लाल गुलाब ( भाग ..तीन )

गतांक से आगे ..

अगले दिन शाम को संजीव ने क्लास में सबको अपने जन्मदिन का निमंत्रण दिया और सर को भी बुलाया ....लेकिन उस दिन उसने पूनम को लाल गुलाब नहीं दिया !

रात के आठ बजे ...
ग्वालटोली में संजीव के घर पर बिजली की झालरों की सजावट थी . ज्यादा लोग इस जन्मदिन समारोह में नहीं थे ...संजीव , प्रवीन , संजीव के मातापिता , उनके दो तीन पड़ोसी , दो छोटे बच्चे , पूनम निर्मल और रवि सर ....बस यही लोग वहाँ थे ....
उस समय तक समाज में केक वेक काटने का सिस्टम लगभग न के बराबर था .

सुबह उठ कर संजीव ...गंगा नहाने गया ...फिर बाबा आनंदेश्वर का जलाभिषेक किया . वहीं मंदिर के प्रांगण में पंडित जी से कथा सुनी और पंडित जी को दान दक्षिणा के साथ ...एक पंचांग भी दान किया .
शाम को मम्मी ने दो प्रकार की सब्जी , खीर , गुलगुला और पूड़ी बनाई . घर को दोस्तों के साथ मिलकर बिजली की झालरों और तिकोनी झंडियों  से सजाया . सात बजे प्रवीन अपने घर से टू इन वन लाया और गाना बजने लगा ....कबूतर जा जा जा ..पहले प्यार की पहली चिट्ठी साजन को दे आ ...
उसी समय संजीव को कुछ याद आया और वो बाहर भागा ...
धीरे धीरे मेहमान आने लगे ...सबसे पहले रवि सर आये और कुछ देर बाद पूनम और निर्मल पहुंची ....
चाय पानी का दौर चला लेकिन बर्थडे ब्वाय तो गायब था ...किसी को नहीं पता कि वो कहाँ गया ? यहाँ तक कि प्रवीन को भी नहीं पता था .

आधे घंटे बाद ..
हाँथों में फूलों का गुलदस्ता थामे संजीव घर में घुसा और हर मेहमान का अभिवादन कर उन्हें फूल देने लगा ...अपने रवि सर सहित उसने सभी को पीला सफेद फूल दिया लेकिन पूनम को उसका लाल गुलाब सबसे अंत में मिला .
और किसी ने इस घटना को नोटिस किया हो या न किया हो ...पूनम , निर्मल और प्रवीन नें इस घटना और लाल गुलाब को बखूबी नोटिस किया .
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ठंढ बढ़ रही थी ...साथ ही पढ़ने वालों की गर्मी बढ़ा रही थी .छात्र छात्राओं पर पढ़ाई के दबाव का वो पीक टाइम चल रहा था .

सितंबर , अक्टूबर , नवंबर , दिसंबर और अब जनवरी ...इन पाँच महीनों में कोई दिन ऐसा नहीं था ...जब पूनम को उसका लाल गुलाब न मिला हो .

अब तो पूनम की आदत सी हो गयी थी .
निर्मल रोज कहती ...अरी ! अब तो पूछ .
लेकिन पूनम ने संजीव से कभी न पूछा कि वो ऐसा क्यों करता है ? अब उसे पूछने की जरूरत महसूस नहीं होती ...सब कुछ संजीव की आँखों में साफ साफ दीखता तो था .
इन दिनों पूनम में एक बड़ा परिवर्तन आया . वो चाट खाने की शौक़ीन थी पर अब नहीं खाती थी वो हर वक्त एक बड़ी सी गुल्लक में पैसा डालती रहती थी ..उसे पैसे इकट्ठे का जूनून सा हो गया था ....पता नहीं उसका क्या प्लान था ?
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एक दिन शाम पाँच बजे ....
पूनम अपनी संगिनी निर्मल के साथ रवि सर की क्लास में पहुँची . क्लास तो शुरू हो गई लेकिन संजीव और प्रवीन नहीं आये .... !

वो पहला ब्रेक था ....इन पाँच महीनों में जिस दिन पूनम को उसका गुलाब नहीं मिला . वो बेचैन हो गई . रात होने तक बेचैनी इतनी बढ़ गई कि ...पूनम जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी ....

