चार लाइन की बेचैनी !!!

 चार दिन हो गए ....मेरा कहीं आने जाने या किसी से मिलने का मन नहीं होता . किसी भी काम को अनवरत करने का तो प्रश्न ही नहीं . सारा दिन रजाई ओढ़े बिस्तर पर पड़ा रहता हूँ . एक अजीब सी बेचैनी घेरे रहती है .स्थिति इतनी विकट हो जाएगी ...इसकी तो मैंने कल्पना नहीं की थी !!
 सब अच्छा है ! सब ठीक है !! सब ठीक हो जायेगा !!! ऐसा स्वयं को समझाते समझाते मेरा मन ' ऊब '
 गया है और विद्रोह करने पर उतारू है . वह कहता है अब परिणाम दिखेगा ....तब मानूँगा !!! ' पावर ऑफ़ पॉजिटिव थिंकिंग और द मैजिक ऑफ़ थिंकिंग बिग "
के सारे उपदेश गए तेल लेने . मन अब मानने को तैयार नहीं . वह तो उल्टा कुछ समझाने पर क्रोधित हो जाता है .
मन को क्रोधित देखने का अनुभव मेरे लिए बिलकुल नया है . सच कहता हूँ जिन मानसिक उलझनों से मैं दो चार हूँ ....अगर कोई और इस स्थिति में होता तो मैं इसका ऐसा विशेषज्ञ हल निकालता कि पढ़ने सुनने वाले सभी समर्थन करने लगते लेकिन कहावत है न ..
....दीपक तले अँधेरा ! .....पर उपदेश कुशल बहुतेरे .
देखिए कब तक चलती है ये ....भाव दशा !!! परिजन और बच्चे भी मुझे इस तरह देख कर घबराने और ऊबने लगे हैं . विडंबना यह है कि मैं काफी कुछ खुल कर लिख भी नहीं पा रहा . इस मानसिक स्थिति का कोई सकारात्मक हल निकल आता तो शायद किसी कथा कहानी के मार्फ़त .....मैं इस विषय पर कुछ लिख पाता !!

लेकिन अभी तो चार लाइनें भी बड़ी मुश्किल से लिख पा रहा हूँ . गहराई में जाने पर भयानक घबराहट होती है . इतनी बेचैनी मैंने लगभग कभी अनुभव नहीं की .

Comments

Anil. K. Singh said…
आत्मा कथात्मक शैली में लिखा गया पोस्ट बहुत पसंद आया। उम्मीद है मेरे इस पोस्ट को पढ़ने से पहले ही आपकी तबियत ठीक हो चुकी होगी।