मैं कूछ पूछना चाहता था ! मैं कुछ कहना चाहता था !!

(प्रस्तुत कहानी .....काल्पनिक है )
  स्लीपर वोल्वो बस की आरामदायक सीट पर मैं आराम से सोया था ....आधी रात बीच चुकी थी और पूरी बस गहरी नींद में थी . आगरा और मथुरा के बीच जाने किस स्थान पर बस पहुँची और धड़ाम की भयानक आवाज हुई ........
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मेरी आँख खुली और सामने दीवाल घड़ी पर पड़ी ..नौ बज रहे थे . मैंने उठना चाहा तो हिल भी न सका ! कुछ ही देर में मुझे पता चल गया कि यह किसी अस्पताल का कमरा है और मेरे अलावा यहाँ कोई नहीं है . हाँथ पैर में पट्टियां बंधी थीं और मुझे बड़े जोर से पेशाब लगी .....इधर उधर निगाह डाली और कसमसा कर रह गया ....लग रहा था बिस्तर गीला करना ही पड़ेगा ! 
तभी कमरे का दरवाजा खुला और एक नर्स नें अंदर कदम रखा ....वो मेरे पास पहुँची और मेरी आँखे खुली देख उल्टे पाँव भागना चाहती थी कि मैं बोला ......" बड़ी जोर से पेशाब लगी है ". नर्स नें यूरीन पॉट मेरे नीचे रखा और मैं हल्का हुआ . मैं उस नर्स से कुछ पूछना चाहता था ...लेकिन वो वापस चली गई .
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कुछ देर बाद मेरे कमरे में चार लोग हड़बड़ाये से घुसे .....एक डॉक्टर , वही नर्स , एक लगभग पैंतीस साल की विलायती औरत और एक दस साल का लड़का . डॉक्टर नें मेरा मुआयना किया और उसका चेहरा खुशी से दमकने लगा ....उसने अंग्रेजी में कुछ कहा और उस पैतीससाला विलायती औरत उस लड़के के चेहरे पर ऐसी अलौकिक प्रसन्नता के भाव आये ...जिन्हे में शब्दों में बयान नहीं कर सकता . नर्स नें मुस्कुराते हुए मेरी बांह पर इंजेक्शन लगाया ........

मैं कुछ कहना चाहता था ....मैं कुछ पूछना चाहता था ....लेकिन मेरी ऑंखें नींद से बोझिल हो रही थीं !!

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मेरी नींद खुली ....और नज़र सामने की दीवाल पर पड़ी ...मोनालिसा की रहस्यमय मुस्कान पर मेरी नजरें चिपक गईं . अब मेरे दायें पैर पर प्लास्टर था और बाकी शरीर से पट्टियां उतर गईं थीं . मुझे बड़े जोर से पेशाब लगी थी ....पता नहीं आज कोई समय से आयेगा या बिस्तर ............और मैंने उठने की कोशिश की और कामयाब हुआ . उठ कर तो बैठ गया लेकिन अभी खड़ा होना था ....मैं खड़ा तो हो गया लेकिन सामने टायलेट का दरवाजा कम से कम तीन मीटर दूर था . मैनें चलने की कोशिश की ....बेड के आखिरी छोर पर पहुँच कर मैनें अनुमान लगाया ....टायलेट दो मीटर दूर था ....मैनें बैलेंस बनाया ....दोनों पैरों पर खड़ा हुआ और धीरे धीरे टायलेट के दरवाजे तक पहुँच ....उसे खोला और वहीं खड़े खड़े पेशाब किया .
वापस लौटते समय मैंने अनुभव किया कि मुझे तेज दर्द हो रहा है . किसी तरह बिस्तर पर पहुँचा ....लेट गया लेकिन दर्द बढ़ता ही गया .....अब अंदर से चीखें निकलना चाहती थीं . मेरी नज़र बेड के सिरहाने लगी कॉलबेल पर पड़ी और मैनें उसे दबाया और दबाये ही रहा . एक मिनट में ' वही नर्स ' पहुँची . शायद मेरी शक्ल देख कर ही वो समझ गई थी कि मुझे तेज दर्द हो रहा है .
तभी वो तेज स्वर में बोली .....उठे थे ?
मैनें अनुभव किया कि जितनी वो सुन्दर थी ...उसकी आवाज ....उतनी ही कर्कश थी .
सारी आपबीती मैनें उसे दर्द से जूझते हुए सुनाई . वह खड़े खड़े सर हिलाती रही ....और अचानक मुझे बड़ी जोर का गुस्सा आया .....ये जानती है कि मुझे दर्द हो रहा है ....फिर भी ये कमीनी मुझे इसलिये डांट रही है कि मैनें पहले घंटी क्यों नहीं बजाई ....!
मैनें अपने स्वर को भरसक नम्र रखते हुए कहा .....कुछ करो ....मुझे दर्द है ....बकबक करना बंद करो ...मुझे गुस्सा आ रहा है .
वो चुपचाप चली गई . डॉक्टर आया , वो विलायती औरत आयी ....वो दस साल का लड़का भी आया . डॉक्टर के इशारे पर उस नर्स नें मेरे कूल्हों पर ताबड़तोड़ चार इंजेक्शन ठोंके .....

