यत पिण्डे तत ब्रह्माण्डे

 दुनिया या कहें पूरे ब्रह्माण्ड का लगातार " विकास और विस्तार " हो रहा है जिसे हम अनवरत परिवर्तन के रूप में जानते हैं . अंतरिक्ष वैज्ञानिक कहते हैं -
" ब्रह्माण्ड लगातार फैल रहा है " . अंतरिक्ष और धरती पर स्थित विशाल टेलीस्कोप ....अविश्वसनीय सटीकता से ब्रह्माण्ड को देख रहे हैं .हर सेकेण्ड सैकड़ो तस्वीरों का ,जटिल सुपर कम्प्यूटर ....सटीकता से विश्लेषण कर रहे हैं . क्या जिस तरह से यह ब्रह्माण्ड कार्य करता है ....उसी तरह से हमारा दिमाग भी काम करता है ? जैसा कि " वेद " कहते हैं कि ....यत पिण्डे तत ब्रह्माण्डे .....अर्थात जो कुछ इस पिण्ड (मस्तिष्क ) में है वही सब कुछ ब्रह्माण्ड में है .यानी हम जो भी कल्पना कर सकते हैं वह इस ब्रह्माण्ड में कहीं न कहीं " मौजूद " है  और जो " मौजूद " नहीं है .....उसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते !!!
आइये पीछे ....पीछे बहुत पीछे चलते हैं . आज पीछे की बात क्यों ? वो इसलिए कि लम्बी छलांग के लिए जैसे " चीता " अपना शरीर पीछे को खींचता है ...वैसे ही हमारा " मौजूदा मस्तिष्क " अपने सोच विचार के दायरे से बाहर निकल सके .....इस हेतु हम पीछे चलते हैं .
कल्पना करें - एक गांव है , जिसके सभी निवासी लगभग नग्न रहते हैं . वे विभिन्न प्रकार के फल , फूल और कंदमूल खाते हैं . जंगली जानवरों से सुरक्षा और खुदाई के लिए पत्थर के औजार रखते हैं . शारीरिक भाषा (बॉडी लैंग्वेज ) का अधिक प्रयोग करते हैं .उनकी औसत उम्र 40 वर्ष है क्योंकि इस उम्र के पार कोई इसलिए नहीं पहुँचता ....क्योंकि इस उम्र तक पहुँचते पहुँचते वे या तो जंगली जानवरों का शिकार हो जाते हैं या आपसी लड़ाई अथवा रोगों के द्वारा मारे जाते हैं .


स्त्रियों की संख्या अधिक है ....उनकी औसत उम्र भी 50 वर्ष है और सबसे बड़ी उम्र की स्वस्थ महिला अपने समाज की " मुखिया " होती है . वह समाज नारी प्रधान है और " सेक्स फ्री " है .स्त्री जिस पुरुष से चाहती " सम्भोग " कर सकती है और यह ....अपराध भी नहीं माना जाता है .
एक दिन तेज हवा चल रही थी ....गर्मियों की दोपहरी का गरम दिन था . बांस में फूल आ जाने से वे पूरी तरह सूख चुके थे और तभी उन गर्म तेज थपेड़ो से झूमते ....वे बांस आपस में टकराने लगे और आपसी रगड़ से उनमें आग लग गई . पूरा जंगल धू धू कर जलने लगा . इस दावानल से नदी किनारे बसा वह गांव तो बच गया किन्तु सम्पूर्ण वन सम्पदा नष्ट हो गई . पेड़ो के नष्ट होने से ...फल फूल पत्ते और कंद मूल भी नष्ट हो गए . अब पेट की आग शांत करने के लिए उन बनवासियों ने जो भी खाने योग्य पाया उसे खा गए .
उन्हें वे अन्न अधिक स्वदिष्ट लगे जो उन्हें कच्चा खाने पर लगते क्योकि वे आग में भुन चुके थे लेकिन वे भुने ,जले और अधजले अनाज और फल भला कब तक उनका पेट भरते और अंततः इस दावानल में बड़ी संख्या में भुने जानवरों का मांस खाया और वह उन्हें भा गया . 
गरमी बीत गई और बरसात आ गई . यहां बसे बनवासी पहले घुमन्तू जीवन जीते थे लेकिन दो पीढ़ी पहले जब उनका काफिला यहाँ पहुंचा तो उन्हें अपने प्रवास के दौरान सबसे अधिक सुख यहीं मिला . साफ पानी की बहती नदी , फलों से लदे वृक्ष , मांसाहारी जानवरों की कम संख्या और सुरक्षा की अनुभूति नें उन्हें वहां रोक लिया .......
और दो पीढ़ियों के बाद कबीला भूल गया कि ' प्रवासी ' होना क्या होता है .


बरसात आई तो धरती हरी होने लगी और कुछ ही समय में चारो तरफ नए नए पौधों की हरियाली छा गई .कुछ ही समय में गांव फिर खुशहाल हो गया .
अब वे शाक और मांस दोनों खाने लगे थे ." अग्नि "
का आविष्कार हो गया था .
B
और जीवन खुशियों से भर गया था . आदमी का दिमाग विकसित होता गया और आज हम अपना विस्तार करते करते " अनंत अनादि अंतरिक्ष " के 
विस्तार को देख रहे हैं !!!

Comments

Anil. K. Singh said…
एक वैज्ञानिक तथ्य का अच्छा विवेचन किया है आप ने। बहुत अच्छा।