किस्सा कुरता पायजामा !!!!

रामसुमेर भइया शादी के बाद पहली बार ससुराल जा रहे थे . अकेले वे जाना नहीं चाहते थे ...सो वे अपने बचपन के मित्र से मिले और साथ चलने का अनुरोध किया . मित्र महोदय चलने के लिए तैयार तो हो गए लेकिन फिर बोले ....." भइया हम तो तैयार हैं लेकिन हमारे कपड़े साफ नहीं हैं ." रामसुमेर भइया बोले ....
...." कपड़े की चिंता न करो भइया ...आप हमारा कपड़ा पहिन लो ." जब मित्र महोदय ....रामसुमेर भइया का " कुरता पैजामा " पहिन कर तैयार हुए तो वो परिधान उनके शरीर पर इतना अच्छा लगा कि ...भइया जी उनके आगे फीके पड़ गए .
और फिर दोनों मित्र तैयार हो कर ससुराल चले . पुराना जमाना था , आज की तरह उस समय यातायात के साधन नहीं थे .अधिकांश लोग पैदल ही सफर करते थे . शाम तक दोनों मित्र ससुराल पहुंचे .भइया पहली बार ससुराल गए थे ....बड़ी आवभगत हुई . रात में घर वाले इकट्ठा हुए तो बातचीत शुरू हुई .
एक मध्यम उम्र की औरत नें भइया से कहा ....." पाहून ! आप का तो हम सभै जनतै हैं लेकिन भइया का नहीं पहिचाने ?"
अब भइया बोले ....." ये हमारे बचपन के मित्र हैं . पुराने साथी हैं , हमारे बड़े हितैषी हैं लेकिन " कुरता पैजामा " ये हमारा पहने हैं .'
अब ....तो सबके जाने के बाद ...मित्र महोदय बहुत नाराज़ हुए . भइया नें माफ़ी मांगते हुए कहा ...मुँह से निकल गया .
सुबह सुबह भइया नहा धो कर स्वल्पाहार लेकर बाहर बैठे धूप सेंक रहे थे .इसी बीच गाँव के कुछ युवक आए और हंसी ठिठोली करने लगे . उन्ही में से एक युवक ने फिर .....मित्र महोदय का परिचय पूछा . भइया बोले ..." ये हमारे बचपन के मित्र हैं .हमारे बड़े हितैषी हैं लेकिन " कुरता पायजामा " ये अपना ही पहने हैं ."
मित्र नें उन्हें घूर कर देखा और एकांत पाकर उन्हें चेतावनी दी कि अब अगर उन्होंने " कुरते पायजामे " की बात की तो ठीक नहीं होगा .
भइया नें कान पकड़े ....माफ़ी मांगी .
दोपहर बाद गांव की औरतें " पाहून " को देखने आईं और अंततः एक औरत ने फिर मित्र का परिचय पूछ लिया . भइया बोले ...." ये हमारे बचपन के मित्र हैं और हमारे बड़े हितैषी हैं लेकिन " कुरता पायजामा " के विषय में हम कुछ नहीं बोलेंगे !!!



Comments

Anil. K. Singh said…
बहुत अच्छा व्यंग्य लिखा है आपने। बहुत पसंद आया। सत्य घटना से या काल्पनिक है कुछ पता नहीं।