मैं कुछ कहना चाहता था .....कुछ पूछना चाहता था ! लेकिन मेरी पलकें नींद से बोझिल होने लगीं ...

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इस बार मेरी नींद खुली तो सामने दीवाल पर एक घड़ी थी ....डिजिटल क्लॉक विथ डेट . मैनें पढ़ा ..9.30 a.m....21- 3 - 2017 यानी आज इक्कीस मार्च है और सुबह के साढ़े नौ बज रहे हैं . 
इस बार भी दायें पैर पर प्लास्टर तो था लेकिन केवल घुटने के नीचे से टखने के ऊपर तक . कमरे की दीवालें नीले रंग की थीं और उन पर ऑयल पेंटिंग्स टँगी थी . चित्रकार का नाम नीचे कोनों में लिखा साफ दिख रहा था ...अर्नव . 
मुझे बड़ी जोर से पेशाब लगी थी . मैं उठना चाहता था लेकिन पिछला दर्द याद आ गया . मैनें इधर उधर नज़र दौड़ाई ....मुझे कुछ न दिखा जिसकी सहायता से मैं किसी को बुला सकूँ . बेड के सिरहाने दो द्राज थे ...मैनें ड्रॉज खोला उसमें एक पेन ...एक राइटिंग पैड ...एक पैकेट गर्भनिरोधक और एक माउथ ऑर्गन दिखा . मैंने तकिया सीधा किया ....टेक लगा कर बैठा और माउथ ऑर्गन मुँह से लगाया और बड़ी मीठी धुन निकली ....

क्या हुआ तेरा वादा ...वो कसम वो इरादा ! भूलेगा दिल ...जिस दिन तुम्हें ...वो दिन जिंदगी का आखिरी दिन होगा !! क्या हुआ तेरा वादा ..वो कसम ..........

अपने मुँह से निकलती ये धुन मुझे बड़ी प्यारी लगी ...मुझे लगा इस माउथ ऑर्गन और इस धुन से मेरा पुराना नाता है . लेकिन जोर की पेशाब लगी थी और मैं इस संगीत का पूरा आनंद नहीं ले पा रहा था . तभी दरवाजा खुला और वही खूबसूरत विलायती औरत अंदर आयी . मुझे बैठा देख किलकारी मारी और लता की तरह मुझसे आ कर लिपट गई . मुझे बड़ा सुकून मिला उसकी बाहों के स्पर्श और कोमल दबाव से . मैं बोला ....बड़ी जोर से पेशाब लगी है . उसने हँसते हुए मुझे अपनी बाहों का सहारा दिया और कमर में हाँथ डाल कर बाथरूम ले गई . टायलेट से लौट ...मैं उसके सहारे चलता बेड तक आया . उसने मुझे प्यार से लिटाया और बोली कुछ खाओगे ? तब मुझे अनुभव हुआ कि मुझे भूख लगी है . मैंने हामी भरी . मैं कुछ पूछना चाहता था लेकिन वो लौट गई .
घड़ी में दोपहर के बारह बज रहे थे . मैनें एक गिलास जूस , बटर टोस्ट और ओट्स खाये थे . वो औरत जाने क्यों घर के सारे दरवाजे खिड़कियां बंद कर रही थी ...
....ठक ठक की आवाज सुनाई दे रही थी .
कुछ ही देर में वो कमरे में आयी ...उसके हाँथ में एक टब था ...जिसमें रखे पानी से भाप निकल रही थी और डेटॉल जैसी गंध वातावरण में फैल रही थी . वो मेरे पास आयी . हाथों में साफ सफेद कपड़ा लिये ...गरम पानी से मेरा शरीर पोंछते हुए मुझे बड़ी मदभरी आँखों से देखा . सारे कपड़े उतार कर उसने मेरे शरीर के हर हिस्से को बड़े प्यार से साफ किया और अंत में अंतःवस्त्र भी निकाल ..................

