लाल गुलाब (भाग ...5 )
गतांक से आगे ....
अगले दिन पूनम सुबह आठ बजे अपने पापा के साथ स्कूटर पर बैठ अस्पताल पहुँची . अस्पताल गेट पर उसके पापा ने कुछ फल खरीदे और वहीं पूनम की नजर फूलों की दुकान पर पड़ी .... दो रूपये का एक गुलाब खरीद कर पूनम अपने पापा के साथ संजीव के बेड तक पहुँची .
पूनम के पापा मेडिकल व्यवसाय में थे ...वे संजीव के पिता से दवाइयों की बात करने लगे .......और पूनम ने वो फूल संजीव को दिया ...फिर वही वापस भी लिया .
संजीव के पापा ने ...पूनम के पापा से कहा .... "चिंता न करें ..दवा का परचा दीजिये ...मैं जीरॉक्स करवा लेता हूँ . शाम को पूनम दवा दे जायेगी . पैसे की जरूरत नहीं ...इसे मेरी भेंट मानिये ...देखिये न मत कीजियेगा .
तभी वहाँ प्रवीन आया . कुछ ही मिनटों में वो परचे की फोटो कॉपी करवा लाया .
पूनम को स्कूल छोड़ उसके पापा दुकान चले गये .
शाम को निर्मल के साथ पूनम अस्पताल आयी और दवा देकर ...आठ बजे वापस चली गयी और प्रवीन की नाइट शिफ्ट चालू हुई .
इस प्रकार आठ दिन तक लगातार पूनम किसी न किसी तरह अस्पताल पहुँचती रही . गुलाब देती रही ...वही गुलाब लेती रही .
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आठवें दिन ....
शाम को संजीव अस्पताल से घर पहुँचा . पंद्रह दिन बाद वो रवि सर की क्लास में आने लगा और एक महीने बाद स्कूल जाने लगा ....धीरे धीरे उसका स्वास्थ्य सुधरने लगा .
इस बीच वह दिन नहीं आया ...जब पूनम को उसका गुलाब न मिला हो .
पूनम ने एक स्टेशनरी की दुकान से एक खूब सुंदर और मोटी डायरी खरीदी और जिस दिन जो गुलाब मिला ...उसे उस तारीख पर सैलो टेप से चिपकाने लगी . उसके पास आज 153 गुलाब इकट्ठा हो गए थे . अब तो वह हर गुलाब के पन्ने पर कुछ न कुछ लिखने भी लगी थी .
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वार्षिक परीक्षा संपन्न हुई ....परिणाम आया और गर्मियों की लम्बी छुट्टी प्रारम्भ हुई ....
उस दिन निर्मल ने जाना कि पैसे एकत्र करने का जूनून ...पूनम पर क्यों चढ़ा ? पूनम पाँच हजार की डिजाइनर ड्रेस खरीदना चाहती थी ...जो वो खरीद तो नहीं पाई लेकिन फिर भी बहुत संतुष्ट थी .
स्कूल भी बंद हुआ और रवि सर की क्लास भी .
इधर छुट्टियाँ शुरू हुईं ...उधर पूनम पर भक्ति का रंग चढ़ा ...वो रोज सुबह मंदिर जाने लगी . ग्वालटोली चौराहे पर पीपल के पेड़ वाले मंदिर में वो प्रतिदिन दर्शन करने जाती और एक लाल गुलाब लेकर लौटती .
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एक दिन संजीव सुबह सात बजे मंदिर पहुँचा . वो हाँथ में गुलाब का फूल लिए नौ बजे तक खड़ा रहा लेकिन पूनम नहीं आयी .... !!
दस बजे हाँथ में फूल लिये संजीव ...पूनम के घर पहुंचा . वहां पता लगा कि उसकी मौसी की लड़की की शादी है और वो किदवई नगर गई है ....
चाय पानी पी कर संजीव चलने लगा ...उसी समय उसे निर्मल दिखी ...
हैलो ..निर्मल ! तुम नहीं गई शादी में ?
बस ..अभी निकलने वाली हूँ ....वो बोली .
एक काम करोगी मेरा ? ....संजीव ने कहा .
हाँ ..कर दूँगी . तुम ये फूल मुझे दे दो ...तुम्हारा काम हो जायेगा .....निर्मल हँसते हुए बोली .
संजीव शरमा गया .
संजीव दरवाजे तक पहुंचा ...तभी निर्मल बोली .....एक मिनट रुको .
