लाल गुलाब (भाग ..,4 )
गतांक से आगे ....
संजीव अपने बेड पर लेटा कोई कॉमिक्स पढ़ रहा था . वहाँ न उसकी मम्मी थीं न पापा .
संजीव ने पूनम को देखा तो उसका चेहरा हजार वाट के बल्ब की तरह चमकने लगा .
पूनम बेतकल्लुफ मिली और एक किलो सेब और दर्जन भर केले रख कर उसकी बगल में बैठ गई .
उस समय की संजीव की खुशी को व्यक्त करने के लिये शब्द नहीं हैं .
एक प्लेट में तीन चार सेब रख कर वो उसे धोने गई और नर्स से बोली ...संजीव को एप्पल खिला दूँ सिस्टर ?
हाँ ...खिला सकती हो ...नर्स मुस्कुरा कर बोली .
सलीके से फल काट उसने संजीव की ओर एक फांक बढ़ाई ...उसने मुँह खोला और खाने लगा .
धीरे धीरे मुँह चलाता वो एक टक पूनम को देखता रहा तो वो ....
लजा कर बोली ....इस तरह क्या देख रहे हो ?
जो देख रहा हूँ ...कहीं ये सपना तो नहीं ? ...संजीव बोला .
चुपचाप सेब खाओ और बोलो मत ...पूनम ने कहा .
इतने स्वादिष्ट सेब मैंने जिंदगी में कभी नहीं खाये .... संजीव मुस्कुराया .
पंद्रह मिनट बाद ....संजीव की मम्मी आयीं . उन्होंने पूनम को फल काटते और संजीव को फल खाते देखा ....
वे बोलीं ....तुम कब आयीं ..बेटा ?
अभी आयी हूँ आंटी ......पूनम ने कहा .
तीन बजने वाले थे . पूनम ने सारे दिन में केवल दो सेब खाये थे ....उसकी भूख प्यास ही जैसे मर गई थी . उसे हर हाल में पांच बजे तक रवि सर की क्लास में पहुँचना था .
चार बजे तो वो बेचैन हो गई . ...पैतालिस मिनट तो लग ही जाएंगे नवाबगंज पहुंचने में . फिर सोचने लगी ...उसे तो टैम्पो से जाना है जिसे एक जगह बदलना भी पड़ेगा . चिड़ियाघर का टैम्पो मिल गया तो ठीक रहेगा .....
वो बेचैन नजरों से संजीव के पापा की राह देख रही थी ...उन्हें कल सुबह तक दस हजार रूपये की व्यवस्था करनी थी . अगर व्यवस्था न हुई तो उन्हें आंटी के गहने बेचने पड़ सकते हैं .
उस दौर में में क्या अभी भी ...
गहने बनवाना ....सुखी और धनवान होने की निशानी था .....
लेकिन ...गहने बेचना ....विपत्ति के मारे और धनहीन होने की निशानी था .
चौदह बरस की कच्ची उम्र में भी पूनम को ये बात पता थी .
अचानक उसके चेहरे पर दृढ़ता के भाव आये और उसने संजीव की मम्मी से कहा ....आंटी प्लीज पानी ले आईये .
आंटी पानी लेने चली गयीं .
पूनम ने बैग खोला . पहले से खाकी लिफाफे में रखे .....चार हजार रूपये संजीव को दिये और
बोली ...चार हजार हैं . मेरे हैं . किसी से मांगा नहीं ...इसका हिसाब कोई नहीं पूछेगा मुझ से .अब चलती हूँ ......पापा को ये लिफाफा दे देना .
इतना कह कर ...बिना संजीव की सुने वो वार्ड से बाहर निकल गयी .
पानी लेकर मम्मी लौटीं .. हाँथ में खाकी लिफाफा थामे ...मुँह बाये संजीव , उस दिशा में ताक रहा था जिस तरफ पूनम गई थी .
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हॉस्पिटल क्रासिंग से पूनम टैम्पो में बैठी . आधे घंटे बाद पौने पांच बजे वो रवि सर की क्लास में पहुँची ....उसे सीधे चिड़ियाघर का टैम्पो मिल गया था ....
कुछ समय बाद निर्मल पहुँची और उसे वहाँ देख थोड़ी हैरान हुई . इसके बाद प्रवीन पहुंचा .
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क्लास खत्म होने के बाद ...घर के रास्ते में निर्मल से पूनम नें पूरे दिन की रिपोर्टिंग माँगी .
उसने बताया ....
तो निर्मल बोली ... तू हॉस्पिटल चली गई ! चार हजार दे आयी !! मम्मी को पता है ?
नहीं और तू बताना भी मत .....पैसे मेरी गुल्लक के हैं और मम्मी को मैंने बताया था कि स्कूल जा रही हूँ .......पूनम बोली .
अच्छा ! तो बात इतनी बढ़ गयी ? ....निर्मल ने छेड़ा .
चुप कर . मैं अभी कल का प्लान बना रही
हूँ .. ...पूनम बोली .
कल का प्लान ? .....निर्मल चौंकी .