मैं कुछ कहना चाहता था .....कुछ पूछना चाहता था ....लेकिन मेरी पलकें नींद से बोझिल हो रहीं थीं ....

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मेरी नींद खुली और सामने उसी डिजिटल क्लॉक पर पड़ी ..9.30 p.m....21. 3. 2017 .....रात के साढ़े नौ बजे थे . इस बार भी जोर की पेशाब लगी थी . मैं आराम से चलता हुआ बाथरूम तक गया . मैं ठीक से चल फिर सकता था .मेरे शरीर पर फुल नीली टी शर्ट और नीले रंग का लोवर था . मुझे याद आया ...जब नींद नें मुझे अपनी आगोश में लिया तब मैं कुछ भी नहीं पहने था . मुझे कहीं भी दर्द नहीं था और मैं ..

अब ...बहुत कुछ कहना और पूछना चाहता था और मेरी पलकें नींद से बोझिल भी नहीं हो रहीं थीं !!

मैनें वहीं पड़ी स्लीपर पहनी और कमरे की बालकनी में पहुंचा . मैं बहुत ऊँचाई पर किसी बिल्डिंग के ऊँचे फ्लोर पर खड़ा था . दूर दूर तक जगमगाती रौशनी की नदी सी बह रही थी . बालकनी तीन तरफ से सीसे की दीवार से घिरी थी ...मैं जहाँ खड़ा था वो फर्श भी सीसे का ही था ...ये तो पता नहीं लेकिन सीसे की तरह पारदर्शी जरूर था . मैं वापस घूम कर कमरे के दरवाजे पर पहुँचा और बाहर निकला ....मेरी नज़र एक हॉल जैसे कमरे पर पड़ी ....वो विलायती औरत वहीं खड़ी थी ...वो मुझे देख मुस्कुराई और एक दस साल का लड़का ...मुझसे आकर लिपट गया .
हम तीनों एक राउंड सोफे पर बैठे थे . लड़का मेरे और उस औरत के बीच में बैठा था ....फिर हमने बहुत स्वादिष्ट भोजन किया और इस बीच मुझे बिना पूछे ही पता चल गया कि ...

मेरा नाम ...अर्नव रॉय है . वो जो लगभग पैंतीस साल की विलायती औरत है जो मुझे चरमसुख दे चुकी थी वो मेरी पत्नी ...एनी रॉय है . और वो दस साल का लड़का मेरा पुत्र है ...जिसका नाम जॉय राय है . मुझे लगा मेरी याददाश्त जा चुकी है . मुझे मेरा नाम तक उस औरत से बातचीत में पता चला ...जो खुद को मेरी पत्नी बता रही है .

