बायनाकुलर

 (प्रस्तुत कहानी ' काल्पनिक ' है . किसी भी व्यक्ति या स्थान से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है . इसे केवल मनोरंजन के दृष्टिकोण से पढ़ा जाना चाहिए )
वो छत पर खड़ा निरुद्देश्य ....आसमान ताक रहा था . गर्मी का मौसम था और इस समय बड़ी सुखद बयार चल रही थी .सूर्यास्त हो चुका था और धीरे धीरे शाम का धुंधलका छा रहा था . 
तभी उसकी नज़र सामने वाली बिल्डिंग की छत पर पड़ी .काला कम्बल ओढ़े एक छाया ....दबे पांव चलती सीढ़ियों की ओर जा रही थी . वह झटपट नीचे भागा और सामने वाली बिल्डिंग के गेट पर पहुंचा और ' वाचमैन ' को सारी बात बताई और उसने तुरंत पुलिस को फोन कर दिया .
पुलिस आई .....उसने सारी बिल्डिंग छान मारी मगर वह संदिग्ध न जाने कहाँ गायब हो गया ......
हाँ ....पुलिस की इस कार्यवाही को दो जोड़ी आँखे बड़े ध्यान से देख रही थीं . बात आई गई हो गई .
तीन दिन बाद उसने फिर उसी संदिग्ध छाया को छत पर देखा ....वो छत पर बने कमरे से निकल कर दबे पाँव सीढ़ियों की तरफ जा रही थी . वह फिर नीचे भागा और ' वाचमैन ' को सारी बात बताई .पुलिस आई ....तलाशी हुई और फिर कुछ न मिला और दो जोड़ी आँखे आज भी पुलिसिया एक्शन को ध्यान से देख रही थीं .
उस दिन रविवार था .शाम का अंधेरा धीरे धीरे घना हो रहा था और वो छत पर स्थित झूले पर बैठा सामने देख रहा था कि तभी छत पर लगे बल्ब की रोशनी में उसने फिर उसी छाया को देखा .वह नीचे जाने के लिए उठा कि ठिठक गया और पिछली बार संदिग्ध के न मिलने पर जिस उपहास की मुद्रा उसने ' वाचमैन ' और ' पुलिस ' के मुँह पर देखी थी ....वह याद आ गई . वह चुपचाप बैठा सामने देखता रहा और एक अन्य छाया सीढ़ियों की ओर बढ़ी ........
अपने कौतूहल को वह बर्दास्त नहीं कर पा रहा था आखिरकार वो बाज़ार गया और एक शक्तिशाली  " बायनाकुलर " खरीद लाया .
वह हफ्तों तक रोज आँखों पर " बायनाकुलर " चढ़ाये सामने की बिल्डिंग की छत देखता रहा लेकिन उसे कुछ भी संदिग्ध न दिखा .

 बात आई गई हो गई और एक दिन उसके मेडिकल स्टोर पर एक लड़की पहुंची .उसके हाँथ में एक दवा का प्रिस्क्रिप्सन था ....उसने लिखी हुई दवा उसे दे दी .
एक दिन वो यों ही छत पर टहल रहा था . आदतन उसकी निगाह सामने की छत पर बने कमरे की खिड़की पर पड़ी और वहाँ उसे एक छाया डोलती दिखी . वो नीचे भाग कर गया और अपना " बायनाकुलर " ले आया . काफी देर तक देखने के बाद भी उसे कुछ न दिखा और कमरे की लाइट बंद हो गई .
कुछ समय बाद एक छाया सीढ़ियों की ओर बढ़ी उसने अपना " बायनाकुलर " आँखों से लगाया और वह छाया उसे दस गुना बड़ी दिखने लगी . और कुछ तो वह नहीं देख पाया .....लेकिन उस छाया के जूते उसे साफ दिखे .
अब वह प्रतिदिन नियत समय पर आकर झूले में बैठ जाता और आँखों से " बायनाकुलर " सटाए टकटकी लगाए ....सामने वाली बिल्डिंग की छत देखता रहता .

और एक दिन ....उसने अपने " बायनाकुलर " का फोकस हाई रिजोल्यूशन पर सेट किया और उसने देखा कि छत पर बने कमरे से एक छाया गरमी के मौसम में भी काली शाल से पूरा शरीर ढके सीढ़ियों की ओर बढ़ रही थी . उसे ....उसके पैरों के आलावा कुछ न दिखा लेकिन इस बार पैरों में जूते नहीं थे ....वह तो लेडीज चप्पल थी .
अब उसका कौतूहल जोर पकड़ने लगा . अगले दिन शाम को वह दुकान से लौटा तो उसने देखा कि उसका अठारह साल का बेटा बड़े मनोयोग से बैठा पढाई कर रहा था .