रात के ग्यारह बज रहे थे ...
ग्वालटोली मार्केट की पूरी सड़क लाल नियॉन रोशनी से नहाई थी और सूनी पड़ी थी . एक भी व्यक्ति सड़क पर नहीं दिख रहा था और पूनम को अपनी साइकिल के कैरियर पर बैठा कर निर्मल ..
संजीव के घर की ओर भाग रही थी ....

वे दोनों संजीव के घर पहुँची ...ताला लटका था .
ताबड़तोड़ साइकिल प्रवीन के घर पहुँची . वहाँ ताला तो नहीं बंद था लेकिन इतना जरूर पता चल गया कि संजीव बीमार है और उर्सला हॉस्पिटल में है ...उसके साथ प्रवीन है ...

रात एक बजे छुपते छुपाते दोनों बहने घर में घुसीं और चुपचाप बिस्तर में घुस गयीं ...बड़ी ठंडी थी 
पहली बार वे दोनों इस तरह घर वालों से छुप कर रात में बाहर निकली थीं .

सुबह सुबह सात बजे ही दोनों स्कूल ड्रेस पहन कर तैयार हुईं ...स्कूल तो दस बजे था . माँ ने पूछा तो बोलीं एक्स्ट्रा क्लास है ...और सीधे हॉस्पिटल पहुंची .

इस समय दोनों संजीव के सामने खड़ी थीं . संजीव ने पूनम को देखा ...उसके सूखे चेहरे पर फीकी मुस्कान आयी . प्रवीन बगल में चिंतित खड़ा था . संजीव की माँ के चेहरे पर उदासी छायी थी ...लगता था अभी रो देंगी .
संजीव के पापा ...बाहर से चाय नमकीन लाये ...सजीव को छोड़ सभी चाय पीने लगे ....

तभी संजीव ने प्रवीन के कान में कुछ कहा ...   
प्रवीन सिर हिलाता बाहर चला गया .
 आठ बज रहे थे . परेड से तिलकनगर साईकिल से जाने में आधा घंटा लगता था . दस बजे से स्कूल था और सवा नौ साढ़े नौ तक इन लड़कियों को अवश्य यहाँ से निकल लेना चाहिए था . 

साढ़े आठ बजे प्रवीन हांफता हुआ आया .
डॉक्टर का राउंड शुरू होने वाला था . नर्स वार्ड में घोषणा कर रही थी ..." एक ही आदमी पेसेंट के साथ रहेगा ...बाकी लोग बाहर जायें ." 
संजीव की मम्मी ...प्रवीन ....निर्मल और सबसे अंत में पूनम उठी .....
संजीव के पापा ...नर्स से कुछ बात करने लगे .
और लोग बाहर गए . अंत में बाहर जाने को पूनम खड़ी हुई तो संजीव ने पहली बार पूनम का हाँथ पकड़ा ...उसे दो गुलाब दिये और बोला ...एक कल वाला भी है .
पूनम मुस्कुराई और चलने लगी तो वो बोला ....
....कल भी आना .
सहमति से सिर हिलाती पूनम बरामदे में जा कर खड़ी हो गयी .
उसी समय डॉक्टर की आवाज सुनाई दी ....कल संडे के बावजूद पेसेंट का ऑपरेशन होगा . यही आखिरी रास्ता है . आप ऑपरेशन की तैयारी करें  .
खर्चा क्या आयेगा ...डॉक्टर साहब ? ...संजीव के पिता बोले .
दस हजार का इंतजाम कर लीजिये ...इतना तो लग ही जायेगा ....डॉक्टर बोले .

दस हजार उन दिनों बड़ी रकम थी . इतने पैसे संजीव के पापा के पास नहीं थे . उनके पास इस समय कुल सात हजार ही थे .

वे बाहर आये और संजीव की मम्मी से कुछ कहा तो वो बोली ...चिंता मत करो ...जरूरत पड़ी तो मेरे गहने कब काम आयेंगे . दवा में कोई कसर नहीं रहनी चाहिए .

पूनम ने ये सब सुना और बोली ...ऑपरेशन कब होगा ...अंकल ?

