अनुजा

 ( प्रस्तुत कहानी एक काल्पनिक रचना मात्र है )
मिस्टर अमेय मजूमदार ....एक ख्यातिप्राप्त लेखक थे और दार्जलिंग में अपने विशाल बंगले में रहते थे . बेटा अमेरिका में सेटल्ड था ....उसने वहीं शादी कर ली थी और अब वह अमेरिकी नागरिक था . बेटी एक क्रिश्चियन युवक के साथ ....हालैंड चली गई . वह भी वहाँ खुश थी और अक्सर अपने पिता से फोन पर बात भी कर लेती थी .
मिस्टर अमेय ...लिखते " हिन्दी " में थे लेकिन उनकी जीवनशैली और विचारधारा पूरी तरह अंग्रेजियत में रंगी थी . बातचीत वे अंग्रेजी में करना पसंद करते थे लेकिन लिखते हिन्दी में थे .
उनकी लिखने की ही खब्त थी कि उन्होंने जमी जमाई नौकरी छोड़ कर साहित्य की राह पकड़ी .
उनकी पत्नी किसी प्रतिष्ठित मल्टीनेशनल कंपनी में उच्च पद पर थी ....अच्छी खासी सेलरी पाती थी ...लेकिन , उनके लिखने की सनक के कारण वह उन्हें छोड़ कर हमेशा के लिए सिंगापुर चली गई और मिस्टर अमेय मजूमदार बिना " तलाक " के " तलाक़शुदा " हो गए ....उसका मिस्टर अमेय से फोन पर बात करने तक का .....सम्बन्ध नहीं था . भगवान की कृपा ही थी कि ऐसी नौबत आने के पहले ही वे एक " साहित्यकार " के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे . उन्हें अपनी रचनाओं से इतनी रॉयल्टी मिल जाती थी कि उनका खर्च मजे से चल रहा था .
अमेय जी ....सुबह आठ बजे सो कर उठते और नौकर नाश्ता पानी दे देता . फिर वे अपनी स्टडी में घुस जाते . वे हमेशा या तो कुछ लिखते रहते या पढ़ते रहते . उनका व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक था .
इस समय उनके पास प्रकाशन योग्य इतनी सामग्री इकट्ठा थी कि वे उसे समय पर टाइप नहीं कर पा रहे थे . प्रकाशक उन्हें जल्दी से जल्दी रचनाओं का ड्राफ्ट भेजने को मेल करता और वे एक ही जवाब देते .....तैयार हो रहा है .
एक दिन उन्होंने फैसला किया कि उन्हें किसी "टाइपिस्ट कम कम्प्यूटर ऑपरेटर " की जरूरत है और उन्होंने इस आशय का एक विज्ञापन स्थानीय समाचार पत्र में दिया . अगले दिन कुल दस आवेदक पहुँचे . उनमे से उन्होंने " अनुजा " नाम की 22 वर्षीय लड़की को काम पर रखा . उनकी शर्त थी ......काम के घन्टे निर्धारित नहीं होंगे और उसे इसी बंगले में रहना होगा . खाना पीना रहना फ्री और आकर्षक वेतन . वह लड़की तत्काल तैयार हो गई .
इस समय मिस्टर मजूमदार की उम्र करीब 55 साल थी . वे जो काम सुबह करना होता वो शाम को करते .
दो बजे तक लिखते पढ़ते और अनुजा से लिखाते पढ़ाते .फिर दोपहर का भोजन कर आराम करते . शाम चार बजे क्लब चले जाते वहाँ छह बजे तक बैडमिंटन खेलते . सात बजे घर पहुँचते और शराब पीने बैठ जाते ....वे हमेशा अकेले ही दारू पीते और पुराने गाने या गज़लें सुनते रहते . देश दुनिया , अख़बार या न्यूज़ चैनल से उनका कोई सरोकार नहीं था . दस बजे खाना खा कर वे सो जाते .
उनकी इस दिनचर्या में किंचित भी व्यवधान उन्हें बर्दास्त न था . वे अल्प और मित भाषी थे . न तो स्वयं तेज आवाज में बोलते और न ही किसी का बोलना पसंद करते . एक ही नौकर था घर में ...उसे बुलाने के लिए उन्होंने कभी आवाज़ नहीं लगाई ....घंटी बजाते और वो हाज़िर हो जाता .
