हर हाल में खुश रहने की कहानी

आज तक मैँ आप को अपने दैनिक जीवन की सच्ची घटनाएँ सुनाता रहा . आज मैं आपको कहानियों के फ्लैशबैक में लेकर चलता हूँ .
मैं एक मेट्रोपोलिटन शहर में पैदा हुआ , पलाबढ़ा और ग्रेजुएट हुआ . शुरू से ही मेरी आदतें और रुचियाँ दुनियाँ  की नज़र में विचित्र थीं . मैं शास्त्रीय संगीत और जाज में रूचि रखता था . विभिन्न आश्रमों में जा कर दस दस दिनों तक रहता था . अकेले रहने की आदत के कारण  मेरे मित्र भी कम ही थे . लगभग हर प्रकार का साहित्य पढ़ने में गहरी रूचि थी . कहानियाँ  और  कविताएँ  भी लिखता था . जो डायरी में ही बंद रह गईं .
मेरे पिताजी मेरी इस प्रकार की हरकतों को देख घबरा गए और उन्होंने अपने इकलौते पुत्र की लगभग जबरदस्ती शादी कर दी . मैं घर गृहस्ती के जाल में फॅसा और मेरा ऊंट पहाड़ के नीचे आया . अपना निजी ख़र्च चलाने के लिए मुझे सबसे छुप कर दुकान दुकान जा कर फीडिंग बॉटल बेचनी पड़ी . पिता जी  पैसे देते तो थे लेकिन जबरदस्त हिसाब लेते थे और किसी को भी हिसाब देना मुझे आज भी  सख़्त नापसंद है . खैर किसी प्रकार मैं नौकरी से लगा . कुछ ही दिन बीते थे कि पिताजी रिटायर हो गए .
गाँव में ठीकठाक प्रॉपर्टी थी और वहाँ कोई रहने वाला नहीं था . अब उनको गाँव में जा कर रहने का भूत सवार हुआ . मैं जानता था कि उन्हें डायबिटीज और हार्ट की बीमारी के कारण गाँव में तकलीफ होगी . लेकिन मेरी चली नहीं .
उन्होंने गाँव पहुँच कर  नया घर बनवाया . भैंस पाली . चारा काटा . खेती की . और सब कुछ किया जो उन्होंने कभी नहीं किया था . परिणाम , उन्हें फ़ालिज का अटैक हुआ . आननफानन में मुझे गाँव आना पड़ा . महीने भर तक अस्पताल में रहने के बाद वो चलने फिरने के काबिल हुए . लेकिन गाँव में रहने की ज़िद नहीं छोड़ी . भैंस मर गई . बहुत नाजायज खर्च हुआ जो बच सकता था . आखिरकार छह महीने भी नहीं बीते थे कि उनको पहला हार्ट अटैक आया . उनकी सेवा के लिए हम पतिपत्नी गाँव आए . जब वे थोड़ा स्वस्थ्य हुए तो हमने अपने माता पिता को उचित मेडिकल जांच और सलाह के लिए शहर भेजा . हम पति पत्नी गाँव में रुके . जब वे वापस आए तो उन्होंने ऐसा प्रकट किया जैसे वो हमारे बगैर जीवित ही नहीं रह पायेंगे . उन्होंने जबरन हमें छः माह तक रोका .
मेरी प्राइवेट नौकरी थी . बिना छुट्टी अनुपस्थित रहने के कारण मुझे टर्मिनेशन लेटर मिल गया .
इसके बाद जो हुआ , उसके कारण मुझे गाँव में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा . पिताजी ने शहर जा कर बिना मुझे बताए शहर का मकान बेच दिया . आज तक पता नहीं चला कि मकान के पैसे का क्या हुआ ?मैं डीप डिप्रेशन में चला गया . पिताजी ६५ साल की उम्र में मर गए . मैं गांव में एडजस्ट नहीं हो पा रहा था जहाँ बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव था और मैं डिप्रेशन में आत्महत्या के तरीके खोजने लगा .
अंततः मेरी इसी आध्यात्मिकता ने मुझे बचा लिया और मुझे समझ आ गया कि दुनिया केवल एक मायाजाल है . कोई किसी का नहीं होता . जीना है तो हर हाल में खुश रहना होगा .

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