लाल गुलाब ( भाग दो )

गतांक से आगे ....
फार्म फिल कर उन्होंने बैग में डाला और दिन बिता कर शाम पाँच बजे 3/33 तिलक नगर पहुँचे ....
वही चारखाने की लुंगी ...वही चप्पल ...वही बनियान पहने अग्रवाल साहब ने दरवाजा खोला .

दो घंटे आलोक के साथ बिता कर रवि सर ...ड्राइंग रूम में पहुंचे .

सर ! आप रहते कहाँ हैं ....मि . अग्रवाल बोले .

बैग से फार्म निकाल कर रवि ने उसे मिस्टर अग्रवाल के समक्ष रखा और बोले ....हॉस्टल में कमरा मिल जाता तो अच्छा होता .

मि . अग्रवाल ने एक उड़ती नजर फार्म पर डाली और बोले ....वो तो ठीक है लेकिन अभी आप कहाँ रहते हैं ?

ज ...जी ..अभी कल की रात तो प्लेटफार्म पर सोया .....अ ..आज भी ..वहीं रहूँगा ..... रवि  सकुचा कर बोले .

अरे ! आप कल प्लेटफार्म पर सोये ...आपने बताया भी नहीं ? ..... मि . अग्रवाल बोले .

उनके इस सवाल का जवाब देने के बजाय ...
रवि सर मौन रहे . 

हूँ ...मेरा कालेज प्रशासन से कुछ सम्बन्ध है . कल आपको अवश्य हॉस्टल मिल जायेगा . आज आप अालोक के साथ रह लेंगे ? .... मिस्टर अग्रवाल बोले .... 

ज ..जी ..रवि सर हकलाए .

हाँ यही ठीक रहेगा ...मिस्टर अग्रवाल बड़बड़ाये .
अलोक की मम्मी .......मिस्टर अग्रवाल ने आवाज दी .

हाँथ में चाय की ट्रे लेकर मिसेज अग्रवाल प्रकट हुई और बोलीं ....आ रही थी मैं तो .

आलोक की मम्मी ...सर आज यहीं रहेंगे और डिनर हमारे साथ करेंगे . कल इन्हे हॉस्टल में रूम मिल जायेगा ...मि . अग्रवाल बोले . 
....................................................

दूसरे दिन ...
रवि सर को रूम मिल गया . सुबह मिसेज अग्रवाल ने रवि सर को एक हजार दिये और बोलीं ...आपको इनकी जरूरत है .

शाम को अपने रूम में सामान सेट कर सर जी अलोक को पढ़ाने पहुंचे .

पता नहीं सर जी का चमत्कार था या कुछ और जब से अलोक उनके सम्पर्क में आया ...दिन प्रति दिन उसकी स्कूल रिपोर्ट ऊँचाई पर पहुंचने लगी .

एक दिन ऐसा भी आया जब रवि सर ...दस बच्चों के होम ट्यूटर बने . लोकप्रियता के साथ साथ फीस भी बढ़ती गई और रवि सर दस हजार रूपये प्रतिमाह के आदमी बन गए . उन दिनों दस हजार प्रति माह एक अच्छी आमदनी थी .
************************************

उस समय वे ग्रेजुएशन के अंतिम साल में थे ..जब उन्होंने नवाबगंज में तीन कमरों का बरामदा युक्त आवास किराये पर लिया ...
एक कमरा बेडरूम बना ...दूसरा बैठक और तीसरा क्लास रूम .
उनके पचीस तीस शिष्यों में अलोक उनका प्रथम शिष्य था जो चौथी कक्षा में था और उन्हें बहुत प्रिय था . उन्ही में से दो तो थीं ...निर्मल और पूनम . जो छठी कक्षा से ही उनकी स्टूडेंट थीं अब वे नवीं में थी .
................................................

रवि सर की क्लास में ....

निर्मल और पूनम ...अपना कल का होमवर्क चेक कर रही थीं . सर जी किचेन में खटर पटर कर रहे थे ...इसी बीच संजीव और प्रवीन ने कक्षा में प्रवेश किया ....

संजीव सीधा पूनम के सामने पहुँचा और एक लाल गुलाब उसके रजिस्टर पर रख कर वापस प्रवीन के पास जाकर बैठ गया .

प्रवीन उस समय प्रश्नमाला दस के ग्यारहवें सवाल में उलझा था ...जो उससे सुलझ नहीं रहा था . सुबह पाँच बजे से वो ब्रेकेट तोड़ रहा था जो जाने किस धातु का था ...उससे टूट नहीं रहा था .

वो उठकर निर्मल के सामने पहुँचा और बोला ...
....जल्दी से इस सवाल का जवाब दे ...अगर अभी ये सवाल हल न हुआ तो सर बहुत मारेंगे . ...........प्रवीन गिड़गिड़ाया .

निर्मल ने एक नजर क्वेश्चन पर डाली ...
दूसरी नजर प्रवीन के आंसर पर डाली ...
और तीसरी नजर प्रवीन पर डाल कर बोली .....पहले बड़ा ...फिर मझला ...फिर छोटा ब्रिकेट तोड़ते हैं ...उल्लू ! तुझे इतना नहीं पता ?

रवि सर चाय का कप हाँथ में पकड़े आये तो सभी स्टूडेंट अपने स्थान पर खड़े हो गए .

रवि सर कुर्सी पर बैठे और बोले ...आज पढ़ाने का मूड नहीं है ...आज कुछ नया करेंगे लेकिन पहले तुम लोग होमवर्क चेक कराओ ....और वे चाय पीने लगे .

