लाल गुलाब ( सातवां और अंतिम भाग )


 गतांक से आगे ....

इन तीन दिनों की ...पूनम की पाँच से छह घंटो की गैरमौजूदगी को निर्मल ने बड़ी मुश्किल से मैनेज किया लेकिन किया ... .वो जानती थी कि अब यदि पूनम.....संजीव से न मिल पायी तो शायद वो जी नहीं पायेगी .
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संजीव यायावर हो गया . समय ने उसे कवि और कथाकार बना दिया ...वो संजीव ' सैंपू ' के नाम से
चर्चित और सफल हो गया . लोग इस अजीब नाम पर कुछ पूछते तो वो केवल मुस्कुरा देता . सैंपू ....
यह शब्द ...संजीव और पूनम का मिश्रित रूप था .
इस नाम से संजीव ने एक से बढ़ कर एक प्रेम कहानियाँ लिखीं ...वो एक सफल प्रेमी जो था .

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उस रात डायरी सीने पर रख कर वो सो गया . सुबह सुबह नित्या आयी . वो सीधे किचन में गयी और दो चाय लेकर बेडरूम में पहुंची .
बेड पर सूखे गुलाबों की पंखुड़िया फैली थीं और संजीव एक एक कर उन्हें सावधानी से उठा रहे थे .

बहुत पुरानी पंखुड़ियाँ हैं ...ये तो ----- नित्या बोली .
हाँ ...मेरे दिल के बहुत करीब हैं ये ....संजीव बोले .

              चाय नाश्ते के बाद नित्या चलने लगी तो बोली ....सर ! मेरी मम्मी को भी गुलाब के फूल बहुत पसंद हैं .....लेकिन गुलाबों से नफरत भी है ऐसा मुझे लगता है .

क्यों ...तुम ऐसा क्यों समझती हो ? ..... संजीव बोले .

मम्मी रोज सुबह कहीं से भी एक गुलाब का फूल
लाती हैं ...उसे किसी को छूने नहीं देतीं . वो शाम तक उस गुलाब को अपने साथ रखतीं और शाम ढलते ही खिड़की पे बैठ कर एक एक पंखुड़ी तोड़ कर फेंक देतीं और ...बहुत रोतीं .....
पापा को तो जैसे मम्मी में कोई इंट्रेस्ट ही नहीं ..हाय पैसा ...हाय पैसा ही वो दिन रात जपते रहते .

संजीव मुँह बाये नित्या को देखते रहे ....फिर बोले ....तुम्हारी मम्मी का नाम क्या है ?

पूनम ....नित्य बोली .

पू ....पूनम .. !!

जी सर ....नित्या बोली .

तुम कहती थी ...तुम कानपुर की हो . तुम्हारी मम्मी का मायका कहाँ है ? ..... संजीव ने पूछा .

कानपुर में ही है ...उनका मायका ग्वालटोली में  . मेरे नाना दवा व्यापारी थे ...उनका बड़ा मेडिकल स्टोर है . नाना तो मर गए .....अब मामा दुकान देखते हैं ....नित्या बोली .

नित्या बोलती गई और सुनते सुनते संजीव शून्य हो गए . उन्हें बड़े जोर का चक्कर आया और वे गश खा कर गिर पड़े ....

सर ...सर !! ...नित्या चिल्लाई .

कुछ देर बाद दो गिलास पानी पी कर संजीव सामान्य हो गए और बोले .... शाम को जरूर आना बेटी . तुम्हारा नंबर मेरे पास है ...दिक्क़त होगी तो बताऊँगा .

बेटी .... शब्द नित्या के दिमाग में बम की तरह फूटा .

सर ने आज तक मेरा नाम लिया और आज बेटी कहा ! ....सोचते हुए वो चली गई .

शाम को नित्या आयी और संजीव के घर पर ही डिनर बनाया .

रात दस बजे वो जाने लगी तो संजीव ने कहा ...कहाँ रहती हो तुम जूहू वेस्ट में ?

एक पारसी आंटी का बड़ा सा घर है . वहाँ मेरे जैसी चार लड़कियां उनकी पेइंग गेस्ट हैं . ...नित्या बोली

हूँ ...किराया कितना है ? ....संजीव ने पूछा .

दस हजार महीना ....वो बोली .

कितना कमा लेती हो ? ....उन्होंने पूछा .

कुछ पक्का नहीं ...फिर भी खर्चा निकल आता है ...वो बोली .

