स्टेट्स सिम्बल

( यह लघुकथा पूरी तरह काल्पनिक है और कई लघु कथाओं का घालमेल है . किसी भी व्यक्ति से इसका कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है )

वो लगातार कई महीनों से अत्यधिक मानसिक तनाव में था और यह तनाव अब अवसाद का रूप लेने लगा था . उसकी आमदनी लगातार घट रही थी और खर्चे लगातार बढ़ रहे थे .
मन में एक अबूझ बेचैनी और अपराधबोध के साथ हीनभावना भी धीरे धीरे ....घर बनाने लगी थी . इस स्थिति का सीधा और सरल कारण केवल यही था कि वह अपने किसी भी परिजन की कोई " आशा और आकांक्षा " पूरी नहीं कर पा रहा था . अब तो उसके मन में रह रह कर केवल " आत्महत्या " के विचार आते रहते थे लेकिन इस विध्वंशक विचार को क्रियान्वित कर पाने की उसकी हिम्मत नहीं होती थी .
वह जहाँ भी जाता उसके " मन का चोर " उसे कहीं शांति से न बैठने देता . दूसरों के कपड़े , दूसरों की गाड़ी और दूसरों का ...." मोबाइल फोन " उसे " हीनता का अहसास " कराते रहते .
अभी ...उस दिन वो कुछ परिचितों के साथ एक सस्ते से होटल में बैठा चाय पी रहा था ....सब के मोबाइल फोन ' उनके हाँथ ' में थे ...एक से बढ़ कर एक मॉडल . कुछ लोग बिना मतलब ही अपने मोबाइल फोन में घुसे खुद को व्यस्त दिखा रहे थे . कुछ लोग तथाकथित " सोशल मीडिया "
और आभासी दुनिया के चर्चे चटखारे लेकर कर रहे थे .
लेकिन उसके पास तो एक पुराना सा बटन वाला फोन था ....जिससे केवल बात ही की जा सकती थी ....जब भी उसकी घंटी बजती तो सबके सामने वह उसे जेब से निकालता ही नहीं था और बात करने के लिए एकांत खोजने लगता था . उसका वह बूढा फोन भी अब बीमार रहने लगा था ...उसकी बैटरी वीक हो चुकी थी जिसे बार बार चार्ज करना पड़ता था ....नई बैटरी लेने के बारे में वह सोच भी नहीं पाता था ....अब वह अपने अधिकांश परिचितों की तरह " स्मार्ट फोन " ले भी तो कैसे ?
एक तो करेला ऊपर से नीम पर चढ़ा .घर के लोगों के ताने उलाहने सुन कर ....उनसे ऊब कर जब वो बाहर निकलता तो " ये फोन " उसका मुँह चिढ़ाने लगते . 
अपना स्टेटस उसे छोटा लगने  लगा और उसे लगा वह एक " बौना " हो गया है जो लगातार छोटा होता जा रहा है . लोग उसकी हँसी उड़ा रहे हैं .....उसे ताने दे रहे हैं . और अचानक वह उस " चाय पार्टी " से उठ कर चल दिया .
रास्ते में पड़े छोटे पत्थरों को अपने पैर से ठोकर मारता मन मारे वह ...अपने घर की ओर पैदल ही जा रहा था . अभी वह अपने घर से लगभग 200 
मीटर दूर था कि सिर झुकाए नीचे पड़े छोटे पत्थरों को ठोकर मारते उसे सड़क की पटरी पर चारो खाने चित पड़ा " एक खूबसूरत स्मार्ट फोन " दिखा ...जो शायद किसी की ज़ेब से गिर गया था ......उसनें चोर नजरों से चारो तरफ देखा और स्थिति का मुआयना किया ....शाम के सात बजे दूर दराज की इस टूटी फूटी सड़क पर एक हीनता की ग्रंथि से खुद पर क्रोधित एक व्यक्ति को अपना क्रोध शांत करने के लिए बिखरे पड़े ढेलों वाली इस सड़क पर दूर दूर तक अपने सिवा कोई न दिखा ....और उसने उन ढेलों को जिन्हे उसने ठोकर मारी थी ...को दिल से धन्यवाद करते हुए उस खूबसूरत और वास्तव में स्मार्ट उस फोन को उठा कर दिल से लगा लिया . उसे उस समय ऐसी खुशी मिली जैसी एक पचास साल के उस विधुर व्यक्ति को होती जिसे बीवी के दस साल पहले गुजरने के बाद कभी सम्भोग सुख नहीं मिला हो और अचानक उसकी खूबसूरत पड़ोसन नें उसे सीधा रति आमंत्रण दिया हो . लेकिन उस खूबसूरत मोबाइल फोन को अपने दिल से लगाने के बाद भी उसका दिल उसी तरह घबरा रहा था ...जैसे उस " विधुर " का घबरा रहा था ..जब उसे डर लगा था कि कहीं कोई देख न ले या कोई जान न जाय .

