झंडा बुलंद है ( पहली किश्त )

(पेश किया गया अफ़साना पूरी तरह मनगढंत है .
किसी भी जिन्दा ओ मुरदा शक्शियत से और जग़ह से इसका ज़रा सा भी ताल्लुक नहीं है . पढ़ने वालों से गुज़ारिश है कि इसे मनबहलाव के लिए पढ़ें )
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क़ब्रिस्तान की दीवार से सट कर बैठे ...घुटनों में सिर दिये ...जुम्मन मियां ,जाने किन ख़यालो में खोए थे ...उनका मन करता दिल खोल कर ज़ोर ज़ोर से रोयें लेकिन रोना चाहते हुए भी ,आंखें पानी गिराने से इंकार कर रहीं थीं . मन करता कहीं जाकर डूब मरें , रस्सी से लटक कर जान दे दें ,गाड़ी के नीचे आ कट मरें . " या अल्लाह इन मुर्दों के बीच थोड़ी जग़ह मुझे भी दे दे . मेरे ऊपर गाज गिरा दे या ज़मीन फाड़ दे . करम कर मेरे ख़ुदा ! अब साँस लेने का दिल नहीं करता ." 
घुटने से सर उठा कर ग़म से लबरेज़ मगर सूखी आँखों से आसमां देखते ...जुम्मन मियां बड़बड़ाये ..............................................................
जुम्मन मियां ,लखनऊ शहर में अच्छी खासी पंचर बनाने की दुकान चलाते थे .पेट्रोल पम्प के बगल की उस दुकान पर हमेशा दुपहिया ....चारपहिया गाड़ियों की लाइन लगी रहती .....
पांच साल पहले " जमीला " उनकी बीवी बन कर उनकी जिंदगी में आई तो पहली बार वे ' पीर की दरगाह ' पे गए .तीन महीने तक पांचो वक़्त की नमाज़ अदा की . इसलिए नहीं कि उन्हें उनको पीर या खुदा से कुछ चाहिए था बल्कि इसलिए कि वे उनका शुक्रिया अदा करना चाहते थे ...
उन्हें बिन मांगे ही इतना कुछ जो मिल गया था .
जमीला उनकी बीवी तब उन्नीस बरस की शोख और बला की हसीन लड़की थी .
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जमीला के वालिद ..." हाज़ी मियां " मेन मार्केट '
में फलों का ठेला लगाते थे . दुकान बहुत अच्छी चलती थी . साठ बरस के वे ख़ुद थे ...कहते हैं जमीला की अम्मी मरहूम भी बला की हसीन थीं जिसे मियां किसी मेले से भगा लाए थे ...बहुत मोहब्बत करते थे अपनी बीवी से वो . अपने पीछे एक नौ साल की बेटी और पंद्रह साल का बेटा छोड़ मरीं तो हाजी मियां आधे मर ही गए .फिर तीन साल पहले उनका बेटा भरी जवानी में भाग कर कहीं चला गया तो आज तक नहीं लौटा .
एक दिन ......हाजी मियां ' फलवाले ' के घर पुलिस का दारोगा मय फोर्स पहुंचा ...पता नहीं उसने क्या कहा कि हाजी मियां गश खाकर गिर पड़े और अस्पताल पहुँच गए . वहां उन्हें होश आया तो जमीला बाजू में खड़ी आँसू बहा रही थी . हाजी अपनी सोलह साल की बिटिया का मुँह देखते रहे मग़र आंसू नहीं पोछे . वो छत पर टकटकी लगाए कोरों से आंसू बहाते तकिया भिगोते रहे .
हाजी मियां का बेटा एक महीना पहले ...कश्मीर में हुए दहशतगर्द हमले में पुलिस की गोली का शिकार हो गया .उसके साथ और तीन लोग मारे गए उनमें से एक कश्मीरी और दो पाकिस्तानी बाशिंदे थे .उस आतंकी हमले की ज़िम्मेदारी जिस आतंकी गिरोह नें ली उसका सरगना कराची में रहता था .
पुलिस ने हाजी मियां के लड़के के मारे जाने की इत्तला उनको दी और उसकी लाश क्लेम करने को कहा तो हाजी मियां सपाट लहज़े में बोले ..
