अपना अपना सुख
अभी कल ही समाचार पत्र में पढ़ा कि एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर ) नें अर्ली ईयर 2019 सर्वे किया तो यह तथ्य सामने आया कि
भारत देश के चौबीस राज्यों के छब्बीस जिलों में 94% लोगों के पास मोबाइल है लेकिन "किताबें" 10% लोगों के पास भी नहीं हैं ..........
इसका सीधा अर्थ तो यही है कि लोग पढ़ना नहीं चाहते . इसका कारण क्या है ? लोगों की रूचि पढ़ने लिखने में क्यों नहीं रह गई ?......एक समय था जब मनोरंजन का सर्वसुलभ साधन " किताबें " ही हुआ करती थीं .....उस समय टी वी ...मोबाइल था नहीं . इन दोनों ही के प्रचलन के बाद सबसे अधिक असर पड़ा ....रेडियो और साहित्य पर . बी बी सी (हिन्दी )
नें केवल इसलिए अपना प्रसारण बंद कर दिया क्योंकि सुनने वाला कोई नहीं . यही हाल किताबों का
हुआ ....यही हाल दर्जनों की संख्या में शहर के सिनेमाघरों का हुआ . परिणाम ....रेडियो , लाइब्रेरी और किताबें लगभग समाप्तप्राय हो गए .
डिजिटिलाइजेशन के इस युग में ...हम समय को पीछे तो नहीं ले जा सकते ....लेकिन रुचियों का परिमार्जन तो किया ही जा सकता है . एक अच्छा उपन्यास .....एक अच्छी किताब कम से कम 250 से 300 रूपए की मिलती है ....लेकिन एक महीने के 200 रूपए के डाटा पैक से ऐसी दर्जनों किताबें डाउनलोड हो सकती हैं ....स्पष्ट है कारण ...मंहगाई वो भी किताबों की . लेकिन ऑनलाइन पढ़ना टेढ़ी खीर है . जब चलचित्र उपलब्ध है तो एक एक शब्द जोड़ कर क्यों पढ़ा जाय .
पानी का स्वभाव और मन का स्वभाव एक ही है ....नीचे गिरना . लाखों की संख्या में उपलब्ध सूचनायें हमारे हाँथ में हैं ...लेकिन हम मोबाइल में घुसने के पहले यह निर्धारित नहीं करते कि हमें वास्तव में चाहिए क्या ? सिर्फ मनोरंजन खोजेंगे तो मनोरंजन ही मिलेगा . मनोरंजन का सीधा अर्थ है ....मन का रंजन ...यानी जो मन को भा जाये या मन जिससे खुश हो .
अब मन तो बहता है और जहाँ गड्ढा होता है ....भर जाता है . अब एक खतरनाक बात लिखता हूँ वो ये की स्त्रीविमर्श और यौवन सुख से बड़ा कोई मनोरंजन है नहीं और हम घूमते घामते अपना चरमसुख एक कभी न भरने वाले गड्ढे में तलाश कर ....मन से उसे भरने का उपक्रम करते हैं ....लेकिन ये गड्ढा कभी भरता नहीं .
सुख की तलाश करनी हो और शाश्वत सुख की तलाश करनी हो तो एक बड़ा " लक्ष्य " होना चाहिए और उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उठाया गया एक एक कदम इतना आनंददायक होना चाहिए कि इस आनंद में ही पूर्णता हो ...सुख हो और किसी बाह्य मनोरंजन की जरूरत ही न पड़े .
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