झंडा बुलंद है (आखिरी किश्त )

(कहानी ...झंडा बुलंद है के पहले भाग में आपने पढ़ा कि जुम्मन और जमीला का निक़ाह तै पाया गया ...अब आगे .....)

तीन हफ़्ते बाद इक रोज़ जमीला और जुम्मन का निकाह हुआ . निक़ाह क्या था गोया पूरा शहर ही मानो उमड़ा पड़ता था . जिन हाज़ी मियां नें पूरी जिंदगी दूसरों के ग़म ओ ख़ुशी में शिरकत की उनकी इकलौती बेटी की शादी में भला कोई क्यों न आता ? उस निकाही मेले में किसी के मज़हब का पता ही न चलता था .
नवाब खां  टेन्ट वाले ने पूरे एक किलोमीटर के दायरे में टेन्ट और बिजली की शानदार सजावट की .लल्लन हलवाई नें दो दिन के लिए अपनी दुकान ही बढ़ा दी .अपने आधा दर्जन खानसामों और कारीगरों के साथ वह खाना बनाने को जुटा .
हाँ ...एक बात जरूर हुई जो इलाक़े के कुछ लोगों को खल गई कि हाज़ी मियां नें ' नॉनवेज ' को सख्ती से मना कर दिया .उनका कहना था ......हमनें जिंदगी भर लोगों को फल खिलाए और फल ही खिलाएंगे ...ये तो रवायत है कि खाना खिलाना है वरना हम तो चाहते थे कि हमारे सारे अजीज़ किस्म किस्म के शानदार फलो का लुत्फ़ लेकर पेट भरें और नए जोड़े को दुआएं दें .
दहेज़ की कोई बात ही न हुई लेकिन लोगों नें इतना सामान गिफ्ट किया और इतनी सौग़ातें आईं जिन्हे लिखना भी मुमकिन न था .
निक़ाह हुआ और आखिर में टेन्ट वाले टेंट समेट कर चले गए .हलवाई , किराना सब चले गए लेकिन पैसे लेने से साफ़ इंकार कर दिया ....उनका एक ही ज़वाब था ....कि ज़मीला हमारी भी बेटी है .
अरे ! कोई क्या खा कर हाज़ी मियां ' फलवाले ' से मुक़ाबिल होगा .जो इज्ज़त उन्होंने कमाई वो कोई क्या पाएगा . " एक फलवाले " की इतनी इज्ज़त गोया कोई नवाबज़ादा भी क्या पाएगा ?
दुल्हन बन ज़मीला जिस दिन जुम्मन के घर आई .
जुम्मन इतने खुश थे गोया कारु का ख़जाना हाथ लग गया हो .
और एक दिन हाज़ी मियां ' फलवाले ' रात में सोए तो फिर उठे ही नहीं . जुलूस की शक्ल में उनकी मइयत कब्रिस्तान पहुंची और उनकी आखिरी मर्ज़ी पूरी हुई कि ....मैं भी मर कर अपने वतन की मिट्टी में दफ़न होना चाहूँगा ...जहां मेरे पुरखे दफ़न हैं .
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वक्त बड़े से बड़ा घाव भर देता है . इधर हाज़ी के गुज़र जाने से ...मिर्ज़ा को बड़ा सदमा पहुंचा . अब वे ज्यादातर गांव में ही रहते और इक दिन उनका फ़ोन आया ......फ़ौरन चले आओ ,अपनी बीवी को भी साथ लाना .
जुम्मन अपनी बीवी के साथ अपनी ननिहाल पहुंचे .वहां उनका और ज़मीला का शानदार इस्तक़बाल हुआ .वहां वे एक हफ्ते रहे और उन्हें इतनी मोहब्बत मिली कि उनका सीना चौड़ा हो गया .

वे मियां बीवी वापिस लखनऊ आए . बहुत खुश थे दोनों ...क्या सुनहरे दिन थे .हुस्न की मलिका और इश्क के बादशाह को जिंदगी नें वो मज़ा दिया जिसे हम चाह कर भी लिख नहीं पा रहे .
