निर्मल मन जन सो मोहि पावा (अध्याय ..2)

गतांक से आगे ...
......दुर्जन सिंह बेचैनी से टहल रहा था .पंडित जी को देखते ही आतुरता से उनके पास पहुंचा .पंडित जी बोले ...यहाँ से उत्तर दिशा की और चलते जाओ ...तुम्हे एक नदी मिलेगी जिसे " यमुना " कहते हैं .वहीं पर एक पहाड़ है जिसे "गोवर्धन " कहते हैं .वहाँ कुछ कदम्ब के पेड़ हैं और जंगल है .वहाँ प्रतिदिन " कृष्ण और बलराम " दोनों भाई गाय चराने आते हैं .वहाँ एकांत भी रहता है ...वही वे तुम्हें मिलेंगे .
दुर्जन सिंह बोला .....ठीक है पंडित जाता हूँ और "मुझे वहाँ जो कुछ भी मिलेगा उसमें तुम्हारा हिस्सा होगा और वो तुम्हें मैं दूंगा .लेकिन अगर तुम्हारी बात गलत निकली तो ......समझ लेना ."
पंडित का तीर कमान से छूट चुका था और अब वे कुछ नहीं कर सकते थे .जो होगा देखा जायेगा ये सोच कर वे अपना सिर हिलाने लगे ..और मन ही मन इस विपत्ति से छूटने के लिए भगवान से प्रार्थना करने लगे ....................
दुर्जनसिंह तत्काल उत्तर दिशा की ओर चल पड़ा और रात भर चलते चलते ऐसे स्थान पर पहुँचा जहाँ एक नदी थी ...लेकिन वह " यमुना" नहीं थी . टीला था लेकिन वह " गोवर्धन पर्वत " नहीं था .कदम्ब था और कुछ पेड़ भी थे .
दुर्जनसिंह उसी स्थान को अपना लक्ष्य समझ ...कदम्ब के पेड़ पर चढ़ गया और आतुरता से दोनों बालकों की प्रतीक्षा करने लगा .......
सूर्योदय हो रहा था ...दिन का प्रकाश ..रात्रि के अंधकार को चीरते हुए पूरे वातावरण को अपने अंक में भर लेना चाहता था .और दुर्जन की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी .और फिर .....उसे बांसुरी की मधुर ध्वनि सुनाई दी ,जो लगातार समीप आती जा रही थी और दो बालक कुछ गायों और बछड़ो के साथ आते दिखे .एक बालक गौर वर्ण का और दूसरा श्याम .उन्होंने लगभग वैसे ही वस्त्राभूषण धारण कर रखे थे ...जैसा पंडित नें कथा में वर्णन किया था ....और वे दोनों उसी कदम्ब के नीचे आकर खड़े हो गए ...जिस पर दुर्जन चढ़ा था .
दुर्जन पेंड़ से नीचे उतरा ...और दोनों बालकों को ध्यान से देखने लगा .दुर्जन अटकते हुए बोला ..
....क्या तुम कृष्ण हो ?
सांवले बालक नें कहा ...हाँ !!और ये मेरे दाऊ बलराम ..अच्छा !!तो मैं एक डाकू हूँ और मेरा नाम दुर्जनसिंह है .मैंने अपनी लाठी से सैकड़ों लोगों के सिर तोड़े हैं .
तुम दोनों अपने सभी आभूषण उतार कर मुझे दे दो .अन्यथा ........!!!
अन्यथा क्या ?....कृष्ण वर्ण बालक बोला .
अन्यथा ..मैं बल पूर्वक छीन लूंगा .
ठीक है छीन लो .....
दुर्जन बोला ....देखो कृष्ण तुमको देख कर ..न जाने क्यों मेरा मन तुम्हारा अहित करने को नहीं कहता .तुम दोनों इतने प्यारे हो कि मैं बल प्रयोग करना नहीं चाहता .इसलिए चुपचाप जैसा कहता हूँ वैसा करो .
यदि न करें तो ?
तो मैं छीन लूँगा !!!
तो छीन लो ...
और दुर्जन नेँ ........झपट कर ....
क्रमशः जारी ......


Comments

Anil. K. Singh said…
बहुत अच्छा लग रहा है। आगे और मजा आये गा। Very good.