.....हाँ ...जो तस्वीर और लाश की फोटो आप दिखा रहे हैं वो मेरे बेटे की है . जो सुबूत आप लाए हैं वो भी साबित करते हैं कि वो मेरा ही बेटा था . लेकिन वह तो अचानक लापता हुआ तब से आज आप उसके मरने की ख़बर लाए हैं . वो मेरा बेटा ज़रूर था लेकिन उसके चालचलन का मैं ज़िम्मेदार नहीं .आप शौक से हमारे घर की तलाशी लीजिए .लेकिन उसने मुल्क़ के साथ गद्दारी की है जिसकी मिट्टी में उसके पुरखे दफ़न हैं और मैं भी यहीं दफ़न होना चाहूंगा इसलिए मैं उसकी लाश क्लेम नहीं करूँगा बल्कि सरकार से अर्ज़ करूंगा कि अगर उसे वे मेरा बेटा मानते हैं तो मेरी इल्तज़ा है कि उसकी लाश चीलकौवों को खिला दी जाय या कहीं लावारिस फेंक दी जाय या उसके टुकड़े टुकड़े कर कुत्तों को खि ...खिला ...दी ज जी ....और " हाज़ी मियां " गिरे और बेहोश हो गए ......
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हाज़ी मियां अपने इलाके के इज्जतदार आदमी थे और पांचो वक़्त के पक्के नमाज़ी थे . आधी बांह का कुरता , चारखाने की तहमद और जालीदार गोल टोपी लगाते थे . नमाज़ी होने का पक्का सुबूत उनके माथे केऊपर बीचोबीच बना काला घेरा था जो उनके नूरानी चेहरे का नूर और बढ़ा देता था....आँखों पर नज़र का चश्मा लगाते थे .
अपने धंधे से उनकी अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी . ठेले के दोनों तरफ़ थोड़ी जग़ह घेर कर उन्होंने प्लास्टिक की मोटी पन्नी लगा दी थी जिसकी एवज़ में वे अपने पड़ोसी दुकानदारों की तरह हर हफ्ते पुलिस को सौ रूपए दे देते .
इतने दोस्ताना कि माल का सप्लायर उनकी दुकान पर एडवांस माल भेज देता लेकिन न कभी पैसा माँगा न हिसाब किया . हाज़ी मियां ...जो भी माल आता उसे कापी में लिख लेते और भाव पता कर गाड़ी वाले को पैसे दे देते . सप्लायर न कभी उनकी दुकान पर आया न तगादेदार भेजा . वो जो भी देते ...गाड़ीवाला रख लेता और फोन पर बता देता ' इतना पाया '.
जिस किसी के घर शादी या कोई जश्न मनाने का मौका होता .....अगर उसका न्योता उनके पास पहुँचता तो फिर वो चाहे जिस मज़हब का हो वो उसके घर तमाम तरह के फलों से भरी टोकरी लेकर उसे सजाकर पहुँचते ज़रूर चाहे रात के दस बज जांय .
" जमीला " अब बड़ी हो रही थी .बेटी को देख फ़िक्र होती थी . जमीला इतनी जहीन और हर घरेलू काम में महारत थी कि उसे देख हाजी अपनी फ़िक्र भूल जाते थे .वो इस साल जी .जी .
आई .सी .से हाई स्कूल पास कर इंटर में पढ़ रही थी .पढाई में भी वो बड़ी जहीन थी . साइंस उसका फेवरेट था . कॉलेज के टीचर भी उसका बड़ा मान करते थे ....
लब्बोलुबाब ये कि गोया हाज़ी मियाँ इक ख़ुशहाल और सुकून भरी जिंदगी जी रहे थे लेकिन जाने तक़दीर का ऊँट किस करवट बैठा कि ग़ायब बेटा मिला भी तो कैसे ? उस गद्दार के मारे जाने से ज्यादा उन्हें इस बात का ग़म था कि अब लोग क्या कहेंगे ?
हाज़ी मियाँ को चाहे जो ग़म रहा हो लेकिन लोगों ने कुछ कहा ही नहीं .जब तक वे अस्पताल में रहे मिलने वालों का तांता लगा रहा गोया कोई नेता वेता भर्ती हो .
हाज़ी मियाँ जिस मोहल्ले में रहते थे वो उनकी दुकान से बमुश्किल पांच सौ गज़ की दूरी पर था 
उस मोहल्ले में उनके दादा मरहूम जाने कहाँ से आ कर बसे थे . कहते हैं उस समय वो जग़ह भूतों का डेरा कही जाती थी और दिन में भी लोग वहां जाने से डरते थे ...फिर धीरे धीरे शहर फैलता गया और जाने कहाँ कहाँ से लोग आकर वहाँ बस गए ...अब तो वो जग़ह एक घनी मुस्लिम आबादी थी जो दिन ब दिन और घनी होती जाती थी .