धीरे धीरे पाँच साल बीत गए .जिंदगी उन्हें खुशियों के हिंडोले पर झुला रही थी . अभी तक तो जुम्मन खुद ही बच्चा नहीं चाहते थे ...जवानी के मज़े लूटना चाहते थे ...लेकिन अब उनको फ़िक्र होने लगी थी .
इधर कब्बन मिर्जा 67 साल के हो गए और उसी साल उनका गांव टाउन एरिया की जद में आ गया .ज़मीन एकड़ और डिसमिल में नहीं बल्कि फुट और इंच में बिकने लगी .
कब्बन मिर्ज़ा एंड ब्रदर्स के पास तो चालीस एकड़ ज़मीन थी और क़ायदे से उसके तीसरे हिस्से के इक तनहा मालिक ' कब्बन मिर्ज़ा थे जो तक़रीबन तेरह एकड़ थी .
जमीनें तेज़ी से बिक रहीं थीं . जहां खेती होती थी वहां तेज़ी से कंक्रीट के जंगल उग रहे थे . और मिर्ज़ा के भाइयों नें पहले पहल मजबूरी में ज़मीन बेची .लेकिन स्कवॉयर फुट में जमीन बिकने से उन्हें बहुत पैसा मिला और वे सोच समझ कर प्लाटिंग करके जमीन बेचने लगे और फिर अनजाने में ही सबकी जमीनें अलग अलग हो गईं 
एक दिन मिर्ज़ा लखनऊ आए तो भांजे को लेकर सीधा रजिस्ट्री ऑफिस चले गए और अपनी सारी प्रॉपर्टी जिसमें वो घर भी शामिल था जहां जुम्मन रहते थे .....जुम्मन के नाम लिख दिया .
अब इस करोङों की प्रॉपर्टी के मालिक जुम्मन मियां थे . ख़ारिज दाखिल के बाद वे जुम्मन के साथ गांव गए और अपने इस काम को अपने भाइयों और कुनबे को तफ़सील से बताया और कहा कि अब से जो कुछ भी मेरा था अब हमारे भांजे जुम्मन का है . उस वक्त तो किसी कुछ नहीं कहा लेकिन अंदर ही अंदर सभी सुलग उठे .
तीन महीने बाद कब्बन मिर्ज़ा ....हज़ को चले गए लेकिन फिर वापस न लौटे . अब तो क्या बात थी इतनी बड़ी प्रॉपर्टी के मालिक जुम्मन मियां का एक पैर लखनऊ और दूसरा गांव मैं रहने लगा .
इस बीच साज़िशे रची जाने लगीं और मिर्ज़ा की गुमशुदगी में ज़मीन के मुआमले पर कोर्ट में नालिस कर स्टे ऑर्डर ले आए .
अब जैसा कि कहावत है ...." दीवानी दीवाना बना देती है " .कोर्ट कचहरी के बवाल में जुम्मन मियां डिप्रेसन में आ गए और धीरे धीरे उनकी टेंशन बढ़ने लगी .
शादी के इतने साल बीत गए अब तक कोई औलाद न हुई और आख़िरकार ज़मीला एक गायनकोलॉजिस्ट के पास पहुंची . उसने कई टेस्ट करवाए और बोली ....कोई कमी नहीं है .हस्बैंड को लेकर आओ .उस समय मियाँ कोर्ट मैं बिज़ी थे .मुक़दमा अपने अहममोड़ पर जा पहुँचा था .जुम्मन मियाँ कुछ भी करके स्टे ख़ारिज करवाना चाहते थे और इन दिनों उनका दिन का चैन और रात की नींद हराम थी .
ज़मीला की अपनी कुछ अलग ही फिलॉसफी थी 
उसने अपने वालिद को हमेशा पांचो वक्त की नमाज़ पढ़ते और रमज़ान के साथ साथ और भी दिनों में रोज़ा रखते देखा था .उनकी आँखों की चमक और चेहरे का नूर ...मरते दम तक कायम था .जब से वो जानने समझने लायक हुई उन्हें कोई शिकायत करते या फ़िक्र करते न देखा था उनकी सोहबत का असर था कि वो भी उन्ही की तरह हो गई थी ...बे फिकर . लेकिन साईकिल का पंचर जोड़ते जोड़ते ...टायर के शोरूम का मालिक बनने तक जुम्मन मियां नें बहुत पापड़ बेले थे और छप्पर फाड़ कर देने की एवज में ख़ुदा नें उनका सुकून भी छीन लिया था .
