ढोकले और कटहल की कहानी

मित्रों , रोज की तरह मैं सुबह  घूमने निकला , रात से ही बारिश बंद थी . बदली छाई थी , ठंडी हवा चल रही थी और मौसम सुहाना था .
घर लौटने पर देखा श्रीमती जी बहुत प्रसन्न थी . नहा धो कर , पूजापाठ कर जब मैं निवृत हुआ तो पत्नी ने एक लिस्ट थमा दी और बोलीं कि ये सामान ले कर आओ . मै उन्हे प्रश्नसूचक नजरों से देखता हुआ बाजार गया और सामान देकर अपने काम में व्यस्त हो गया . पत्नी मुझे चाय देकर चली गई . कुछ देर बाद वो नाश्ता लेकर आई . आज नाश्ते में ढोकले देख कर मैं खुश हुआ . पत्नी मेरे बगल में बैठ कर बातें करने लगी तब मुझे पता चला कि मुझे मेरी साली के घर जाना होगा . मेरी पत्नी और उनकी छोटी बहन के बीच अत्यंत मधुर सम्बन्ध हैं . सामान्यतः मैं रिश्तेदारियों में बहुत कम जाता हूँ  लेकिन आज मुझे जाना पड़ा . पत्नी ने बड़े प्यार से मुझे और मेरे चार साल के बेटे को तैयार किया और मैं स्कूटर के आगे अपने बेटे को खड़ा कर घर से रवाना हुआ .
पत्नी के कहने पर मैं चल तो पड़ा लेकिन बादल देख कर पछता भी रहा था , ऊपर से एक छोटा बच्चा भी साथ था  जो बहुत खुश था .
पन्द्रह किलोमीटर गाड़ी चला कर मैं अपने गन्तव्य पर पहुँचा . मैंने अपनी पत्नी के बनाए ढोकले उसकी बहन को दिए तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा . उन दोनों के बीच जो प्रेम था वो मेरी पत्नी के हाथों से बने इन ढोकलों के माध्यम से साफ दिख रहा था . ये ढोकले प्रेम का एक प्रतीक बन गए थे . मेरा वहाँ भरपूर सत्कार हुआ , मेरा बेटा भी बहुत खुश था .
दो घंटे सुखदुख चर्चा के बाद मैं चलने को तैयार हुआ तो अब बारी मेरी साली की थी . उसने एक बोरा भर कर कटहल मेरे स्कूटर के पीछे लदवा दिया और प्रेम के प्रतीक इन कच्चे पक्के कटहलों को ले कर मैं चुपचाप अपने घर आ गया , इन्हे लाद कर न ले आने की मेरी कोई दलील न चली .
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Comments

Bablie said…
Saral bhasha sahaj andaz dhara pravah gati.............. excellent mama