वो दौड़ती हुई अपने कमरे में गई . एक मिनट में वापस आयी और संजीव को एक चिट पकड़ा कर बोली ...अब जाओ .
थोड़ी दूर जा कर संजीव ने चिट खोली ...लिखा था ...
वात्स्यायन
लाला मिष्ठान भंडार के सामने
32 ए - एच 2 ब्लॉक
किदवई नगर
अगले दिन संजीव लाला मिष्ठान भंडार के सामने पहुंचा ...सामने वाले घर में शादी का माहौल था .
मधुर स्वर में लाउडस्पीकर गा रहा था ...
सोलह बरस की बाली उमर को सलाम ..!
मैं प्यार तेरी ..पहली नजर को सलाम ...!!
और वो सामने के घर से निकली और मिठाई की दुकान पर पहुंच बोली ...भइया सौ ग्राम जलेबी देना ....
जलेबी खा कर ...खुद की खायी आधी जलेबी उसे खिला कर ...उसकी नजरों में झांकती पूनम अपना गुलाब लेकर चली गयी .
स्कूल फिर खुले ...रवि सर की क्लास फिर शुरू हुई . इस बार वे चारो दसवीं में थे . इस बार बोर्ड परीक्षा थी .
जुलाई से मार्च तक स्कूल से रवि सर ...रवि सर से घर तक की यात्रा अनवरत जारी रही . गुलाब के फूल पूनम की डायरी में जुटते रहे .
मार्च में परीक्षा हुई ..
मई में रिजल्ट आया ..
रवि सर की शान में इन चारों ने चारचाँद लगा दिये सभी प्रथम श्रेणी से हाई स्कूल पास हुए .
ये मीठी प्रेम कहानी अनवरत जारी रही गुलाबों का आदान प्रदान होता रहा .
रवि सर को दीनदयाल उपाध्याय इंटर कॉलेज में गणित के अध्यापक की अच्छी नौकरी मिली .
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रवि सर का विवाह हो गया .
सर निहायत शरीफ और पारिवारिक किन्तु अकेले आदमी थे ....
जिस लड़की से शादी के लिये कहा गया ...कर ली
उनकी पत्नी सुंदर थी ...गुनी थी ...लेकिन बज्र देहाती थी और पढ़ी लिखी भी नहीं थी .
पत्नी की यही कमी उन्हें बहुत खलती ...
अब उन्होंने तय किया कि वे एक मशहूर अध्यापक हैं और वे उसे पढ़ायेंगे .
दिन भर कालेज में पढ़ाते ....सुबह शाम ट्यूशन पढ़ाते और रात में जब पत्नी के पास होते तो उसे गणित के सूत्र पढ़ाते ....
लेकिन उनकी पत्नी तो कामसूत्र पढ़ना चाहती थी .मामला फंस जाता और गणित और काम के सूत्रों के मध्य युद्ध के हालात पैदा हो जाते .
बहरहाल ...
रवि सर के चारो शिष्य हाई स्कूल पास कर इंटर में पहुंचे ...
पूनम और निर्मल ने ...जी जी आई सी में दाखिला लिया ...
प्रवीन और संजीव ...डी पी एस में ही पढ़ते रहे .
रवि सर अब भी अपनी उसी क्लास में गणित और अंग्रेजी पढ़ाते थे ...वहीं पर गुलाब के फूलों का अनवरत आदान प्रदान होता रहा .
बारहवीं का बोर्ड इम्तहान भी हो गया . चारो इस बार भी प्रथम श्रेणी से पास हुए ...
निर्मल और पूनम ने पी पी एन में दाखिला लिया और मनोविज्ञान ...गृहविज्ञान पढ़ने लगी .
प्रवीन ....पॉलिटेक्निक करने लगा .
लेकिन संजीव ..... ?
वो तो गायब ही हो गया . प्रवीन को भी इसकी खबर नहीं थी .
एक दो बार बेचैन हो कर पूनम , संजीव के घर भी गई ...हर बार ताला मिला .
एक रात ....
बारह बजे पूनम बिस्तर पर करवट बदल रही थी .उसके हाँथ में ग़ुलाब के फूलों से भरी डायरी थी .उसकी निगाह अंतिम गुलाब पर टिक गयी .....
उस दिन ....
पूनम मंदिर गई ...संजीव ने उसे वही अंतिम गुलाब दिया ...उस दिन वो बहुत उदास था ... उसकी आँखे डबडबाई थीं .