मज़हब के नाम पर वे रोज़ा तो रख लेते लेकिन कभी जुमे की नमाज़ अदा करने भी न गए . शादी के बाद कुछ दिनों तक वे इतने अदबी हो गये थे कि पांचो वक्त की नमाज़ अदा करने लगे लेकिन उसके बाद तो जैसे उनका ख़ुदा ही उनसे जुदा हो गया .
उस दिन लेडी डॉक्टर नें जमीला का मुआयना कर फ़रमाया ...ये पांच गोलियां हैं .रोज़ एक गोली खाना है और रोज़ खाबिंद से मिलना है हो सके तो कई बार मिलना है .
वो गोलियाँ लेकर ज़मीला अपने घर आई और वो इस तरह तैयार हुई जैसे आज ही उसकी सुहागरात हो . मियां सात बजे घर लौटे तो वैसे ही उदास परेशान थे जैसे रोज़ रहते थे . उनके वकील से उनकी बात हुई थी उसी बात का तबसरा उनके दिमाग़ में गूँज रहा था . गर्मियों में सोने के पहले वे रोज़ नहाते थे .उन्होंने डिनर किया और कुछ देर बैठे कुछ सोचते रहे फिर बाथरूम में घुस गए . आज उनकी बीवी अज़ब शोख़ नज़रों से उन्हें देख रही थी . वे नहा कर आए ....नाईट ड्रेस पहनी और ए सी की ठंढक में चद्दर के नीचे घुस गए . उन्होंने इस तरफ ध्यान नहीं दिया कि कमरे की लाइट बुझी क्यों और नाईट लैंप वक्त के पहले जला क्यों ? उनके दिमाग़ में तो अदालत , खसरा और खेतौनी टहल रहे थे .
उन्होंने करवट बदली और उनकी बीवी नें उन्हें बाहों में भरा .....उसने तो कुछ भी न पहना था 
बहुत दिन बाद ऐसा हुआ और जुम्मन मियां ने बीवी की ईंट का जवाब पत्थर से दिया . लेकिन अफ़सोस ये मोहब्बत का खेल ज्यादा देर न चल सका और जुम्मन मियाँ का झंडा रास्ते में ही झुक गया . ज़मीला हैरान हो गई ....ऐसा तो कभी न हुआ और उसने मियाँ के साथ देखी अँग्रेजी फिल्मों की हीरोइनों की तरह हर पैंतरा आजमाया लेकिन मियाँ मानो पाथर ही हो गए . वो तड़पती रही और मियाँ के ख़र्राटे गूँजने लगे . पाँच दिन में हर दिन वो लेडी डॉक्टर की गोली खा कर अपने हुस्न का जलवा बिखेरती लेकिन हाय री क़िस्मत झंडा बुलंदी तक न पहुंचा . 

हमेशा खुश रहने वाली ज़मील ....ग़मज़दा रहने लगी . और धीरे धीरे ये ग़म ...गुस्से में बदलने लगा . और फिर उसने चुन चुन कर दिल को चीर देने वाली नाक़ाबिलेबर्दास्त बातें कही कि जुम्मन का ज़मीर उन्हें बर्दास्त न कर सका और जिंदगी में पहली बार जुम्मन नें ज़मीला पर हाँथ चला दिया .
तीन दिनों तक दोनों नें खाना भी नहीं खाया .जुम्मन पछता रहे थे तो ज़मीला को पहली बार मार खाने का ग़म भुलाए न भूलता था . उन मियाँ बीवी की खुशी को जैसे किसी की नज़र लग गई .
कोर्ट कचहरी और ज़मीन जायदाद से बड़ा मसला वो थप्पड़ बन गया जो ज़मीला के गोरे गाल पर पड़ा था जिस पर उंगलियों की छाप अगले दिन तक न मिटी थी .
उनके बीच बातचीत बिलकुल बंद हो गई . खाना बनता ..दोनों खाते लेकिन बात करना तो दूर आँखें तक न मिलाते .