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हाज़ी मियाँ के चार कमरे और एक छोटे बरामदे वाले घर की बाउंड्री वाल से सटा एक और बड़ा घर था ...जिसका मालिक ' सउदी अरब ' में रहता था . घर सही सलामत रहे और कोई कब्ज़ा न कर ले ...इस वज़ह से उसने वह घर अपने भांजे ' जुम्मन मियाँ ' को बिला किराया रहने को दिया था ....." कब्बन मिर्ज़ा ' यही नाम था उनका . जिनका सऊदी अरब में ' मिट्टी का क़ारोबार ' था 
वे हिंदुस्तान से मिट्टी मंगाते जो पानी के जहाज़ से अरब पहुँचती और फिर उसे छोटे बड़े गमलों में पौधे लगा कर अच्छी खासी क़ीमत में बेच लेते .
उन्होंने जिंदगी भर शादी नहीं की और जब की तो वे साठ साल के थे और उनकी बीवी अट्ठाइस साल की .
एक दिन वे शाम को अचानक अपनी ख़्वाबगाह में घुसे तो अपनी हाहाकारी हुश्न की मलिका बीवी को एक गैर मर्द की बाहों में बिला कपड़ो के देखा और उनका फ्यूज उड़ गया . वे बौखलाकर कर हमलावर हुए तो उन दोनों नें कब्बन मिर्ज़ा को पकड़ कर बांध दिया और फिर उनकी आँखों के सामने ही हमबिस्तर हुए .
कब्बन मिर्ज़ा पर ऐसी गाज गिरी कि वे वापस लौट कर हिन्दोस्तान आ गए और अपने घर में रहने लगे .
यहाँ आकर अपना ग़म क़रीब क़रीब भूल चुके थे .
उनके भांजे ' जुम्मन मियाँ ' उनकी देखभाल और इज्ज़त बख्सने में तनिक न ग़ाफ़िल होते थे . ' कब्बन मिर्जा का गाँव शहर से क़रीब अस्सी किलोमीटर दूर था ....जहाँ उनकी अच्छी खासी प्रॉपर्टी थी .वे गाँव गए तो अपने भांजे जुम्मन को भी अपने साथ ले गए ..जुम्मन साए की तरह उनके साथ रहते .' कब्बन मिर्ज़ा ' अपने तीन भाइयों में सबसे बड़े थे .उनके दोनों भाइयों के दो दो लड़के थे और ये सारे लोग मिलकर ....चालीस एकड़ की प्रॉपर्टी पर खेती करते थे . इलाक़े में उन लोगों का रौबदाब था . कब्बन मिर्जा के मझले भाई पिछली बार के जिला पंचायत एलक्शन का चुनाव लड़े ...लेकिन हार गए .
गांव में कब्बन मिर्ज़ा और जुम्मन मियाँ का जबरदस्त इस्तक़बाल हुआ आख़िर जुम्मन उन लोगों के भी भांजे ही थे और वहां कब्बन मिर्ज़ा को इतनी इज्ज़त बक्शी गई कि वे अपना सारा ग़म भूल गए और गांव में ही रुक गए .जुम्मन मियाँ वापस लखनऊ लौट आए .
जुम्मन मियाँ की कहने को पंचर की दुकान थी .एक तो वह दुकान पेट्रोल पम्प के बग़ल में बहुत पीक पोजीशन में थी दूसरे अपनी जगह में थी और तीन मुलाज़िम उनकी दुकान में काम करते थे और उनके पास डनलप टायर की एजेंसी थी .
कब्बन मिर्ज़ा जब अरब से लौटे थे ....तब के उनके दिमाग़ी हालात में उनकी रूहानी ताकत बढ़ाई ...हाज़ी मियाँ ' फल वाले ' नें . जो उनके दोस्त बने और जब तक जिन्दा थे बने रहे .
..............................................................कब्बन मिर्ज़ा एक महीना गाँव में और एक महीना शहर में रहते . गांव में रहते तो गांव के हो जाते और शहर में रहते तो शहर के हो जाते .
इस तरह वो दिन भी आया जब जमीला उन्नीस की होने को आई . और उस दिन " हाज़ी मियाँ "
अपने ठेले पर ही बेहोश हो गए . लोगों नें अस्पताल पहुंचाया . जमीला को ख़बर हुई तो उसने खाली बैठे अख़बार पढ़ते कब्बन मिर्ज़ा को बताया ...मिर्ज़ा भागे अस्पताल को ...पीछे जमीला और उसके पीछे जुम्मन भी अस्पताल पहुंचे .
