इश्क : हूर की परी

 


पिछली कड़ी से आगे ...

एक दिन शाम को हमारे फोन पर ऑर्डर आया और सप्लाई के लिये हम डोमनिक हाइट्स के चौथे फ्लोर की कॉलबेल पुश कर रहे थे ......

दरवाजा खुला और एक हूर की परी ने दरवाजा खोला ....खुदाया हमे लगा कि अभी बेहोश हुए .
उसने मुस्कुराते हुए पिज्जा लिया और हमारे  मुँह पर  दरवाजा बंद कर दिया !

हम चुपचाप खड़े रहे ...हमें पेमेंट लेने की हिदायत थी .
फौरन ही दरवाजा खुला और एक दूसरी लड़की बाहर निकली .....
तुम ! तुम कौन हो ? ...यहाँ क्यों खड़े हो ? ....वो बोली .
पिज्जा डिलीवर किया है ...पैसा चाहिए ...हमने कहा .
वो फ़ौरन घर में घुस गई ...

एक मिनट में हमारी हूर की परी बाहर आयी ..और
बोली ...सॉरी मैं पैसे देना भूल गई .

उसने पेमेंट किया और बोली ...आज मेरा बर्थडे है .

हैप्पी बर्थ डे .... हमने कहा ....और अपनी जेब टटोलने लगे . उस वक्त तक हम चाचा बन गए थे और हमारी चार साल की भतीजी हमसे बहुत हिली मिली थी ...उसक ख़ातिर हम अक्सर जेब में कुछ न कुछ रखे रहते थे . उस दिन भी हमारी जेब में चॉकलेट मौजूद थी .

हमने जेब से चॉकलेट निकाली और उस हूर की परी को देकर बोले ...तुम जियो हजारों साल ...
साल के दिन हों पचास हजार ... खुदा तुम्हारी
खूबसूरती क़यामत तक बरकरार रखे ... अमीन

वो मुँह बाये हाँथ में चॉकलेट पकड़े हमारा मुँह देख रही थी ...वो मुस्कुराई और बोली तो लगा घंटियां बज रही हों ...
उसने कहा ...हाऊ स्वीट ! हाऊ स्वीट यू आर !! क्या तुम मुझे प्रपोज कर रहे हो ?
हम हक्का बक्का उसका मुँह देखते रहे . हम क्या कह गए इसका तो हमे भी होश नहीं था ..यकीनन हमें उससे मोहब्बत हो गयी थी .

वो हमारा हाँथ पकड़ कर अपने घर में ले गई . वहाँ तीन और लड़कियां मौजूद थीं . उसने केक काटा और एक टुकड़ा हमारे मुँह में दिया . आधे घंटे बाद हमारा फोन बजने लगा . हम वापसी को मुड़े तो उसने हमारा फोन माँगा और अपना नंबर सेव कर कॉल बटन पुश किया .

वो हमें दरवाजे तक छोड़ने आयी ...
उस वक्त तो हम बेहोश ही हो गए जब उसने हमें होठों पर किस किया ....
ये बेहोशी ऐसी तारी हुई कि हम दुनिया जहान भूल गए .

हमारे इश्क की आग एक बार फिर भड़क उठी .  बी ए थर्ड ईयर तक पहुंचते पहुंचते हम शायरी करने लगे और मोहब्बत के अफ़साने लिखने लगे .

हमारी हूर की परी ने हमारे साथ पानी से लेकर शैम्पेन तक पी . फ़्लैट की बालकनी से लेकर हिल स्टेशन तक हमारे साथ रही ..खायी और सोई ...

लेकिन हमारी ख़ुशी को जाने कैसी नामुराद नज़र लगी कि हमारी हूर की परी अमेरिका चली गयी और फिर लौट कर ही नहीं आयी . अरे ! फोन तक नहीं किया कभी !! जो नंबर कभी बंद नहीं होता था वो ऐसा स्विचऑफ हुआ कि ऑन ही नहीं हुआ .

और हम मजनू बन गए ...
हम आठ आठ दिन तक नहाते नहीं थे ...
शायरी लिखते और शायरी ही सुनते ...

अब तक की जिंदगी में हमे चार बार इश्क का अहसास हुआ . उम्र के तकाज़े से अहसास जरूर अलग अलग था .

हमारी अम्मी ही थीं जिनके रूहानी इश्क ने हमारी हर तरह से हिफ़ाजत की और खुदा का शुक्र है कि ये इश्क आज भी वैसे ही बरकरार है जैसा तीन साल की उम्र में था .

हमारी अम्मी ने हमारी आजादी के हुकूक पर कभी पाबंदी नहीं लगाई ...हम इश्क और फिर जुदाई से दीवाने हो गए ...तब हमारी अम्मी ने ही हमारा इलाज करवाया और क्लिनिकल काउंसलिंग करवाई ...

तबियत सम्भलते सम्भलते चार साल बीत गए लेकिन तब तक हम इश्क के बादशाह बन चुके थे हमारे अफ़सानों और तरानो में इश्क गूंजने लगा और हमे लोग पढ़ने सुनने लगे .

हमारी शादी हुई ...
हमारी शरीके हयात खूबसूरत हैं ...गुनी हैं लेकिन उन्हें देख कर हमारे इश्क की आग कभी न भड़की
हम मोहब्बत में पागल न हुए ...शायद ये दवा का असर था या दिमाग का कोई केमिकल लोचा ....
हमे नहीं पता ....

अगली किश्त में जारी ...

© अरुण त्रिपाठी ' हैप्पी अरुण '


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