एक दिन उदास परेशां जुम्मन यूँ ही पैदल चले जाते थे कि उनके दोस्त बब्बन सिंह की आवाज़ उन्हें सुनाई पड़ी . बब्बन जो एक मेडिकल स्टोर चलाते थे ....पीछे से आए और बोले ...." अमां मियाँ कहाँ भागे जाते हो ....बहुत दिन हो गए एक कप चाय हो जाय ."
जुम्मन उनकी बात न टाल सके और उनकी दुकान पर जा बैठे . चाय आई और बातें शुरू हुई .
बब्बन ....जुम्मन की रग रग से वाकिफ़ थे गोया जुम्मन का दर्द भांप गए और चिंता फ़िकर की वज़ह जाननी चाही . ....हिचकते हिचकते ....शरमाते सकुचाते जुम्मन मियाँ नें उन्हें बताया 
......" दोस्त इन दिनों कुछ मर्दाना कमज़ोरी आ गई है .बीवी शिकायत करती है !!" 
बब्बन हॅसने लगे और बोले ....भई कुछ तफ़सील से बताओ .
और जुम्मन मियाँ नें तक़रीबन खुल कर उन्हें तकलीफ़ बताई .
बब्बन भाई नें उन्हें कुछ गोलियाँ दीं और खाने का तरीक़ा समझा कर बोले ...." मियाँ ! ये कोई चिंता की बात नहीं ...रोज़ दसियों लोग मेरी दुकान पर आकर इसे खरीदते हैं .ये तो आम बात है ....हमनें भी आजमाया है . बे फ़िक्र होकर जैसा कहा है करो .
एक ठंडी साँस भर कर जुम्मन वहाँ से दवा लेकर लौटे . उनकी बीवी झगड़े के एक महीने बाद भी फूली फूली रहती थी . उस दिन जुम्मन ....बेले का गजरा लेकर घर आए .

और रात में उन्होंने वो धमाचोकड़ी मचाई कि अब तक का सारा रिकार्ड तोड़ दिया . बीवी हैरान हो गई . आज वो बहुत खुश थी . बीवी का ग़म ओ ग़ुस्सा ग़ायब था और फिर बब्बन भाई की सलाह पर वे दोनों एक स्पेशलिस्ट डॉक्टर से मिले और साल भी न बीता कि उनके घर " लड़का " पैदा हुआ .
..............................................................इधर तारीख पे तारीख पड़ती गई और मियाँ के रसूख़दार मामाओं नें ज़मीन पर जबरिया कब्ज़ा करना चाहा . जुम्मन फिर परेशां हो गए और उनका ज़्यादा वक्त गांव में ही गुजरने लगा .....करोड़ो की जायदाद का सवाल था .इस बीच उनकी गैरमौजूदगी और लापरवाही की वज़ह से पहले शो रूम बंद हुआ फिर पंचर की दुकान .
बीवी नें लाख समझाया ....' ये सब तुम्हारा था ही नहीं जिसके लिए तुम मरे जा रहे हो . तुम्हारी तो दुकान है वही सम्भालो नहीं तो पछताओगे .' 
और एक दिन वे मुक़दमा हार गए . डबल बेंच में अपील की उनकी ताब न थी और उस दिन वे कब्रिस्तान की दीवार से टिक कर ...रोते हुए ख़ुदा से मौत मांग रहे थे .
तीन दिन से लापता जुम्मन की बीवी उन्हें खोजती गांव पहुंची और उनको पकड़ कर लखनऊ ले आई .
जैसे कि दिन बीतते देर नहीं लगती . ग़म हो या खुशी दोनों बीत ही जाते हैं . ज़मीला अपने मियां को लाइन पर लाने में क़ामयाब हुई . उन्होंने पंचर की दुकान संभाली और उस पर बैठने लगे .
एक दिन जाने कहाँ से सब कुछ जान कर वो बौड़म " पप्पू " जो हाज़ी मियां के गुजर जाने के बाद कभी घर न आया ...आज घर पे आ धमका .
ज़मीला कपड़े फ़ैला रही थी ...छत से नीचे उतरी उसका बच्चा इत्मिनान से सो रहा था . उसने दरवाजा खोल कर उसे दीवानख़ाने में बैठाया और खुद चाय बनाने चली .