खाना बनाने के लिए एक महराजिन सुबह शाम आती लेकिन उसका बनाया भोजन बड़ा बेस्वाद होता था और अक्सर मिस्टर मजूमदार शाम का खाना होटल से मंगवा लेते . वो भोजन स्वादिष्ट तो होता लेकिन उसे खा लेने से उनका पेट गड़बड़ हो जाता . कुछ दिन ऐसे ही चला और एक दिन ........
महराजिन बीमार हो गई ...अपनी बीमारी की सूचना भेज कर उसने एक सप्ताह की छुट्टी मांगी और उसकी हमेशा के लिए छुट्टी हो गई  क्योंकि किचन की कमान ....." अनुजा " नें बड़ी कुशलता से संभाल ली थी . वो सुबह उनका मनपसंद नाश्ता बना कर देती . जब तक वे स्टडी में पहुंचते झटपट लंच तैयार कर देती . दो बजे उनके साथ ही लंच करती और फिर जो भी कम्प्यूटर का काम होता .....निपटाती . शाम को क्लब से लौट कर मिस्टर मजूमदार " शराब " पीने बैठ जाते और वो डिनर तैयार करती . फिर उनके साथ ही डिनर कर ....अपने कमरे में सोने चली जाती . कुछ ही समय में मिस्टर अमेय मजूमदार ..
...." अनुजा " पर लगभग आश्रित हो गए .
एक दिन रात में मिस्टर मजूमदार को सीने में दर्द हुआ ....कुछ देर वे सहन करते रहे लेकिन दर्द बढ़ता गया .हिम्मत कर वे उठे लेकिन जब तक घंटी बजाते .....लड़खड़ाकर धड़ाम से गिर पड़े और अचेत हो गए . गिरते समय पानी से भरा कांच का जग जमीन पर गिर पड़ा . सुनसान घर में कांच टूटने की आवाज बड़ी जोर से गूंजी और भागती हुई अनुजा ....उनके कमरे में पहुंची .
हॉस्पिटल के बेड पर उनकी आंख खुली तो अपने बगल में " अनुजा " को खड़ा पाया . वह चिंतित मुद्रा में उनका मुँह देख रही थी . उन्हें होश में आता देख वह बाहर भागी और डॉक्टर को बुला लाई . डॉक्टर ने मिस्टर मजूमदार का चेकअप किया और कहा ....' चिंता की कोई बात नहीं एन्जाइना पेन था . कल सुबह तक सारी रिपोर्ट्स आ जाएँगी . आई होप सब कुछ नार्मल ही होगा .'
तीन दिन तक वे हॉस्पिटल में रहे और इन तीन दिनों तक उनकी सेवा में " अनुजा " 24 घंटे मौजूद रही . अब तो डॉक्टर को भी कुछ कहना होता तो वो मिस्टर मजूमदार से कहने के पहले 
" अनुजा " से कहता . 
मिस्टर अमेय मजूमदार अपनी शानदार कोठी के शानदार बेडरूम में लेटे ....छत की तरफ देख रहे थे .अभी तक उन्होंने अपने बीमार होने की ख़बर किसी करीबी को नहीं दी थी और दो हफ्ते बाद ..
...." अनुजा " की सेवा सुश्रुषा से पूरी तरह स्वस्थ हो गए . उनकी पुरानी दिनचर्या फिर लौट आई लेकिन शाम को उन्हें अनुजा ....एक पैग से ज्यादा पीने नहीं देती थी . कोई और होता तो उसे वे बुरी तरह डांट देते ....लेकिन " अनुजा " को कुछ न कहते .
धीरे धीरे दिन गुजरते रहे और इस बीच अनुजा नें एक भी दिन की छुट्टी नहीं मांगी . एक दिन उसका मामा आया और उसे साथ ले जाने की जिद करने लगा . मामा का सामना मिस्टर मजूमदार से हुआ तो वो बोला ....मैंने अपनी भांजी की शादी निश्चित कर दी है . मैं चाहता हूँ लड़का लड़की एक दूसरे को देख लेते और इसी लिए मैं इसे लेने आया हूँ .
मिस्टर मजूमदार तो पहले ही अल्पभाषी थे ...उन्होंने कुछ नहीं कहा . केवल प्रश्नसूचक नेत्रों से " अनुजा " को देखने लगे .
मैं अभी शादी नहीं करना चाहती मैं अभी केवल 23 साल की हूँ .....अनुजा का टका सा जवाब पा कर मामा चला गया .
एक दिन मिस्टर मजूमदार नें उससे कहा ...' तुम दिन रात यहीं रहती हो कहीं घूमने फिरने भी नहीं जाती !' 