मुझे पता चला आज से चार महीने पहले ...मैं इंडिया टूर पर गया था . 21 दिसंबर 2016 की रात ....मथुरा और आगरा के बीच ...घने कोहरे के कारण मेरी बस का भयानक एक्सीडेंट हुआ ....दस लोगों की मौत हो गई और मुझे घायल अवस्था में अस्पताल पहुंचाया गया . मेरे बैग में मेरा आई फोन ...क्रेडिट कार्ड और फ्रांसीसी पासपोर्ट मिला . प्रशासन नें एक विदेशी नागरिक के बुरी तरह घायल होने की सूचना ...फ्रांसीसी दूतावास को दी और तब पता चला ये तो विश्वप्रसिद्ध चित्रकार ...अर्नव रॉय हैं ....मुझे गुड़गांव के मेडिसिटी में एडमिट कराया गया . 
पूरे दो महीने बाद 21 फरवरी 2017 की सुबह नौ बजे मैं कोमा से बाहर आया . इंजेक्शन के नशे में मैं सोया तो फिर चौबीस घंटे बाद उठा . तेइस तारीख को दर्द के कारण ....हड्डी का बड़ा आपरेशन हुआ ..लेकिन वो पेरिस में हुआ .....
मुझे इतनी सारी जानकारी देने वाली वो विलायती औरत जो खुद को मेरी बीवी बताती थी नहीं जानती थी ...कि मेरी याददाश्त जा चुकी है .....
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तो मैं एक चित्रकार अर्थात पेंटर हूँ . मुझे कुछ भी नहीं याद था फिर भी मेरे कदम अनायास ही अपने स्टूडियो की ओर बढ़े . क्या शानदार स्टूडियो था ....मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं यहाँ तक स्वयं तो आ पहुंचा लेकिन इस जगह पहली बार आया हूँ .
मेरे हाँथ स्वयमेव कूची तक गए और कैनवास पर एक तस्वीर उभरने लगी .....मुझे अपनी बगल में " एनी " खड़ी मिली जो हाँथ में ब्लैक टी लिये खड़ी थी . वो पैतीस साल की थी लेकिन दिखती पच्चीस की थी ....
सुनहरे लम्बे बाल , गोरा बदन , नीली आँखें ....और मैनें पहली बार उन नीली आँखों में झाँका और मुझे लगा कि मैं किसी नीले रंग की झील में डूबता जा रहा हूँ ....अपनी एक चौथाई बन चुकी पेंटिंग का सब्जेक्ट मुझे कौंध गया . मैनें स्टूल पर बैठ कर जल्दी जल्दी वो लेमन ब्लैक टी पी ...और इस बीच मैं एकटक पेंटिंग में डूबा रहा .
सुबह के सात बजे थे . मेरे हाँथ रुके थे और मैं वो पेंटिंग देख रहा था ...जो मैं रात भर बनाता रहा था . ..
" अभी कुछ बाकी है " ....मैं यही सोचते हुए बाथरूम में गया . वहां से बाहर निकल कर मैनें अनुभव किया कि थकान से मेरा बुरा हाल है . मैनें अपने लिए कॉकटेल बनाई और सुबह के सात बजे मैं शराब पी रहा था . सीधे बेडरूम में जा कर मैं सो गया .
मैं जगा तो शाम के पाँच बज रहे थे ......

मुझे सोते समय ऐसा लगता था ...जैसे मैं अपने शरीर के बाहर खड़ा होकर ...अपने ही शरीर को देख रहा हूँ . जगने पर एक शून्य मुझे घेर लेता था और उस समय मेरा शरीर ' ऑटो पायलट मोड ' में चला जाता था . जिसकी अवधि लम्बी होती थी .....शून्यता में ही मैं स्वयमेव ...स्टूडियो में गया और अपनी तस्वीर को फाइनल टच देने लगा . तन्मयता से आधे घंटे कूची चलाने के बाद ....मेरे हाथों ने स्वयं ही तस्वीर के कोने में लिखा ..." अर्नव ".

मैं पीछे घूमा और ' एनी ' को खड़े पाया . वो हैरानी से ....पेंटिंग देख रही थी ....उसकी आँखे खुशी और आश्चर्य से चौड़ी हो रहीं थीं और मुँह खुला था . उसने अपने हाथों में जो चाय पकड़ी थी वो ठंडी हो चुकी थी .....वह धीरे से चलती मेरे पास आयी और एक फ्रेंच किस लेकर मेरी आँखों में देखती हुई बोली ....आई म प्राउड ऑफ मी ...टु बी योर वाइफ .
वो मुझसे लगभग लिपटी हुई ...मुझे लेकर डाइनिंग टेबल तक आई ....वो दस साल का जॉय ...देखने में ही इंडिया और फ्रांस का हाइब्रिड लगता था लेकिन बहुत सुन्दर लगता था ....वो मेरे सीने से लिपट कर बोला ....हाउ आर यू डैडी ?
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मैं सो कर उठा ...एनी बिस्तर पर नहीं थी . मैं नहा कर फ्रेश होकर ...एक गाउन पहन कर उसकी डोरी बांधता हुआ ...डाइनिंग टेबल पर पहुँचा और मैं न्यूज पेपर पढ़ने लगा . एनी आयी ...मेरे साथ ही ब्रेकफास्ट किया ...मुझे लगा वो जिम में पसीना बहा कर आ रही थी . उस दिन मुझे पता चला ....एनी मेरी पत्नी ही नहीं मेरी बिजनेस मैनेजर भी थी . 
मैं 14 ...15 घंटे या तो स्टूडियो में बंद रहता या अजीब अजीब किताबें पढ़ता और हॉलीवुड फिल्में देखता रहता . मैं चौबीस घंटे हर जगह सिर्फ और सिर्फ चित्र ही खोजता रहता . हमेशा मस्त रहता ...खाता पीता और एनी की बाहों में सो जाता ....

