लाल गुलाब .....भाग एक

अरी ! तू एक बार उससे बात तो कर ....निर्मल 
उसे समझाते हुए बोली .
दुपट्टे का कोना ...तर्जनी पर लपेटती और पैर के अंगूठे से जमीन खोदती पूनम हकला कर बोली .....क्या बात करूँ ?
उससे इतना तो पूछ वो ये सब कर क्यों रहा 
है ?.....निर्मल बोली .
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निर्मल और पूनम चचेरी बहने थीं और अविनाश ज्ञान मंदिर में कक्षा नौ की छात्रायें थीं . वे बहने तो थी ही उससे ज्यादा सखी थीं 

गणित का ट्यूशन पढ़ने वे दोनों एक साथ ही रवि सर  के घर जाती थीं .उनके बैच  में कुल चार बच्चे थे ...और चारो कक्षा नौ में पढ़ते थे . दो 
अन्य बालक थे ....संजीव और प्रवीण . ......
ये दोनों डी पी एस इंटर कालेज में पढ़ते थे ...लंगोटिया मित्र थे ...और खासे उद्दंड भी थे . पढ़ाई के मामले में डी पी एस अच्छा नहीं माना जाता था .

सितंबर का महीना था और वातावरण में बड़ी उमस थी . शाम के पाँच बजे थे . निर्मल और पूनम हाँथ में रजिस्टर और पेन लिये ट्यूशन  पढ़ने गईं ...
टीचिंग हॉल में एक ब्लैक बोर्ड ...टेबल ..कुर्सी और दस बारह बेंच थीं ...कुल मिलाकर वो कमरा ..स्कूल के अंदर की किसी क्लास जैसा ही लगता था .
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रवि सर ...भी एक लगभग बेरोजगार आदमी थे उम्र थी उनकी पचीस साल ,  वे बी एड कर रहे थे और पिछले पाँच साल से ...जब से वे कानपुर आये ट्यूशन ही पढ़ा रहे थे .

बीस साल के थे रवि ..जब वे कानपुर युनिवर्सिटी से बी एस सी कर रहे थे . उनके पिता किसान थे और केवल खाने पहनने की ही व्यवस्था कर सकते थे .....
रवि ने वी  एस  एस  डी  कॉलेज में दाखिला ले  लिया ...लेकिन जेब खाली हो गयी ...

वो उनका कॉलेज में पहला दिन था . वे सीधे यूनिवर्सिटी से कॉलेज पहुँचे ...उनका सामान 
कानपुर सेंट्रल के क्लॉक रूम में बंद था . 
अब कॉलेज का पहला दिन तो सभी संबंधित लोगों के लिये पहला दिन ही होता है ...उस दिन तो लोग बस कॉलेज आते हैं ...

लाइब्रेरी में शांति थी ...रवि ...जाकर वहाँ बैठे और अख़बार पढ़ने लगे ...उसी समय उनके 
सामने की तीसरी रो में दो औरतें बातें कर रही थीं ...एक औरत पतली दुबली थी और दूसरी खासी तंदरुस्त लेकिन उसे मोटी नहीं कहा जा सकता था . उम्र भी रही होगी यही कोई तीस बत्तीस साल . दोनों ने साड़ी पहनी थी और माथे पर ट्रैफिक सिग्नल से भी ज्यादा लाल सिन्दूर उनके विवाहित होने की चुगली कर रहा था ....
दोनों काफी देर से बातें कर रही थीं . दोनों ही कॉलेज से एम ए कर रही थी ....
तंदरुस्त औरत ...उस पतली औरत से कह रही थी ...और तो सब ठीक है बहन लेकिन मेरे लिये रोज रोज कॉलेज आना मुश्किल ही है .मेरा बेबी छह साल का हो गया है ....

तो तुम एक छह साल के बच्चे की माँ हो ! लगती तो नहीं !!...... पतली औरत बोली .

