मेरे गुस्से की कहानी

मित्रों , रोज की तरह आज भी मैं मॉर्निंग वाक पर निकला . मौसम खुशगवार था . मैं प्रतिदिन की तरह टहलता हुआ उसी पुलिया पर जा कर बैठ गया जहाँ मैं लगभग रोज़ ही बैठता था . सुबह के पाँच बजे थे , चारो तरफ एक निःशब्दता व्याप्त थी , पूरी प्रकृति का जागरण हो रहा था और मेरे कानों में पंडित हरिप्रसाद चौरसिया का बाँसुरी वादन गूँज रहा था . मैं आनंद में मग्न था .
मैंने देखा एक खरगोश सड़क पर तेजी से भागता जा रहा था और चार पाँच कुत्ते उसके पीछे थे . अपनी पूरी आक्रामकता के बावजूद वे उस नन्हे खरगोश को पकड़ नहीं पाए . पूरब दिशा लाल होने लगी थी , सूरज निकलना चाहता था लेकिन बादलों ने उसे ढक रखा था .
एक हाथ में छाता और दूसरे हाथ में दूध का बरतन लटकाए मैं लगभग आठ बजे घर पहुँचा . कई दूसरे कामों के कारण आज मैं लेट हो गया था .
मेरी माता जी बरामदे में बैठी थीं और मेरा नन्हा बालक बाहर खेल रहा था . मैं घर में घुसा तो देखा पत्नी घर के कामों में वयस्त थी .मेरी दोनों बेटियां अभी  तक सो रही थीं . एक तो मैं पहले से लेट था , दूसरे पत्नी भी बेटियों पर गुस्सा थी और बड़बड़ा रही थी .मुझे किसी का भी देर तक सोना सख्त नापसन्द है .अचानक मेरा पारा चढ़ गया  और मेरे विवेक ने मेरा साथ छोड़ दिया . तीर कमान से छूट चुका था ,और फिर मैंने चुनचुन कर न कहने लायक तथाकथित मधुर वचनों का प्रयोग करना शुरू किया . मेरे क्रोध के कारण घर में हाहाकार मच गया .
मेरी आवाज सुन कर मेरा नन्हा बालक घर के अन्दर आया . थोड़ी देर तक मुझे देखता रहा और फिर मेरी तरफ उंगली उठा कर उसने उन शब्दों का प्रयोग मेरे ऊपर कर दिया जो मैं बक रहा था . अपने शब्दों का ऐसा पलटवार सुन मैं स्तब्ध रह गया और लज्जित होकर टॉयलेट में घुस गया . बड़ी देर के बाद मैं बाहर निकला तो सबकुछ समान्य हो चूका था लेकिन मैं असमान्य था . मेरा बेटा आँगन में खेल रहा था . मैंने उस के  सामने जा कर घुटनो के बल बैठ कर उससे माफ़ी मांगी . वो हँसा और सिर हिलाकर मुझसे लिपट गया .

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