 उसने कपड़े बदले और चाय की प्याली हाँथ में पकड़े गले में " बायनाकुलर " लटका कर छत पर जा पहुँचा कमरे में दो परछाइयाँ उसे बंद खिड़की के कांच से दिखीं .कुछ देर बाद कमरे की लाइट बंद हो गई . और एक घंटे बाद उसे एक छाया सीढ़ियों की ओर जाती दिखी . अपना " बायनाकुलर " आँखों से सटाए वह उसकी हर गतिविधि बड़े ध्यान से देख रहा था . सीढ़ियों पर लगे फुटस्टेप बल्ब की रोशनी में उसने देखा ....वह छाया आज मर्दाना जूते पहने थी .
अगले दिन उसे उस परछाई के वुडलैंड जूते उसे साफ दिखे .
छत से नीचे आने पर उसने अपने बेटे को पढ़ता हुआ पाया तो उसके सिर पर प्यार से हाँथ फेरने लगा .तभी उसकी नजर मेज के नीचे उसके जूतों पर पड़ी ....ऐसे ही वुडलैंड के जूते उसने आज देखे थे .
उसके मन में शंकाओं के बादल मंडराने लगे .लेकिन वो क्या करता ? अगले दिन शाम को अपनी दुकान असिस्टेंट के हवाले कर और उसे दिशा निर्देशन कर वह थोड़ा जल्दी घर आ गया .उसका बेटा आज भी उसी मुद्रा और वेश भूषा में बैठा पढाई में तल्लीन था .
उसने चाय की प्याली हाँथ में ली और अपना " बायनाकुलर " लेकर छत पर जा पहुंचा . कुछ देर बाद एक छाया सीढ़ी से कमरे की ओर बढ़ी ....उसकी लेडीज चप्पलें उसे साफ दिखीं . कुछ देर बाद एक और छाया सीढ़ियों पर नमूदार हुई और उसके जूते उसे साफ दिखे .वह जानता था कि अभी कमरे की लाइट बुझेगी और घंटे भर बाद फिर जलेगी . वह तुरंत नीचे उतरा और उसका लड़का पढाई की मेज पर नहीं था .
उसका माथा ठनका और वह फिर छत पर भागा .
कुछ समय बाद दोनों परछाइयां बारी बारी से कमरे से निकल ....सीढ़ियों की ओर बढ़ी . उसने एक लम्बी साँस खींची और नीचे उतरा ....उसका लड़का मेज पर बैठा पढाई में तल्लीन था .
सामने वाली बिल्डिंग में एक बुजुर्ग दंपत्ति रहते थे उन्होंने फोन करके कुछ दवाएं भिजवाने का आग्रह किया और उसके दिमाग में एक खुराफाती आइडिया आया .
शाम को उन बुजुर्गों की दवा लेकर वह सामने वाली बिल्डिंग में लगभग उसी समय पहुंचा जब वो छत पर होता था . दवाएं डिलीवर कर और पैसे लेकर वह सीधा बिल्डिंग की छत पर पहुंचा . वहां कोई नहीं था .उसने छत पर बने कमरे का दरवाजा धीरे से ठेला ...अंदर भी कोई नहीं था .
वो चुपचाप आलमारी के पीछे खड़ा हो गया और सुनिश्चित किया कि उसके शरीर का कोई हिस्सा न दिखे .
कुछ देर बाद शाल ओढ़े एक 17 -18 वर्ष की सुन्दर लड़की अंदर आई और बेड पर बैठ गई .उसने उसे तत्काल पहचाना ...यह वही लड़की थी जो कुछ दिन पहले उसकी दुकान पर दवा लेने आई थी . उसे दवा का नाम याद आया और उसका दिमाग सांय सांय करने लगा ....वे अबार्सन की गोलियां थीं .
अभी वह यही सब सोच रहा था कि " उसका लड़का " कमरे में घुसा और लड़की से आलिंगनबद्ध हो गया . कुछ देर उससे बातें करता रहा .फिर कमरे की लाइट बंद हो गई और उसने अँधेरे में भी वह देखा जो उसे नहीं देखना चाहिए था .

Comments

Anil. K. Singh said…
जासूसी उपन्यास की शैली में कहानी लिखी गयी है। कहानी साहित्यिक है। पढ़ने में बहुत अच्छा लगा। पहले लगा कि अंत किसी तां त्रिक के माध्यम से होगा। बाद में कुछ और निकला।