संजीव ने उसे पचास हजार का चेक दिया और कहा ...इसे रख लो . मना मत करना . तुमसे बड़ा हूँ . तुम स्वतंत्र हो बेटी ! लेकिन उचित समझो तो मेरे साथ रहो ..... संजीव ने कहा .

फिर बेटी ... ! ये सर मुझे कल शाम से बेटी बेटी कह रहे हैं !! अब कह रहे हैं ...यहीं रहो !!! .....वो जितना ये सब सोचती उतना ही उलझती जाती .
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एक सप्ताह बाद ...
एक दिन संजीव का फोन बजा ...स ..सर ..आवाज आयी .
हाँ नित्या बोलो . ....संजीव बोले .
म ..मम्मी ....
क्या हुआ मम्मी को ? ..... संजीव जोर से बोले . उनका दिल जोर जोर से धड़कने लगा .
ह ...हार्ट अटैक हुआ है ..एडमिट हैं ..और सीरियस
हैं ...नित्या बोली .
तू मेरे पास आ पहले ....वे बोले .

जब तक वो शांताक्रूज पहुंचती ....तब तक संजीव
ने अपने सम्पर्को के बल बूते प्लेन टिकट बुक किया

जब नित्या ...जेनिफर हाइट्स पहुँची . संजीव बैग लिये तैयार थे .
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छह घंटे बाद एक टैक्सी ...कानपुर हार्ट सेंटर के सामने रुकी .

नित्या के साथ संजीव .... पूनम के सामने पहुंचे .

पूनम ने संजीव को तुरंत पहचाना . शक्ल तो संजीव की कुछ बदल सी गई थी लेकिन आज भी वे बहुत स्मार्ट लगते थे ....उन्होंने हाँथ में लाल गुलाब पकड़ा था ...गुलाब पकड़ने के इस अंदाज ने चुगली कर दी .

संजीव ने पूनम को उसका गुलाब दिया .

आँखों से आँसुओं की गंगा जमुना बहाती पूनम बोली ... कहाँ थे अब तक ? ये नित्या तुम्हारे साथ कैसे ?

नित्या हैरान थी .....सर ! मम्मी को जानते हैं !!!
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रात हो गयी ...पूनम का व्यापारी पति उसे हार्ट सेंटर में एडमिट कर और पैसा जमा कर दिल्ली चला गया . एम डी एच वालों से उसकी कोई डीलिंग थी .

रात दस बजे नित्या डिनर के इंतजाम में बाहर निकली . इस बीच संजीव को पक्का पता चल गया कि ...नित्या उसी की बेटी है .

जाने क्या चमत्कार हुआ ...पूनम की बीमारी हवा हो गयी .

अगले दिन अपनी बेटी को उसकी माँ के पास छोड़ संजीव मुंबई चले गए और ताकीद कर गए कि नित्या मुंबई में सीधे जेनिफर हाइट्स पहुंचे ...अब वो पेइंग गेस्ट नहीं रहेगी ...अपने घर में रहेगी .
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लव स्टोरी का तो सुखांत हुआ लेकिन अन्य चरित्रों का क्या हुआ ... ? ये बताना बाकी है ...

निर्मल ने मनोविज्ञान से पी एच डी की और एक मनोवैज्ञानिक की बीवी बन गई .

प्रवीन ...इजीनियर हो गया और उसने एक क्रिश्चियन से शादी की .

अब बचे रवि सर .....
उन्होंने अपनी अनपढ़ बीवी को पढाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसे पढ़ा न सके ...वो तो कामसूत्र ही पढ़ना चाहती थी .
सर जी सीधे साधे ...पढ़ने लिखने वाले आदमी थे .
दूध पीने की शौकीन उनकी बीवी के लिए रोज एक लीटर भैंस का नंबर एक दूध आता था . ग्वाला अपनी भैंस लेकर आता और उनके सामने दुह कर और तौल कर दे जाता ...
रवि सर ...अगर दूध पी लें तो उनके पेट में गैस बन जाती लेकिन उनकी बीवी तो मानो बिल्ली ही थी .

कुछ ही समय बाद रवि सर की बीवी भैंस खरीदने की जिद करने लगी ...रवि सर उसे समझा नहीं पाये .

एक सप्ताह बाद ग्वाले का लड़का दूध देने आने लगा और एक महीने बाद सर जी की बीवी उस लड़के के साथ भाग गई .

सर जी ने चैन की साँस ली .
दिन रात पढ़ने पढ़ाने में व्यस्त हो गए .
अभी तक दूसरी शादी नहीं की ....

समाप्त ....
© अरुण त्रिपाठी ' हैप्पी अरुण '


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