कल सुबह ग्यारह बजे ....वे बोले .

सवा नौ बज गए और निर्मला ...पूनम से स्कूल चलने का इशारा करने लगी ..
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साइकिल चुन्नीगंज बस स्टॉप पर पहुंची ही थी कि पूनम साइकिल से उतर गयी और बोली .....तू स्कूल जा ..मुझे घर पर काम है . लौट कर मिलेगी तो बताऊंगी .
निर्मल स्कूल चली गई .
पूनम घर की ओर ....

धीरे धीरे न जाने किस सोच में गुम ...पूनम घर की तरफ जा रही थी . 
वो घर पहुँची तो माँ चौंकी ...भरी बरसात में भी कभी स्कूल मिस न करने वाली आज स्कूल से जल्दी आ गयी ! निर्मल कहाँ है ?

माँ के सवाल जब तक उसके मुँह से निकलते ....
पूनम बोली ...मम्मी आज मेरी तबियत ठीक नहीं है ...निर्मल मुझे पास ही छोड़ कर स्कूल गई ....
घबराने की बात नहीं है ... सर दर्द है ..चक्कर आ रहे हैं ...थोड़ा आराम करूंगी ...ठीक हो जायेगा .

रात रात भर जाग कर किताबों में आँखें फोड़ेगी तो चक्कर तो आयेंगे न . कितनी बार कहा रोटी वोटी बनाना सीख जो जिंदगी भर काम आयेगा लेकिन तू मेरी सुनती कहाँ है .....कहते हुए माँ उसके पीछे पीछे कमरे तक आयी .

पूनम ने कहा ....मम्मी मैं लेटूंगी ..तुम जाओ .

पानी ले आऊं ? ...मम्मी बोली .

नहीं प्यास नहीं है ...वो बोली .

तो चाय ले आऊं ?...मम्मी ने कहा .

प्लीज मम्मी ! अब जाओ ...मुझे आराम करने दो .जरूरत होगी तो बता दूँगी ....इतना कह कर पूनम ने दरवाजा बंद कर लिया .

ठीक है ....कह कर मम्मी चली आयीं .

पूनम ने फटाफट कपड़े बदले और गुल्लक फोड़ी 
सिक्के एक तरफ रखे और नोट एक तरफ ....
सिक्के गिने ...पचास पैसे छोड़ कर आठ सौ छप्पन रूपये ...
अभी वो रूपये गिन ही रही थी कि मम्मी ने दरवाजा भड़काकर कहा ....पूनम ! पापा को बुलाऊँ ?
अरे मम्मी ! मैं ठीक हूँ ...तुम चिंता न करो ...आराम करो और करने दो .... पूनम ने कहा .

मम्मी परेशान सूरत लिए ड्राइंग रूम में आयीं और साड़ी का एक छोर ...तर्जनी में लपेटने खोलने लगीं और टहलने लगीं . कभी बैठ जातीं ...कभी खड़ी हो जातीं ...कभी टहलने लगतीं .

आधे घंटे बाद ...
पूनम के पास निश्चित रूप से चार हजार आठ सौ छप्पन रूपये थे . कुछ नोट सौ के थे ...एक पाँच सौ का था जो बुआ ने बिदाई में ये कह कर दिया था कि कपड़े बनवा लेना . पचास के नोट और अधिसंख्य दस के नोट थे .

पूनम ने स्कूल बैग में सिर्फ दो किताबें और कोचिंग रजिस्टर डाला ....कंधे पर लादा और कमरे से निकली . ड्राइंग रूम में पहुंची तो मम्मी बेचैनी से टहल रही थीं ....

अरे ! कहां चल दी ? तेरी तबियत ठीक नहीं है तू आराम कर ......मम्मी बोलीं .

स्कूल जा रही हूँ . अब तबियत ठीक है ....ये कह कर पूनम हवा की तरह निकल गयी .

मम्मी चिल्लाती रह गईं .

वो मयूर हॉटल चौराहे पर पहुँची और रिक्शे में बैठ कर बोली ...उर्सिला अस्पताल चलो .

क्रमशः जारी ...
© अरुण त्रिपाठी ' हैप्पी अरुण ' 

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