वो बोली ....' मुझे यहीं रहना अच्छा लगता है और
मैं कहीं जाना नहीं चाहती '.
एक साहित्यिक समारोह या कहें सेमीनार में बोलने के लिए उन्हें आमंत्रित किया गया . वहां भी " अनुजा " साए की तरह उनके साथ रही .वह अपनी ड्यूटी से किंचितमात्र भी गाफ़िल न होती थी और अब तक मिस्टर मजूमदार पूरी तरह उस पर आश्रित हो गए थे . 
इस तरह लगातार साथ रहने और हर कहीं साथ जाने से ....तरह तरह की अफवाहें फैलने लगीं .
एक दिन .....किसी कार्यक्रम के अंत में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में ...एक पत्रकार नें बड़ी ढिठाई से उनके और " अनुजा " के सम्बन्ध में पूछ लिया . भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सन्नाटा छा गया क्योंकि अब तक ' उन दोनों ' के सम्बन्ध के प्रति काफी अफवाहें फैल चुकी थीं और लोग सच्चाई जानना चाहते थे . मिस्टर मजूमदार नें कसमसा कर पहलू बदला ....जब तक वे कुछ बोलते .....
" अनुजा " नें माइक हाँथ में लिया और बोली .....
" ......ये मेरे पति हैं और मैं इनकी पत्नी "......
ये शब्द बम की तरह फटे .मिस्टर मजूमदार चुपचाप उठ कर चले गए .
अगले दिन समाचार पत्रों में यह ख़बर प्रमुखता से छपी और देशी विदेशी मीडिया नें खूब नमक मिर्च लगाकर इसे प्रसारित किया .
अपने घर में बैठे मिस्टर मजूमदार किसी सोच में गुम थे . वे " अनुजा " से ये भी न पूछ पाए कि तुमने ऐसा क्यों कहा .....और तभी उनका फोन बजा ...उनकी बेटी नें हॉलैंड से उन्हें " अनुजा " के सम्बन्ध में बधाई दी और देर तक खुशी से चहकती रही .
इस तरह दो साल बीत गए ..." अनुजा " नें उन्हें हर प्रकार का सुख दिया .उनका ख्याल रखा और इस बीच अपने नाम के आगे " मजूमदार " टाइटल लगाने लगी .अब वह अपना परिचय "मिसेज अनुजा मजूमदार " कह कर देती और मिसेज मजूमदार कहने पर तत्काल प्रतिक्रिया देती .
अंततः बहुत समझाने पर भी जब वो नहीं मानी तो मिस्टर मजूमदार नें इस रिश्ते को कानूनी जामा पहनाया और कोर्ट मैरिज की .
57 साल की उम्र में शादी कर मिस्टर मजूमदार और मशहूर हो गए . एक दिन अनुजा " प्रेग्नेंट "
हुई और समय आने पर उसने एक " बेटे " को जन्म दिया .दस साल साथ रहने के बाद 67 साल की उम्र में मिस्टर मजूमदार स्वर्गवासी हुए .


अपनी वसीयत में उन्होंने अपनी " रॉयल्टी और चल अचल संपत्ति " ....अनुजा को दिए जाने का निर्देश दिया ....कानूनी प्रक्रिया पूरी होने पर अनुजा विधिवत मालकिन बनी . किसी ने कहीं से भी विरोध नहीं किया .
9 साल का उसका पुत्र बड़ा सुन्दर और प्रतिभाशाली था .....उसके आगे के जीवन का अवलम्बन था . अपनी दस लाख की इन्स्योरेन्स पॉलिसी में ...मिस्टर मजूमदार नें अपने इस पुत्र को नॉमिनी घोषित किया था और सुनिश्चित किया था कि उसके बालिग होने पर तत्कालीन ब्याज के साथ उक्त रकम उसे ही मिले .
उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनका शव जलाया न जाय बल्कि उनके बंगले के बाहर ही लॉन में दफना दिया जाए .
" अनुजा " प्रतिदिन उनकी समाधि की साफ सफाई करती .उन पर फूल चढाती और शाम को दीपक जलाती . अब वो सम्मान के साथ लेट मिस्टर अमेय मजूमदार की विधवा कहलाना पसंद करती थी .

Comments

Anil. K. Singh said…
कहानी बहुत पसंद आयी है । बहुत अच्छा लगा। मिसेज अमेय मजूमदार पति के मरने के बाद भी उनका ख्याल रख रही हैं।