डॉक्टर नें बताया " हार्ट अटैक " हुआ है .बहुत तगड़ा अटैक था .इस बार तो बच गए ...अगली बार ऐसा हुआ तो फिर नहीं बचेंगे .उनके दिल का 
' ब्लॉकेज ' हटाया गया और " हाज़ी " घरको आए . अब मज़बूरन उन्हें दुकान अपने मुँहलग नौकर " पप्पू " के हवाले करनी पड़ी जो शायद यतीम था . नौ साल की उमर में दुकान पर आया तो आज चौदह की उमर तक यहीं है ...कहीं गया ही नहीं .पढ़ लिख लेता था ...रूपए पैसे जोड़ लेता था . होशियार बहुत था . सुबह ऐन वक्त पर दुकान खुलती ....ऐन वक्त पर बंद होती . सोता वह वहीं ठेले पर ही था .कभी घर आ कर खा जाता कभी मन करता तो होटल में खा लेता . हाज़ी उसे जो भी देते रख लेता . और जब से हाज़ी बीमार हुए वो तो और भी ज़िम्मेदार हो गया .आने पैसे का हिसाब रखता .रोज़ आकर सारा गल्ला और हिसाब की कापी घर दे जाता और सुबह ले जाता .
अब हाज़ी मियाँ का वक्त ....कब्बन मिर्ज़ा के साथ ही बीतता . और एक दिन हाज़ी के सीने में दर्द उठा ,उस समय कब्बन मिर्जा पास ही बैठे थे 
वे दौड़ कर डाक्टर बुला लाए और उसने हाज़ी मियाँ की जुबान के नीचे कोई गोली रखी और मियाँ चंगे हो गए . डॉक्टर नें संजीदा होकर कहा ......." लॉरी में दिखा लीजिये और वे जो टेस्ट कहें करवा लीजिए ." ये कह कर डॉक्टर चला गया .
कब्बन मिर्ज़ा और हाज़ी मियाँ ....अगल बगल बैठे थे कि हाज़ी मियाँ रोने लगे और रोते रोते चिल्लाने लगे और या अल्लाह या अल्लाह कहने लगे . मिर्ज़ा घबड़ा कर उठे और हाज़ी को सीने से लगा कर चुप कराने लगे .
हाज़ी फलवाले हिचकियाँ लेकर बोले  " ...मिर्ज़ा मेरे दोस्त ! लगता है मेरा वक्त आ गया है .अब मुझे अपनी बेटी की फ़िक्र है . उसका निक़ाह हो जाता ....मैं फ़ौरन मर जाता तो भी अफ़सोस न होता ....." 
मिर्ज़ा नें उन्हें पानी पिलाया . जमीला वहीं खड़ी थी और उसके आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे 
तभी मिर्ज़ा बोले ....' दोस्त ! अगर इस फ़िक्र में मरे जाते हो तो जान मत दो . मेरा भांजा कुंआरा है और अच्छा कमाता है . मुझसे ज्यादा तुम उसे जानते हो . मुनासिब समझो तो जुम्मन की शादी जमीला से कर दो .' 
हाज़ी  आंखे चौड़ी कर के मिर्ज़ा को देखने लगे ...
....." हैंए ...इस तरफ तो मेरी तवज्जो कभी गई ही नहीं .या अल्लाह ! तेरा लाख लाख शुक्र है इससे अच्छी बात भला और क्या हो सकती है ! लेकिन मिर्ज़ा ! एक बार जुम्मन मियाँ से भी बात कर लो ." 
हाँ ...ये बात तो है .मैं आज ही बात करता हूँ . फिर मिर्ज़ा ....जमीला से मुख़ातिब हुए . वो अपने दुपट्टे को दांतो से दबाए ....पैर के अंगूठे से फर्श खोदती नीचे देख रही थी .अभी वे उस से कुछ कहते कि वह मुस्कुराते हुए घर में भाग गई . और मिर्ज़ा हँसने लगे .
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और उस दिन ......
आगे क्या हुआ ?....
जानने के लिए पढ़िये कहानी की अगली किश्त ..








Comments

Anil. K. Singh said…
कहानी अच्छी है लेकिन पूरा मजा अगला अंक पढ़ने के बाद ही आये गा। बहुत अच्छा।
Anil. K. Singh said…
कहानी अच्छी है लेकिन पूरा मजा अगला अंक पढ़ने के बाद ही आये गा। बहुत अच्छा।