कि रात अभी बाकी है !!

 (यह कहानी पूरी तरह काल्पनिक है और किसी जाति या वर्ग विशेष की आलोचना करना इसका उद्देश्य बिलकुल नहीं है . ज्ञातव्य हो कि ....इस कहानी से लगभग मिलती जुलती घटना मेरे " आदरणीय दादा जी " के साथ घटी थी और वे भी अपने जमाने के प्रसिद्ध पंडित थे . इस कहानी को लिखते समय मेरे
" प्रेरणा श्रोत " वही हैं )
पंडित भोला नाथ चौबे जी .....मथुरा के प्रसिद्ध  पंडित हैं .जीवन भर उन्होंने पंडिताई ही की और जब से कम्प्यूटर आया और समाज में ...मोबाइल की तरह फैला ....तो पंडित जी भी " डिजिटल " हो गए . उनका एक शानदार ऑफिस और पूजापाठ ,वास्तु और फेंगसुई की शानदार दुकान थी . अर्वाचीन और प्राचीन सजावट का अनोखा ब्लेंड था उनका ऑफिस जो वास्तुशास्त्र का पूरा आश्रय लेकर बनवाया गया था . अपने सहयोग में उन्होंने कई कर्मचारी नियुक्त कर रखे थे .
पंडित जी इंटरनेट एस्ट्रोलॉजी से लेकर ..फेसबुक 
ट्विटर तक सब कुछ अपनाए थे . उनकी अपनी एक टीम थी जो शास्त्रीय पद्धति से हर प्रकार का कर्मकांड करने में सिद्धहस्त थी .
पंडित जी ...सुबह तड़के उठ कर नित्यक्रियाओं से निवृत हो अपने पूजा कक्ष में चले जाते और दो घंटे पूजा पाठ कर बाहर निकलते .
पंडित भोलानाथ चौबे जी ...भोजन भट्ट थे और चार लोगों का भोजन अकेले खा जाते और कुछ देर आराम कर अपने " प्रतिस्ठान " चले जाते .सारे दिन अपने ग्राहकों से निपटते और शाम पाँच बजे अपने कार्यालय से घर लौटते .
शाम को प्रतिदिन ....मीठे दूध में खूब सारे मेवे और " भांग " घोंट कर मिलाते और लगभग एक लीटर दूध पीकर ....जब वे भोजन करने बैठते तो उनका भोजन देख कर हर कोई " हैरान " हो जाता .
एक दिन वे " भाँग के नशे " में सोए . उन्हें सुबह सुबह ट्रेन से " दिल्ली " .....अपने किसी क्लाइंट से मिलने जाना था . उनकी आदत थी कि गर्मी के मौसम में वे खुले में सोना पसंद करते थे .... चारपाई पर मच्छरदानी लगा कर और सिरहाने कूलर चला कर .....गहरी नींद सोते थे लेकिन उनके खर्राटों की आवाज दो सौ मीटर दूर से सुनी जा सकती थी .
उस दिन आधी रात को यही कोई एक बजे उनकी आंख खुल गई ...." भांग के नशे " में उन्हें पता ही नहीं चला कि ....." रात अभी बाकी है " !!!
सुबह छह बजे उन्हें ट्रेन पकड़नी थी और वे रात डेढ़ बजे ही घर से " शाम को ही तैयार किया हुआ .....बैग " लेकर चल दिए . चौराहे पर सन्नाटा छाया था . चौबे जी वहां खड़े खड़े सवारी का इंतजार कर रहे थे . बड़ी देर तक उन्हें कोई सवारी न मिली तो वे पैदल ही स्टेशन की ओर चल दिए .
शारीरिक श्रम की आदत तो थी नहीं ...सो जल्दी ही थक गए  और सड़क किनारे स्थित ...तिकोनिया पार्क की बेंच पर बैठ कर अपना पेट सहलाने लगे .
तभी एक आदमी आया और उनकी बगल में बैठ गया , फिर दूसरा आया और वह भी बैठ गया . फिर तीसरा चौथा भी पहुंचा और सामने बेंच पर बैठ गया . बिजली विभाग की अपार कृपा से उस समय लाइट नहीं थी और चारो तरफ धुप अंधेरा कायम था .
तभी उनमें से एक आदमी " खैनी " बनाने लगा और कुछ समय में तैयार खैनी ....सबके सामने करता हुआ वो " चौबे जी " के सामने पहुँचा . सामान्यतः चौबे जी किसी और जाति का छुआ पानी भी नहीं पीते थे ...लेकिन " खैनी " की बात ....कुछ और थी . जैसे ही चौबे जी नें चुटकी उठाई ...वह आदमी तुरंत दो कदम पीछे हटा और पंडित जी के सीने पर चाकू रख दिया और बड़ी क्रूरता से बोला ....' कौन है तू ?' ...पंडित जी की घिग्घी बंध गई और वे बड़ी मुश्किल से बोले .......
...." पंडित भोलानाथ चौबे ". इतना सुनते ही चाकू वाले नें अपना चाकू हटा लिया और बड़ी श्रद्धा से उनके पैर छुए . एक एक कर सभी अजनबियों नें उनके पैर छुए .
तब तक ढाई बज चुके थे और पंडित जी अभी भी नहीं समझ पाए कि " रात अभी बाकी है !!!" 
खैर वे चारो एक दिशा को बढ़े तो पंडित जी भी उनके पीछे हो लिए .संयोग से रास्ता ...रेलवे स्टेशन की ओर जाता था .इतनी देर में पंडित जी जान चुके थे कि ये चारो " चोर " हैं . उस " खैनी " बनाने वाले को उन्होंने हिदायत दी कि मैं दूर निकल जाऊँ ....तभी कुछ करना . लेकिन उनकी तो " बोहनी " जाया जा रही थी और वे चारो किसी तरह एक घर में घुस गए और कुछ ही समय में जाने क्या हुआ कि घर वाले जाग गए और हल्ला मच गया . ....
" चोर चोर पकड़ो पकड़ो "...की आवाजें गूँजने लगीं और पंडित जी अपना बैग छोड़ कर बेतहासा भागे .
इतनी तेज वे जिंदगी में कभी नहीं भागे थे और किसी तरह गिरते पड़ते ....हाँथ पैर छिलवा कर किंचित घायलावस्था में वे सुबह चार बजे अपने घर पहुँचे .
वे भूल गए कि उन्हें दिल्ली जाना है !!!



Comments

Anil. K. Singh said…
कहानी मजेदार ढंग से लिखीं गयी है। व्यंग्य का भी प्रयोग किया गया है जो बहुत अच्छी बात है। अच्छा लक्षण है। बहुत अच्छा।