वो चाय नाश्ता लेकर लौटी और खैरियत पूछी .पहले तो पप्पू टुकुर टुकुर उसका मुँह देखता रहा फिर बुक्का फाड़ कर रोने लगा . ज़मीला तपाक से उठी और उसके मुँह पर हाँथ रख दिया और बोली .....चुप कर मुन्ना उठ जायेगा ....
अभी तक उसे पता न था कि ज़मीला को बच्चा हुआ है . वो हड़बड़ाकर उठा और जबरदस्ती बच्चे को उठा कर नाचने लगा ....." या ख़ुदा रहम कर ..कहीं मैं खुशी से पागल न हो जाऊँ ." ज़मीला को समझ में न आया कि ये बौड़म पहले बुक्का फाड़ कर रो रहा था अब ख़ुशी से नाच रहा है ! बच्चा जाग गया और उसने सू सू कर दी और पप्पू भीग गया . उसने बच्चे को माँ को सौपा और बोला ...आपा ! कहना तो न चाहिए लेकिन कहूंगा भले ही कुफ्र हो . आज मुन्ने का ये सू सू मुझे आबे जम जम लग रहा है .इतनी ख़ुशी मुझे आज तक न मिली . शाम को आऊंगा ...दूल्हे मियाँ को बोल देना घर पर रहे .
और शाम को पप्पू अपने कहे मुताबिक़ हाज़िर हुआ ....उसके हाँथ में ढेर सारी मिठाइयां और खिलौने थे और कंधे पर भरी बैग .
पहले पहल उसने सारा सामान एक तरफ रखा और बच्चे को चूमने चाटने लगा फिर उसने दोनों मियाँ बीवी को सलाम ठोका .
पप्पू बड़ी संजीदगी से बोला ....आपा ! तुमने हमको पराया क्यों समझा ...इतना कुछ हो गया और बताया नहीं लेकिन जितना मैं जानता हूँ उसके हिसाब से आपको पैसों की सख्त जरूरत है और उसने बैग खोल दिया ....छोटे बड़े नोटों से बैग ठसाठस भरा था .
और उसने कहा ..." आपा ! ये पैसा आप ही का है . दुकान में न माल की कमी है न गिराहकों की .
फिकर न करो ....अब्बू चले गए तो क्या ...अभी आप का छोटा भाई ज़िन्दा है और मरते दम तक आपके लिए हर समय हाज़िर होगा ." 
इतना कह कर वो बौड़म (?) पप्पू सुबकता हुआ जब तक कोई रोके ...बारादरी पार कर गया .
शो रूम फिर खुल गया . सब कुछ फिर से ठीक हुआ और अभी हफ्ते भर पहले की खबर है ...जुम्मन मियाँ की डबल बेंच से डिग्री हो गई .
टाउन हॉल में पिछले साल जो धमाका हुआ था और कई लोग मर गए थे उसकी जाँच में जुम्मन के मझले मामू गिरफ्तार हो गए ...अभी तक उनकी ज़मानत नहीं हुई . घर की तलाशी में छोटे मामू के दोनों लड़कों के कमरे से बहुत कुछ ऐसा मिला जो उनके तार सीधे टेररिस्ट ग्रुप और उनके आकाओं से जोड़ता था . दोनों मामू का परिवार तबाही की कगार पर पहुंच गया .
मुक़दमा जीत कर ...बीवी की सलाह पर जुम्मन मियॉँ उस जमीन पर तुरंत क़ब्जेदार हुए और तीन महीने के भीतर ...स्कवायर फुट के भाव से कइयों करोड़ में बेच दी .

अब न कोई हाय हाय थी न किच किच ....जुम्मन मियाँ अपनी हुस्न की मलिका के साथ रोज़ झंडा बुलंद करते थे लेकिन गोली नहीं खाते थे .








Comments

Anil. K. Singh said…
कहानी जानदार है। पढ़कर मजा आ गया। बहुत अच्छा।
Anil. K. Singh said…
कहानी जानदार है। पढ़कर मजा आ गया। बहुत अच्छा।