फिर वो नहीं मिला ...जहाँ तक संभव था उसने उसे खोजा ...लेकिन ...... !!
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ग्रेजुएशन सेकेण्ड ईयर तक पूनम बहुत उदास रही
दिन रात बेचैन रही लेकिन थर्ड ईयर में पहुंचते ही उसकी शादी हो गई और वो ससुराल चली गयी लेकिन इसी बीच ......
पूनम का पति किराने का बड़ा व्यापारी था . चौक में उसकी पुश्तैनी दुकान थी ......सर्वोदय नगर में कुछ समय पहले ही उसने एक बहुत बड़ा डिपार्टमेंटल स्टोर खोला था .
निर्मल ने आगे पढ़ने का फैसला किया और मनोविज्ञान से पी जी करने लगी .
प्रवीन पढ़ लिख कर जल संस्थान में इंजीनियर हो गया .
उस समय तक मोबाइल फोन का प्रचलन लगभग शुरू हो चुका था . भारत बदल रहा था . एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक क्रांति होने वाली थी .
आने वाले समय में दुनिया का स्टाइल ही चेंज होने वाला था ...... !!
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चालीस वर्षीय ...उस व्यक्ति का व्यक्तित्व बड़ा निराला था . वो जींस ... टी शर्ट और स्पोर्ट्स शूज पहनता था . सुबह जॉगिंग करता .... दोपहर में किसी अच्छे होटल में लंच करता ....शाम किसी बार में होता और रात में ......
वो जेनिफर हाइट्स के टॉप फ्लोर पर रहता था और अकेले रहता था . वो प्रसिद्ध पटकथा लेखक था और सैंपू के नाम से दिलफ़रेब रोमांटिक कहानियां लिखता था ....
उसके दो प्रसिद्ध उपन्यासों पर फिल्में बन चुकी थीं जो सुपरहिट रहीं . तीसरी फिल्म की पटकथा वो लिख चुका था ...और काम चालू था .
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उस दिन जॉगिंग करते समय उनके बगल में दौड़ती एक बीस साल की छोकरी ठोकर खा कर मुँह के बल गिरने वाली थी कि उन्होंने उसे पकड़ लिया ...
फिर भी ...वो गिर पड़ी ...साथ ही वो भी ....
घुटना छिल गया उनका ...खून बहने लगा तो लड़की ने अपने रूमाल से उनकी चोट साफ की और उसी रुमाल की पट्टी बांधी .
सॉरी सर ! मेरी वजह से आपको चोट लग गई .......लड़की बोली .
कोई बात नहीं ...होता है ...ये कह कर वे उठने लगे तो खड़े न हो सके .
वो लड़की उन्हें लेकर अस्पताल गई . घुटने का दर्द बढ़ गया था ...एक्स रे हुआ और पता चला माइनर डिस्लोकेशन है लेकिन प्लास्टर करना होगा और पंद्रह दिन फुल रेस्ट रहेगा .
वे अस्पताल में एडमिट हो गए ....
लड़की बोली .....सर ...आप अपने घर का नंबर दे दीजिये ...इन्फार्म कर दूँ .
उनके मुख पर फीकी मुस्कान आयी और वे बोले .....मेरा फोन मेरी जेब में है . घर का कोई नंबर नहीं है क्योंकि वहाँ केवल मैं रहता हूँ .
ओह ...सॉरी सर ! तो आपकी देखभाल कैसे होगी ? ....वो बोली .
ये खूबसूरत नर्सें करेंगी मेरी देखभाल ...इतना कह कर वे खुल कर हँसे .
वो लड़की उस वक्त चली गई ...
अगले दिन सुबह आयी और ब्रेकफास्ट लेकर आयी
शाम को डिनर ले कर आयी और खुद बना कर लायी . गोभी की शब्जी खाते ही ...उनकी आँखों से आँसू बहने लगे ...वे बार बार अपनी बाँह से आँसू पोंछने लगे ....
क्या हुआ सर ! मिर्ची ज्यादा है क्या ? ...वो बोली .
नहीं ठीक है ....वे बोले .
इस तरह वो लड़की रोज अस्पताल आती और उन्हें खिला पिला कर चली जाती ...
बहुत इसरार करने पर कभी कभी क्वार्टर भी ले आती ...और पिला कर जाती .
क्रमशः जारी ....
© अरुण त्रिपाठी ' हैप्पी अरुण '
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