इश्क

 


( मित्रों इस सर्वकालिक लोकप्रिय विषय पर अनगिनत काव्य महाकाव्य कथा लेख लिखे गए और आज भी लिखे जा रहे हैं ......

इश्क के दीवानों को समर्पित मेरी ये कहानी पूरी तरह एक कल्पना है ....उम्र के हर पड़ाव पर लगभग हर एक की कहानी है ....इश्क )
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अब का बतायें हम आपको लोग बाग तमाम तरह के इश्क के चर्चे करते हैं ! नजूमी और परलोक सुधार की चाह रखने वाले जिस नजूमी इश्क की बात करते हैं वो तो हमे कभी हुआ नहीं .
हमारी नजर में ...जो अच्छा लगे चाहे वो कोई चीज हो ...जगह हो या शख़्शियत उससे इश्क हो ही जाता है ....
सबसे मशहूर और तहलका मचाने वाला इश्क तो गोया एक लड़के और एक लड़की का ही हो सकता है अलबत्ता और भी तमाम प्रकार के इश्किया कारनामे दुनिया में हुए हैं .
लैला मजनू ...शीरी फरहाद के मशहूर इश्क की कहानियाँ आज भी मील का पत्थर हैं . इतने सालों में तमाम तरह की इश्किया कहानियाँ गढ़ी गईं लेकिन मशहूर तो ये ही हुए .

अब अगर अपनी कहें तो ...
हमने पहली बार इश्क को महसूस किया जब हम महज तीन साल के थे . हमारी अम्मी किसी शादी में जाने को तैयार हुईं और हम उन्हें देखते ही दीवाने हो गए . हम आज बाल बच्चेदार हो गए फिर भी अपनी अम्मी से खूबसूरत औरत हमें कोई लगी नहीं .

हम बारह साल के हुए ...
और मिडिल स्कूल में दर्जा छह में पहुँचे . उस समय विज्ञान : आओ करके सीखें पढ़ाने के लिये नीलम मैडम आयीं . उनका हम लोगों से तखल्लुस करवाने के वक्त प्रिंसिपल ने उनकी आला दर्जे की पढ़ाई और काबिलियत के क़सीदे पढ़े ......
नीलम मैम ...ब्लैक बोर्ड की बगल में खड़ी थीं . हरे रंग का सलवार कुर्ता ...पैरों में कपड़े की खूबसूरत जूती और मैचिंग दुपट्टा पहने ...नीलम मैम हमे बहुत अच्छी लगीं .

नीलम मैम हमे भी बहुत प्यार करती थीं . हम एक मोटे ताजे ...गोल मटोल बच्चे थे . हमारे गोरे गुलाबी गाल पकड़ कर जब वे हिलातीं तो हमे बडा  अच्छा लगता .
एक बार भरी बरसात में स्कूल के मैदान में हम फिसल के गिर पड़े.....हम कीचड़ से लथपथ हो गए तो मैम ने हमे नहलाया और घर से मंगा कर कपड़े पहनाये .......
कुछ दिन और बीते साल खतम हुआ ...इम्तहान भी हो गए और गरमी की लम्बी छुट्टी हुई ...पहली बार मुझे स्कूल की छुट्टी होने का अफ़सोस हुआ .

जुलाई आयी और हम फिर स्कूल पहुंचे लेकिन नीलम मैम हमे दिखी नहीं .... !
अव्वल तो हमारी हिम्मत न थी कि प्रिंसिपल से कुछ पूछते ...लेकिन जब हमे कहीं से भी नीलम
मैडम की बाबत कोई खबर न मिली तो हमने हिम्मत की और प्रिंसिपल ऑफिस पहुँच गए . पता चला ....नीलम मैम की शादी हो गई !!
हमारा दिल टूट गया और हम तीन दिन तक उदास रहे . बाद में जब हमने लैला मजनू का किस्सा पढ़ा तो हमे मजनू की उदासी से बड़ी हमदर्दी हुई . हमे तेरह साल की उम्र में जुदाई का दर्द महसूस हो चुका था .
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धीरे धीरे वक्त बीतता रहा हम सोलह साल के हुए .
हमारे पड़ोस में एक हमारी ही उम्र की लड़की सायरा रहती थी ...जिसके छोटे से कुनबे की हमारे अम्मी और अब्बू से खूब छनती थी .
उस दिन ...पता नहीं क्यों सायरा की अम्मी हमारी अम्मी से मिलने आयीं ...उनके साथ सायरा थी . उस दिन उसे देख हमारा मन किया कि उसका चुम्मा ले लें लेकिन मन मसोस कर रह गए . सायरा को हमारी अम्मी के पास छोड़ ...सायरा की अम्मी चली गयीं ....
उस रात सायरा को हमारे घर रहना था ...
जाड़े का दिन था ...
दीवानखाने के तख़्त पर ...रजाई में बैठे हम सबक घोघ रहे थे उसी वक्त सायरा भी आकर ...हमारी परली तरफ रजाई में घुस गयी ....
पंद्रह मिनट भी न बीते थे कि हमे किसी के पैर की उंगलियों की छुअन अपने पैरों की उंगलियों पर महसूस हुई ....
दिमाग में एक अजीब सी रौशनी हुई ...
हमने सायरा को देखा और हमारी नजरें उससे चार हुईं ...वो एक आँख दबा कर मुस्कुराई और हम लोटपोट हो गए ....

हम एक बार फिर इश्क के समंदर में गोते लगाने लगे ....
रात दिन मोहब्बत के तराने सुनते ...सौ साल पहले हमे तुमसे प्यार था ...आज भी है ...और कल भी रहेगा .
सायरा भी दूर दूर से हमारे इश्क की आग में पेट्रोल छिड़क कर इधर उधर लापता हो जाती और हम रात रात भर आहें भरते रहते .....
मोहब्बत ऐसी सिर पर चढ़ी कि हम सारे सबक भूल गए और उस साल दो नंबर से फेल हो गए .
सायरा के अब्बू ने ...सायरा को आगे पढ़ने के लिये उसकी खाला के घर भेज दिया और हम अपने इश्क के कारवां का गुजरता गुबार देखते रहे .

कुछ ही दिनों में हमे अहसास हो गया कि इस इश्किया सनक ने हमारा एक साल बर्बाद कर दिया .

बहरहाल हम किसी तरह बारहवीं भी पास कर लिये लेकिन हमारे इश्क की आग फिर नहीं भड़की ....
कॉलेज का पहला साल बीता और हम पर कुछ बनने का भूत सवार हुआ . हमारे लिए आज भी कुछ बनने का मतलब यही है कि जेब और खाता दोनों पैसे से भरे रहें ....
अब हमने तय किया कि अपना खर्च खुद उठायेंगे .
इस कोशिश में हम पिज्जा ब्वाय बन गए . उस समय इस विलायती डिश का चलन हिंदुस्तान में शुरू ही हुआ था ...और बड़े शहरों में तेजी से चलन में आ रहा था ....

एक दिन ...
शाम के वक्त हमारे फोन पर ऑर्डर आया और सप्लाई के लिए हम डोमेनिक हाइट्स के चौथे फ्लोर के एक फ़्लैट की कॉलबेल पुश कर रहे थे ......
आगे क्या हुआ .... ?

अगली किश्त में जारी ...

© अरुण त्रिपाठी ' हैप्पी अरुण '


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