खुशी की कहानी

मित्रों , आज सुबह मौसम खुशगवार था , बदली छाई थी , ठंडी हवा चल रही थी . सुबह के पाँच बजे थे , मैंने अपना फोन उठाया और चल पड़ा . रास्ते में नहर के पुल पर बैठ कर तेजी से बहते पानी को देखता रहा . साल भर सूखी रहने वाली ये प्राकृतिक नहर बरसात मे विकराल रूप धारण कर लेती है . चारो तरफ पानी ही पानी था . मैं राजन साजन मिश्र का शास्त्रीय गायन सुनता हुआ आगे चला , गाँव के कच्चे रास्ते पर मुझे अपने स्पोर्ट सूज उतार कर हाथ में लेने पड़े , गांव के प्राइमरी स्कूल के हैंडपम्प पर पहुँच , मैंने मुँह में दबी दातून को विदा कर हाथ पैर धोए और जूते पहन दूसरें रास्ते से वापस लौटा . रास्ते में बूंदे पड़ने लगी . फटाफट हेडफोन निकाल कर फ़ोन के साथ ज़ेब में पड़ी पन्नी में रख कर घर की तरफ भागा .
घर पहुँच कर नहा धो कर पूजापाठ किया , बच्चे स्कूल जा चुके थे . घर में अजीब सूना पन छाया था . मुझे भूख लग रही थी . पत्नी से कहा , उन्होंने आज मसाला डोसा बनाया था . घर में बने डोसे का स्वाद ही अलग था . वो बनाती गई मै खाता गया . पेट भर डोसे खाने के बाद , आनन्द से भर कर पत्नी को धन्यवाद दिया तो वो मुस्कुराई . और चाहे जो हो मेरी पत्नी खाना बहुत अच्छा बनाती है . सही कहा है किसी ने "मर्द के दिल का रास्ता , पेट से हो कर गुजरता है "
शाम को बच्चों के साथ खेलते हुए सोचा " ख़ुशी तो मन में होती है ,धन में नहीं " ये बात मन में आते ही मैं खुश हो गया .





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