मैं कुछ कहना चाहता था ! कुछ पूछना चाहता था !! लेकिन हर बार मेरी पलकें नींद से बोझिल होने लगतीं !!!

छह महीने बीत गए और मैं हर दिन कुछ पूछना चाहता था ...कुछ कहना चाहता था ...लेकिन कुछ न कहने पर भी मैंने अपने चित्रों में सब कुछ कह दिया और जो कुछ पूछना चाहता था सब कुछ जान लिया .

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मैं अर्नव रॉय ...काशी के एक गांव का निवासी था . मैनें फाइन आर्ट की मास्टर डिग्री बी . एच .यू . से हासिल की . गांव में माता पिता रहते थे . दो भाई ठीक ठाक सरकारी नौकरी करते थे .बालबच्चे दार थे और अपनी दुनिया में मस्त थे . माता पिता की मृत्यु दो साल के अंतराल पर हुई और हम तीनों भाइयों नें संपत्ति का बटवारा कर उसे बेच दिया . और मैं अर्नव तीस लाख रूपए लेकर पेरिस आ गया और एक मशहूर आर्ट कॉलेज में दाखिला ले लिया .
उस समय मैं पचीस साल का नौजवान था . उस समय भी मैं पेन्टिंग और सिर्फ पेन्टिंग में ही मस्त रहता था और मुझे अपनी भी सुध बुध नहीं रहती थी . इसी बीच मेरा शराब से परिचय हुआ और धीरे धीरे ...तीस लाख कहाँ चले गए पता नहीं ....और मैं सड़क पर आ गया .
तीन दिन हो चुके थे ....मैं सिर्फ सूखी ब्राउन ब्रेड और ब्लैक कॉफी पर जिन्दा था और चमत्कार हो गया . मेरी पेंटिंग " दि हैप्पीनेस " को एक अंतर्राष्ट्रीय कला संस्थान नें दशक की सर्वश्रेष्ठ पेंटिंग घोषित कर दिया और मैं अर्नव रॉय ....रातोरात मशहूर हो गया . 
ईश्वर के वरदान के रूप में " एनी " मेरी जिंदगी में आयी . उसने मुझे संभाला .....मुझे सस्ते शराबखानों और बाजारू औरतों की संगत से निकाल कर ...अपने हाथों से शराब पिलाई और तृप्तिपूर्ण आनंददायक वो रति सुख दिया कि सारी गंदगी साफ हो गई और मैं एक बेहतर सफल कलाकार बन सका . 
फिर जॉय इस दुनिया में आया ....दस साल का था लेकिन हिंदी , फ्रेंच और अँग्रेजी लिख भी लेता था और बोल भी . " सहित्य " का दीवाना था और उन साहित्यिक रचनाओं को बखूबी पढता था ...जो उसकी उम्र के बच्चे शायद ही समझ पायें . हमेशा चुप रहता और खुश रहता . 
विश्व के अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने के बाद ....अब मैं फ्रांसीसी नागरिक था . मैं भारत ...आगरा की मुगल कालीन वास्तु और चित्रकला का अध्ययन करने के साथ कृष्ण और राधा पर आधारित चित्रकला का अध्ययन करने आया था और मेरी बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई .....उस भयानक टक्कर के बाद चारो तरफ चीख पुकार मच गई  और चेतनाशून्य होने के पहले मुझे अपनी आँखों के सामने एक नारी छाया दिखी जिसकी आँखे नीली थीं और वो सफेद चोंगा पहने थी 
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ठीक होने के बाद ....जब मैं पहली बार अपने स्टूडियो में घुसा तो मैनें वही छायाचित्र अपने कैनवास पर उकेर दिया . जिसे मेरी पत्नी नें नाम दिया था .." दि डिवाइन सोल "
आज " दि डिवाइन सोल " को विश्व की बेहतरीन पेंटिंग्स में टॉप टेन में तीसरा स्थान मिला था . जिसकी अंतर्राष्ट्रीय कीमत बीस बिलियन डॉलर लगाई गई थी .
एनी बहुत खुश थी . मैनें आपको यहाँ जो कुछ बताया ....वो इसी कारण बता पाया कि मेरी शुरू से डायरी लिखने की आदत रही है ....और उसे ही पढ़ कर मैं अपने बारे में जान पाया ....वरना तो मुझे अभी भी कुछ याद नहीं ......

मैं बहुत कुछ अभी पूछना चाहता था ! बहुत कुछ कहना चाहता था ....लेकिन .....






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