तंदरुस्त औरत शरमाई और बोली ...एम ए फाइनल है मेरा ...मेरे ये किसान डिग्री कॉलेज जो परशुरामपुर हमारे गाँव में है वहाँ के प्रबंधक हैं . पिछले साल से मैं वहाँ टीचर हूँ .
लेकिन कभी पढ़ाने नहीं गयी . मेरे ये कहते हैं कि तू जल्दी से एम ए कर मैं तेरा पी एच डी में दाखिला करवा कर कॉलेज में लेक्चरर बना दूँ . दो साल बाद कॉलेज ऐड पर आने वाला है .

बिना पूछे वो लगभग मोटी औरत इतना कुछ बक गई .
तभी वो पतली औरत बोली ....कुछ भी कहो लेकिन तुम्हे देख कर कोई नहीं कह सकता कि तुम्हारे कोई छह साल का बच्चा है .

उन लगभग मोटी मोहतरमा को अचानक जैसे कुछ याद आया और वे बोलीं ....हाँ ..मेरा बेटा अलोक दूसरी क्लास में है और उसे जोड़ना घटाना भी नहीं आता . कोई घर पर आकर पढ़ा दे तो पाँच सौ तो आराम से दे दूँगी .

उस समय ...पाँच सौ की अहमियत आज के पाँच हजार से ज्यादा थी ....रवि को लगा ...भगवान उसकी मदद कर रहा है ...
रवि अपनी कुर्सी से उठ कर उन औरतों से एक मीटर दूर ...दूसरी कुर्सी पर जा कर बैठे और बोले  ....कक्षा दो के बच्चे को मैं गणित पढ़ा सकता हूँ .

तंदरुस्त औरत बोली ...आपकी तारीफ ?
रवि बोले ....जी ..मेरा नाम रवि प्रकाश है . मै इसी कॉलेज से बी एस सी कर रहा हूँ .

वे बोलीं ...ठीक है . आप हमारा पता लिख लीजिये . शाम सात बजे आप हमारे घर आ जाइये ...हमारे ये भी आपसे मिल लेंगे और आप बच्चे से भी मिल लीजियेगा . अच्छा हुआ आप मिल गए ...सच्ची ...मैं बहुत खुश हुई आपसे मिलकर .
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शाम सात बजे ...तिलक नगर की एक पॉश कालोनी में पहुंच ...रवि ने जेब से एक पर्ची निकाली ...लिखा था ...
दीपक अग्रवाल 
3/33 तिलक नगर 
पेट्रोल पंप की बगल में ...

सामने पेट्रोल पम्प था और बगल में एक सुन्दर मकान पर यही पता लिखा था ....रवि ने घर का दरवाजा खटखटाया ....
चार खाने की लुंगी ...बबलू हवाई चप्पल ...सैंडो बनियान पहने एक दोहरे बदन के आदमी ने दरवाजा खोला ....
उन्हें देख लगा की बनियान और चप्पल उन्होंने आज ही खरीदी है ...मुँह में पान चबाते उन्होंने रवि को देखा ...फिर मुँह घुमा कर दीवाल घड़ी देखी ...सात बजने में पांच मिनट बाकी थे ...
तुम रवि प्रकाश हो ?  ...... उन्होंने पूछा .
जी ..हाँ ........ रवि बोले .
आइये सर ! स्वागत है  ........ उन्होंने कहा .

उनके सामने सोफे पर रवि बैठे थे ...यद्यपि उनकी उम्र महज उन्नीस साल थी लेकिन उसी दिन उन्हें पहली बार किसी ने " सर " कहा था और उसी समय से ...रवि ..." रवि सर " हो गए .

मोटे महाशय मुस्कुरा कर बोले .... मेरा नाम दीपक अग्रवाल है . मैं ट्रेड यूनियन का प्रेसीडेंट हूँ ..हमारी कपड़ो की थोक दुकान लाटूश रोड पर है ...शुक्ला गंज में हमारा  एक शो रूम भी है .

