मुझे कुछ याद नहीं

मिट्टी में सोते सोते बहुत दिन बीत गए . मेरा मन किया थोड़ा घूमूँ फिरूँ . जैसे ही ये इच्छा जन्मी कि मैं अनायास ही मिट्टी से निकला और एक पौधे में घुस गया और एक दिन मैं गेहूँ के दाने में परिवर्तित हो गया  .  फिर जाने कौन मुझे खा गया ...कौन खा गया 
....! मुझे नहीं पता ......और एक दिन ऐसा आया कि मैं पेट से रक्त में ...रक्त से मज्जा में ....मज्जा से वीर्य में ....और एक दिन मेरे ही जैसे लाखों के बीच एक महासंग्राम छिड़ गया .....कितनी ऊर्जा निकली उस संग्राम से !! और अंततः सबको पछाड़ता ....पीछे छोड़ता ...मैं एक रज कण से जा मिला ...और धीरे धीरे मेरा आकार प्रकार बढ़ने लगा .... कुछ समय तक मैं उस सुखमय और आराम दायक स्थान में रहा . मुझे भूख प्यास और शर्दी गर्मी का कोई अनुभव नहीं था और एक दिन में स्वयं ही इतना बड़ा हो गया कि उस सीमित स्थान में रहना असंभव हो गया ......
मैं बाहर निकला और मेरी आंख खुली तो मुझे तेज ठंड लगी और मैं रोने चिल्लाने लगा . कुछ ही देर बाद मुझे किसी नें सीने से लगाया और मुझे वही सुकून भरी आवाज सुनाई पड़ी जो मैं अभी तक सुनता आया था ....मेरे मुँह से कुछ नरम नरम सा छुआ ....मैंने मुँह खोला और " पियूष " मेरे अंदर आने लगा ....मैं तृप्त होने लगा ....इसके बाद ...!!....मुझे कुछ याद नहीं !!!
......................................................
......बस इतना याद है कि मैं फिर मिट्टी ...हवा और पानी में कहीं गुम हो गया . अचानक मुझे बादलों नें घेर लिया और सावन की बूंदों के साथ मैं जमीन पर आ गिरा और इस बार मैं एक आम के फल में था ....वो आम किसी नें खाया ....मैं आम के साथ ...पेट में ....पेट से रक्त में ...रक्त से मज्जा में और अंततः रज में परिवर्तित हो गया और एक दिन एक शुक्र अणु मुझसे आ मिला ...उससे मिल मैं पूर्ण हुआ और एक दिन मैं फिर बाहर आया ...और " पियूष " पिया . 
.....मुझे फिर कुछ याद नहीं !
....................................................
भला हो विज्ञान और दर्शन का जिसनें ये सारे राज खोले ....जो मैं यहाँ लिख रहा हूँ ....लेकिन क्या फायदा ....मुझे कुछ याद ही नहीं !!!

Comments