निर्मल ...सर के सामने पहुँची और उनके सामने कापी खोली .

सर ने कहा ...तुम्हारा सही होगा ...तुम आज का क्वेशचन खोजो .

सर ने केवल पूनम और प्रवीन का होमवर्क चेक किया और दो दो डंडे लगा कर बोले ....घास छीलने आते हो यहाँ ... ! 

हाँथ झटकती पूनम अपनी सीट पर आई . वो रुआंसी हो गई ...उसकी पाँचो उंगलियां लाल हो गयी थीं ...

संजीव ने खड़े हो कर कहा ....सर ! कल नैतिक शिक्षा के पीरियड में ...खरे सर ..बोल रहे थे कि अन्याय होते देख कर भी विरोध न करना भी अन्याय ही है . क्या ये सही है ?

रवि सर नें संजीव को देखा और बोले ...सही है .

तो क्या ...मैं अन्यायी हूँ ? ...... संजीव ने प्रश्न
पूछा .

तुम कहना क्या चाहते हो संजीव ....साफ साफ बोलो .. .... सर बोले .

सर ! एक छोटी या बड़ी गलती पर ...गलती करने वाले को सजा दी जाती है .... सजा ...यदि गलती से बड़ी हो तो यह अन्याय है और मैं इस अन्याय का विरोध करता हूँ  ....
......संजीव बोला .

कक्षा के शेष तीनो विद्यार्थी संजीव का भाषण ध्यान से सुन रहे थे ...आज कोई पहली बार डंडे के खिलाफ बोल रहा था .

रवि सर मुस्कुरा कर बोले .... तुम्हे विरोध का अधिकार है . लेकिन ये गधे डंडे से ही सुधरेंगे 
चलो कर के देख लो ....एक हफ्ते डंडा न पड़े तो सारे सूत्र भूल जायेंगे ...ये नालायक .

एक घंटे की क्लास समाप्त हुई .
...................................................

अगले दिन रविवार था और ग्वालटोली की साप्ताहिक बाजार लगी थी . जरूरत का लगभग हर सामान उस दिन बाजार में होता था . 

निर्मल और पूनम बाजार में घूम रही थीं . चौराहे वाले मंदिर के सामने जैसे ही दोनों पहुँची कि मंदिर के बाहर खड़े संजीव ने फूल वाले की टोकरी से एक गुलाब उठाया ....और पूनम को दे आया .

रात के ग्यारह बजे थे ...निर्मल स्टडी टेबल पर गणित के किसी सूत्र में उलझी थी और पूनम बिस्तर पर लेटी दोनों हाँथो में पकड़ा गुलाब देख रही थी .
एक कल क्लास में मिला ....
दूसरा मंदिर के सामने मिला ....
वो बिना काँटों के इन गुलाबों में उलझी थी .
......................................................

प्रदेश स्तरीय वादविवाद प्रतियोगिता में उस वर्ष संजीव को प्रथम पुरस्कार मिला तो उसका नाम अख़बार में छप गया . 
डी पी एस को कई वर्षों बाद कोई सम्मान और पुरस्कार दिलाने वाला मिला था ....स्कूल के प्रिंसिपल और अध्यापकों ने बधाई दी और उसकी फीस भी माफ हो गई .
संजीव के पिता लाल इमली में मशीन ऑपरेटर थे और ग्वालटोली में एक किराए के मकान में रहते थे . संजीव उनका एकमात्र पुत्र था और पढ़ाई में ठीक था .....उन्हें भी लोगों ने बधाई दी ...उन दिनों अख़बार में फोटो के साथ छपना एक बड़ा सम्मान मानी जाता  था  .  

प्रवीन ...संजीव का लगभग पड़ोसी और मित्र था उसके पिता खलासी लाइन शब्जी मंडी में चाट का ठेला लगाते थे और दुकान खूब ...बहुत खूब चलती थी .

पूनम और निर्मल चचेरी  बहनें थीं . साथ ही पली बढ़ी ..साथ ही रहीं ...ये दोनों तिलकनगर के अविनाश ज्ञान मंदिर में पढ़ती थीं . पूनम और निर्मल के पापा ..सगे भाई थे और ग्वालटोली में मेडिकल स्टोर चलाते थे .
...................................................

शाम के पाँच बजे थे और हमेशा की तरह पूनम निर्मल रवि सर की क्लास में सबसे पहले पहुँची .
जब तक सर क्लास में आते ....संजीव ने एक गुलाब का फूल ...पूनम के सामने रख दिया ....
उसके दिल की धड़कन बढ़ गई ....

उस दिन ...
रात में पूनम गुलाब के फूलों में उलझी थी . तीन बार मिले ...इन तीन गुलाबों ने राज को राज न रहने दिया . ये गिफ्ट प्रवीन और निर्मल से न छुप सका ....
निर्मल ने पूनम से पूछा ... क्या चक्कर है लाडो आजकल गुलाब के फूल मिल रहे हैं ?

तू चुप कर मैं खुद परेशान हूँ .... ..पूनम बोली .

तेरी जगह मैं होती तो खुशी से नाचती .......
......... निर्मल बोली .

तू चुप कर मैं सोचती हूँ ...मेरी समझ में नहीं आता ...वो ऐसा कर क्यों रहा है ? ......पूनम ने कहा .

प्यार करता है तुझसे ...और क्या ? ....निर्मल ने हंस कर कहा . 

धत्त ... पूनम शरमाई .

अरी ...तू उससे एक बार बात तो कर ........निर्मल उसे समझाते हुए बोली .

क्रमशः जारी ...

© अरुण त्रिपाठी ' हैप्पी अरुण ' 

Comments