अरे ! कल संजीव का गॉलब्लेडर ऑपरेशन है न ग्यारह बजे ...... पूनम बोली .
तो ..... निर्मल बोली .
तो ...कल भी मैं अस्पताल जाऊंगी ... पूनम ने कहा .
मम्मी से क्या कहेगी ?.....निर्मल ने कहा .
यही तो सोच रही हूँ ..... पूनम बोली .
देख पूनम ..अब बात सीरियस हो गई है तू मम्मी को सच सच बता दे .... निर्मल ने कहा .
आज की बात भी बता दूँ ?..... पूनम ने पूछा .
नहीं सब कुछ नहीं ... आज की बात छोड़ कर बताना है ..... निर्मल कुछ सोचती हुई बोली .
कैसे ? ..... पूनम ने पूछा .
ये सब कुछ तू मुझ पर छोड़ दे . तू कल ही नहीं आज भी अस्पताल जायेगी ....बस तू मेरे और मम्मी के बीच चुप रहना ...बोलना मत .... निर्मल ने ताकीद की .
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घर पहुंच कर निर्मल ने बस्ता पटका और माँ से बोली ....मम्मी ..आपसे जरूरी बात करनी है .
बोल ...मम्मी ने कहा .
मम्मी आप संजीव को तो जानती हैं न .... निर्मल ने कहा .
हाँ ...जानती हूँ ....माँ बोली .
उसका कल गॉलब्लेडर का ऑपरेशन होना है ..... निर्मल ने कहा .
हाय राम ! ऑपरेशन ?....इत्ते से बच्चे का ? ... माँ बोली .
हाँ मम्मी ...तुम कहो तो जा कर हम लोग उससे मिल आयें .....निर्मल बोली .
हाँ ...हाँ ..क्यों नहीं ....तुम लोग कुछ खा पी लो ...कपड़े बदल लो और चली जाओ . जाना भी चाहिए ....मम्मी ने कहा .
और ये बता इस पूनम को क्या हो गया ? स्कूल से वापस आ गयी और बोली सर में दर्द है ...चक्कर आ रहे हैं ...आराम करूंगी ...और एक घंटे बाद फिर स्कूल चली गयी ....
....मम्मी ने पूछा .
ओफ ओ मम्मी ! तुम भी ...जब तबियत नहीं ठीक थी ...घर आ गई . ठीक हो गई तो स्कूल चली गई ...इसमें कौन सी बात है ?....पूनम ने कहा .
स्कूल ड्रेस से नार्मल ड्रेस में आने ...खाने पीने और कंघी चोटी के बाद वे दोनों अस्पताल जाने को तैयार हुईं तो मम्मी ने पूनम को पचास रूपये दिये और बोलीं ....तुम दोनों रिक्शे से चली जाओ . खाली हाँथ नहीं जाना .
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पूनम और निर्मल शाम साढ़े सात बजे अस्पताल पहुंचे .
संजीव के पापा ने पूनम से कहा ... बेटा पैसे की व्यवस्था हो गई . सात हजार मेरे पास थे ही ...चार तुम दे गयी . लेकिन बेटा ...क्या ये बात तुम्हारे मम्मी पापा जानते हैं ?
अंकल ...ये पैसे मेरे हैं ...कोई हिसाब नहीं लेगा इनका ...इन पर मेरा अधिकार है . पापा मम्मी के तो हैं नहीं . आप प्लीज ...अब इनकी चर्चा किसी से और कभी भी न कीजियेगा ..... पूनम ने कहा .
नौ बजे तक अस्पताल में रुकने के बाद वे घर की ओर चलीं तो अस्पताल गेट पर उन्हें प्रवीन मिल गया .
अरे तुम दोनों यहाँ ? ....प्रवीन बोला .
हाँ ...कल संजीव का ऑपरेशन है न मिलने आये थे ...निर्मल बोली .
और तुम ...इस समय ? ... निर्मल ने पूछा .
मेरी तो नाइट ड्यूटी है . आज रात यहीं रहूँगा . कल ऑपरेशन है और इतवार की छुट्टी है . सुबह घर जा कर दस बजे समय से अस्पताल आ जाऊंगा .... प्रवीन बोला .
ठीक है तो ...कल मिलते हैं ...दस बजे ... निर्मल बोली .
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दूसरे दिन सुबह दस बजे पूनम , निर्मल के साथ अस्पताल पहुँची .
साढ़े दस बजे संजीव को ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया .
ऑपरेशन थियेटर के गेट पर पूनम ने संजीव को पहली बार लाल गुलाब दिया तो संजीव का मुरझाया चेहरा खिल उठा . उसने गुलाब को सूंघा ...फिर चूमा और पूनम के हाँथ में पकड़ा कर बोला ....ये आज का गुलाब .
पूनम मुस्कुराई ...उसके दिल में एक मीठी टीस उठी और चेहरे पर मुस्कान के साथ आँखों से दो बूँद आँसू भी छलक आये .
दोपहर बाद तीन बजे ...संजीव को चेतना हुई ...
क्रमशः जारी ...
© अरुण त्रिपाठी ' हैप्पी अरुण '
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