कितने रूपए ??? (भाग ...3)

गतांक से आगे ....
वही टाई वाला नवयुवक पुनः उपस्थित हुआ और बड़े आदर से बोला ....सर ! आपका तीन दिन का होटल बिल एडवांस जमा है ....और एक बंद लिफाफा देकर चला गया .
भैया नें लिफाफा खोला तो उसमें से हज़ार हज़ार के दस नोट निकले और एक पत्र था ....जिसमें लिखा था ....." प्रिय उदय !....
तीन दिन बाद भेंट होगी ...तब तक तीर्थाटन करो !!"
और उदय भैया " हरिद्वार " भ्रमण को निकले .खूब घूमे खूब खाए पिये .और आज तीसरा दिन था और दिन में बारह बजे के पहले ....उन्हें होटल छोड़ देना था .उनके पास एक बैग था जिसमें तीन गरम कुर्ते पैजामा ,एक लोई ,एक कम्बल और कुछ आवश्यक सामान था .
बारह बज चुके थे ...भैया , कंधे पर बैग टांगे सड़क के किनारे खड़े थे .तभी एक शानदार कार चीं ....की आवाज के साथ उनके सामने रुकी .भाई ...चौंक कर दो कदम पीछे हटे .और कार का पिछला गेट खुला . एक अजनबी ....कीमती कपड़े पहने बैठा था और मुस्कुराते हुए उनसे अंदर बैठने का इशारा किया .और भैया को लेकर कार ये जा वो जा .
कार पूरी रफ़्तार से भागी जा रही थी .....हरिद्वार शहर पीछे छूट गया था .वर्दीधारी ड्राइवर गाड़ी चला रहा था .भैया के हाँथ में एक और लिफाफा था .भैया नें लिफाफा खोला ....उसमें एक बस का टिकट और हजार हजार के दस नोट थे और एक लाइन की चिट्ठी थी ....जिसमें लिखा था ...." गंगोत्री पहुँचो "
कार नें तेज़ी से एक वोल्वो बस को ओवरटेक किया और बस के आगे से ड्राइवर नें रुकने का इशारा किया
और कुछ देर बाद .....उदय भैया शानदार बस में लेटे सो रहे थे .
लगातार साधन बदलते .....तीसरे दिन भैया गंगोत्री पहुंचे .....और एक चाय की दुकान पर बैठ कर चाय पीने लगे .वे बैठे रहे और शाम होने लगी .जाने किस प्रेरणा से ...भैया नें एक पगडंडी पकड़ी और चल दिए .चलते चलते उनके पैर बर्फ में धसने लगे और थक कर भैया ....एक चीड के पेंड़ से टेक लगा कर बैठ गए .रात घिर आई थी .पूर्णमासी का चाँद अपनी आभा बिखेर रहा था और हर चीज़ दिन की तरह साफ साफ दिख रही थी .
बैठे बैठे भैया सो गए .......और आधी रात बीत जाने पर ....उदय भैया को लगा , जैसे उन्हें कोई जगा रहा हो .भैया की आंख खुली तो सामने एक " दिव्यमूर्ति "
दिगंबर अवस्था में खड़े थे और उनकी जटायें उनके घुटनों तक झूल रहीं थीं .और फिर ........
क्रमशः जारी ......

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