लाल गुलाब ..(भाग 6 )

गतांक से आगे ....
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तुम मेरी आदतें खराब कर दोगी नित्या ! ......वे बोले .
अरे नहीं सर ...आपको मेरे हाँथ का खाना अच्छा लगता है ...इसीलिए आप ऐसा कह रहे हैं ...नित्या बोली .

उस दिन उन्होंने नित्या से पूछा ....क्या करती हो नित्या यहाँ मुम्बई में ?

क्या बताऊँ सर ...मॉडल हूँ ...स्ट्रगल कर रही हूँ ....
....नित्या बोली .

कहाँ घर है तुम्हारा ? ....उन्होंने पूछा .

जुहू वेस्ट में ....वो बोली .

वो नहीं ...तुम कहाँ की रहने वाली हो ? ....वे बोले .

कानपुर से हूँ सर ! .... वो बोली .

उनके हाँथ से चाय छलक गयी ...अचानक मानो उनका दिल धड़कते धड़कते रुक गया ... क ..कानपुर ...वे बोले .
हाँ सर ...उसने कहा .

उन्होंने बात बदली और कहा ...मुझे तो अब केवल तीन दिन यहाँ रहना है .
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वो अस्पताल में रहने का आखिरी दिन था . उस दिन नित्या ने सैंपू सर के साथ सेल्फी ली और सर को भी फारवर्ड की ...उन्हें अस्पताल से लेकर उनके घर आयी ...
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शाम को दो पैग चढ़ा कर सैंपू अपने बेड पर बैठे मोबाइल से खेल रहे थे . उसी समय उनकी और नित्या की सेल्फी फोन स्क्रीन पर आयी ....
वे उसे ध्यान से देखने लगे ...वे बार बार नित्या की सेल्फी देखते .
फिर वे उठ कर वार्डरोब तक गए और एक डायरी निकाल लाये ....
उस डायरी के हर पन्ने पर एक सूखा गुलाब चिपका था . कहीं कहीं पंखुड़ियां थीं ही नहीं केवल गुलाब की सूखी डंडी भर चिपकी थी . डायरी के अंत में एक फोटो बड़े करीने से चिपकी थी ...
वो फोटो संजीव और पूनम की थी ....जो इक्कीस वर्ष पहले उन्होंने मोतीझील में ऑटोमेटिक कैमरे से खींची थी ....
पूनम की तस्वीर देखते देखते वे भावुक होने लगे फिर वे नित्या की सेल्फी देख बड़बड़ाये ...इतनी साम्यता तो असामान्य है !

वे पैर फैला कर बिस्तर पर लेट गए और इक्कीस वर्ष पहले का वो समय उन्हें याद आया ......

सुबह पूनम को उसका गुलाब देकर संजीव उदास हो कर घर आया . गर्मी की छुट्टी हो गई थी . उन छुट्टियों में संजीव ...अपने मम्मी पापा के साथ गाँव जा रहा था ...

यू पी रोडवेज के चुन्नीगंज बस डिपो पर ..फ़ैजाबाद
डिपो की बस की आगे की तीसरी पंक्ति में संजीव
अपने मम्मी पापा के साथ बैठा था ...

बस अपने गंतव्य की ओर चली ....
रात ग्यारह बजे ...धड़ाम की आवाज हुई ...संजीव को अपने पूरे शरीर में तीव्र दर्द की अनुभूति हुई मानो कई हड्डियाँ एक साथ टूट गई हों ....और संजीव चेतना शून्य हो गया ..

संजीव कोमा से बाहर आया ...
उसके मम्मी पापा की इस भयानक एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी थी ....इसके बाद भी अगस्त 1979 से दिसंबर 1981 तक वो हॉस्पिटल में एडमिट रहा . ...
चलने फिरने ...दुनिया देखने लायक हुआ तो उसे पूनम की याद आयी . उसने हिसाब लगाया ... पूरे 842  दिन हो गये थे वो पूनम से नहीं मिला था ...

संजीव कानपुर पहुँचा ...
और 842 गुलाबों का गुलदस्ता लेकर सीधा ग्वालटोली पहुँचा ....जहाँ पूनम की शादी की तैयारी हो रही थी . उस दिन तिलक उत्सव था . अगले सप्ताह शादी थी .
संजीव ने घर के दरवाजे पर विशाल गुलदस्ता रख कर कॉल बेल पुश की और वापस मुड़ गया ...
दरवाजा खोला .....निर्मल ने और इतना बड़ा गुलदस्ता देख हैरान हुई . अचानक उसके चेहरे के भाव बदले ...उसने एक फूल हाँथो से छुआ और उसके मुँह से निकला ...स ....संजीव .

निर्मल ने गुलदस्ता उठाया और अपने कमरे में आयी . उसने जल्दी जल्दी फूल गिने ... 842 ही क्यों और वो सब कुछ समझ गई और हिचकी लेकर रोने लगी ...
उसी समय पूनम कमरे में आयी ...उसने ढेर सारे गुलाब देखे ...उसका दिल धड़का ...उसने निर्मल को रोते देखा और सपाट स्वर में बोली ...संजीव आया था ?
हाँ ...लेकिन दिखा नहीं ....निर्मल बोली .
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दूसरे दिन सुबह जैसे ही उसने गुलाब ...पूनम के दरवाजे पर रखा ...उसने उसका हाँथ पकड़ लिया और बोली .... मेरा गुलाब मुझे दो .
इतना कह कर वो बोली ...शाम सात बजे मोतीझील गेट नंबर दो पर मिलना ...आज नहीं आये तो मेरा मरा मुँह देखना .
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शाम सात बजे ....पूनम ऑटो से उतरी और मोतीझील गेट की ओर बढ़ी ...वहाँ संजीव खड़ा था . उसके हाँथ में कैमरा था .
वे दोनों पार्क में जा कर बैठे और सुख दुःख चर्चा होनी लगी . उस दिन पूनम का रूप पूरी तरह बदला हुआ था ...वो उससे खासी बेतकल्लुफ़ हो रही थी ..पहले जब भी संजीव उसके शरीर पर कहीं भी हाँथ रखता तो वो झटक देती ...लेकिन आज तो खुद ही चिपकी जा रही थी . उन्ही पलों को ऑटोमेटिक कैमरे में संजीव ने कैद किया .
रात नौ बजे तक पूनम उसके साथ एकांत में रही और दूसरे दिन पुनः उसी जगह पर मिलने की ताकीद कर चली गयी ...
तीसरे दिन उसने संजीव से विदा लेते वक्त कहा ....
कल मेरी शादी है .
तुम मेरे हो ...मैं तुम्हारी हूँ ...कल किसी और की हो जाऊंगी . लेकिन ....तुम सिर्फ मेरे हो ....
अब कभी मिलन होगा तुमसे ....
ये उसके आखिरी शब्द थे ...जो संजीव ने सुने . अपनी गुलाबों वाली डायरी उसने संजीव को सौंपी और हवा हो गई ...

क्रमशः जारी ...
© अरुण त्रिपाठी " हैप्पी अरुण "



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