वह चोरों की तरह तेजी से चलता उसी तरह अपने घर आया कि जैसे पड़ोसन से " रतिक्रिया " के दौरान ही उसका पति आकर दरवाजा खटखटाने लगे और वो पिछवाड़े से निकल कर जल्दी जल्दी चलता हुआ अपने घर पहुंचा हो .
उसका रंग उड़ा था ....हाँथ पैर काँप रहे थे ....जुबान लड़खड़ा रही थी और घर में घुसते ही उसका अपनी पत्नी से आमना सामना हो गया .
जो उसे आता देख कर ...उसकी ओर तेजी से यह उलाहना देने पहुंची थी कि ...' आज भी तुमने आटा क्यों नहीं पिसवाया ?' ......लेकिन अपने पति के मुँह पर हवाइयाँ उड़ती देख , वह सन्नाटे में आ गई . जब तक वो अपने पति से कुछ पूछती ...उसने जेब से वो " खूबसूरत दिलफरेब मोबाइल " निकाला और अपनी बीवी के हाथ में रख दिया जिसे देख कर उसकी उसी तरह नीयत डावांडोल हो गई थी जैसे विश्वामित्र की मेनका को देख कर हुई थी . उसे अच्छा बुरा किसी का होश नहीं था .पत्नी नें प्रश्नसूचक नेत्रों से उसे देखा तो उसनें सारी ' मोबाइल कथा ' अक्षरसः सुना दी . अभी उसकी कथा अपने क्लाइमेक्स तक पहुंची भी न थी कि उस दिलफ़रेब फोन की कर्णप्रिय मधुर रिंगटोन बजने लगी और उसकी बीवी नें वह फोन इस तरह उसे पकड़ाया जैसे वह कोई ' बम ' हो जो तत्काल फटने वाला है .
उसने तत्काल ' लाल बटन ' पर ऊँगली रखी ...अभी उसने सिर उठाया ही था कि वह फ़ोन फिर बजने लगा और उसकी मधुर ध्वनि सुन कर उसका बारह साल का बेटा आ पहुँचा . उसने एक स्मार्ट फोन देखा जिसे उसके पिता नें पुनः डिस्कनेक्ट कर दिया था . उसने फोन देखा और माँ बाप के मध्य चल रही " फोन कथा " को गौर से सुन कर ...खुशी से उछल पड़ा ....वह लड़का घर में भाग कर गया ...एक पेपर पिन लाया और ' सिम ' निकाल कर और तोड़ कर फेंक दिया . 
अपने पुत्र के निर्देशानुसार वह घर से बहुत दूर एक ' मोबाइल समस्या निवारण केन्द्र ' पर पहुंचा और टेक्नीशियन से बोला ...' मेरे लड़के नें इस फोन में कोई पासवर्ड लगाया है जो कि वह भूल गया . अब यह खुल नहीं रहा .
टेक्नीशियन नें दो सौ रूपए लेकर फोन का ' सॉफ्टवेयर ही बदल दिया .
अब ' उस पड़ोसन 'का पति क्या करता !!! जब उसका ' सॉफ्टवेयर ' ही बदल गया ....और वो फ़ोन को  नए खूबसूरत कपड़े पहना कर ...और अपने नाम का ' सिमकार्ड ' लगा कर और उस पर पूरा मालिकाना हक़ जता कर और शान से उसे अपनी बाहों में उठा कर ....लोगों के बीच नए नए फ़ैशनेबल ऐप्स , फेसबुक ,ट्विटर और यू ट्यूब की शान से व्याख्या करता तो उसे वही सुख मिलता जो शायद " रतिक्रिया " में भी न मिलता .
उस " स्मार्ट फोन " नें तो उसकी सोचने की प्रक्रिया ही उलट दी . 
और उस " खूबसूरत और दिलफरेब फोन " नें उसे उन दिनों ऐसा ' रति समान ' सुख दिया जो उसे शादी के बाद ....तब तक मिलता रहा जब तक उसका वर्जन पुराना नहीं हो गया .


Comments

Anil. K. Singh said…
इस कहानी में आप ने मनोचिर्तण पर जोर दिया है। जो आज की कहानी की विशेषता हो सकती है। लेकिन कहानी में एक नायक होता है। नायक को आपने कोई नाम नहीं दिया। सिर्फ 'वह 'लिखते चले गये। नायक नायिका का नाम लिखना जरूरी होता है।

बहुत अच्छा