इतनी देर में वही तंदरुस्त मोहतरमा जिन्होंने रवि सर को यहाँ का पता दिया था ...एक ट्रे में चाय नमकीन ...मीठा ...पानी ..सब साथ लेकर आयीं और मुस्कुराते हुए बैठ गयीं .
जी ..आप लोगों का परिचय तो हो ही गया होगा .आप लोग चाय पीजिये . मैं अलोक को बुला कर लाती हूँ .....
इतना कह कर वे चली गयीं .

थोड़ी देर बाद एक छह साल का गोरा चिट्टा तंदरुस्त बच्चा अपनी मम्मी की उंगली पकड़ आया ...... उसकी मम्मी लगभग मोटी जरूर थी लेकिन उसके सुंदर भरे भरे ..गोरे ..लाल लाल गालों पर मुस्कराते समय पड़ने वाले डिम्पल... उनकी सुंदरता में चार चाँद लगा देते ...उस पर लाल लिपिस्टिक गजब ढाती थी .

अलोक जयपुरिया पब्लिक स्कूल में पढ़ता था .
उस जमाने में कानपुर शहर में इस स्कूल का बड़ा नाम था . बड़े बड़े अधिकारियों और धन्ना सेठों के बच्चे वहाँ पढ़ते थे .
बच्चे ने टीचर को देखा तो उसकी मम्मी बोली ...
....गुड ईवनिंग बोलो सर को .
लड़के ने हाँथ जोड़े और बोला .... नमस्ते .
नमस्ते नहीं बेटा ...गुड इवनिंग बोलो ..... 
माँ बोली .
जी नमस्ते ही ठीक है कहते हुए अपने पहले स्टूडेंट के सिर पर उंगलियां फिराते रवि सर ने अपने शिष्य से कहा ......चलो थोड़ी पढ़ाई करते हैं .

बच्चे ने उनकी उंगली पकड़ी और अपने कमरे में चला गया . पैंतालिस मिनट बाद अलोक हँसते खेलते रवि सर के साथ ड्राइंगरूम में आया .

एक बार और चाय का दौर था ...रात के आठ बज रहे थे . लोग कहते हैं ....चाय पीने से भूख मर जाती है लेकिन रवि के पेट में दौड़ रहे चूहों पर ...इस चाय का कोई असर नहीं पड़ा .

हाँ ...तो सर आपकी फीस क्या होगी ?... ..
... ...अग्रवाल बोले .
 ब मैं क्या बोलूं आपसे ... ....रवि कोई 
प्रोफेशनल तो थे नहीं ...उन्हें तो यही बोलना था .

तभी मिसेज अग्रवाल बोलीं ..... ...पाँच सौ बोली थी मैं ?
हाँ ...तो सर आप अलोक को रोज कितना टाइम देंगे .... ...अग्रवाल बोले .
जी दो घंटे प्रतिदिन ...सुबह या शाम ...जब आप कहें ........ रवि ने कहा .
दो घंटे ? ....ट्यूशन तो एक घंटे का ही पर्याप्त होता है . ......... वे बोले .
आप ठीक कहते हैं लेकिन कान्वेंट स्कूलों का होमवर्क पूरा होना अनिवार्य होता है ...एक घंटे ..डेढ़ तो उसी में लग जायेंगे  ....रवि बोले .

ठीक है सर ...तो कल से आप शाम पाँच बजे आइयेगा . .... अग्रवाल ने कहा .
जी धन्यवाद ....सर जी चलने को उद्यत हुए तो बच्चा बोला ....नमस्ते सर !
गुड नाइट बोलो बेटा !  .......बच्चे की मम्मी बोली .

रवि सर की वो रात प्लेटफार्म पर कटी . सुबह दस बजे वे फिर कालेज पहुँचे . कॉलेज ऑफिस से पता चला ...हॉस्टल के लिये रजिस्ट्रेशन हो रहा है . उन्होंने फार्म लिया और फिलअप करने लगे .
एक जगह लिखा था .....किसी संभ्रांत व्यक्ति या राजपत्रित अधिकारी द्वारा प्रमाणित किया जाय .
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क्रमशः जारी 
© अरुण त्रिपाठी ' हैप्पी अरुण ' 

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