब्लॉग के माध्यम से , विभिन्न विषयों पर ...आपके सामने मैं अपना दृष्टिकोण रखता रहा . कभी कभी कुछ प्रश्नचिन्ह भी छोड़े ...लेकिन मेरी समझ में आज तक नहीं आयाकि   मेरा अपना स्वयं का उद्देश्य क्या है ? और जो उद्देश्य
(पता नहीं इसे उद्देश्य कहूँ या कुछ और ) है भी उसके लिए क्या करूँ ? कभी कभी लगता है कि जैसे ...जीवन के इस मोड़ पर मैं " लक्ष्यविहीन " हो गया हूँ
स्वामी रामसुख दास के  प्रवचन में मैंने " शून्य साधना या चुप साधना " के विषय में पढ़ा और उसका अभ्यास किया . स्वामी जी के अनुसार ....यह साधना करने से मनुष्य जीवन सफल हो जाता है और कुछ भी जानना और पाना शेष नहीं रहता . वे कहते हैं बाहर और भीतर से " चुप " हो कर साक्षी का अभ्यास करो !!!
इसका परिणाम यह हुआ कि कभी कभी "दिमाग " इतना खाली अनुभव होता है कि कुछ लिख पाना तो असंभव ही लगता है . फिर भी प्रयास करता करता रहता हूँ कि कुछ लिख सकूं .
कई विश्वप्रसिद्ध लेखकों का जीवन परिचय पढ़ने पर पता चलता है कि लिखने का " मूड " बनाने के लिए वे अजीब अजीब तरीके अपनाया करते थे .मैं क्या करूँ ? कौन सा तरीका निकालूं ....ताकि "मूड " बन सके !!!!

Comments

Anil. K. Singh said…
बहुत अच्छा। 100 पूरे होने पर बधाई ।