कितने रूपए ....???(भाग ...2 )

 गतांक से आगे .....
उदय भैया ....सीधे घर से निकले और रेलवे पटरी पर जाकर गर्दन रख दी .ट्रेन की व्हिसिल सुनाई दे रही थी और पटरियाँ हिलने लगी थीं .धड़धड़ाती ट्रेन ...भैया की ओर बढ़ रही थी .ट्रेन मुश्किल से पचास मीटर दूर रह गई कि अचानक उदय भैया ....पटरी से उठ कर खड़े हो गए ....और बड़बड़ाए ...' जब मरना ही है , तो ठीक से मरो '. और ........जा कर प्लेटफार्म पर खड़े हो गए .कुछ देर बाद पता नहीं किस ट्रेन के स्लीपर कोच की सबसे ऊपर की बर्थ पर ....उदय भैया लेटे थे और चिरपरिचित मुद्रा में पैर का अंगूठा हिला रहे थे ....कुछ देर बाद वे गहरी नींद में सो गए .
तीसरे दिन ट्रेन ...हरिद्वार पहुंची .
" हरि की पैड़ी " उस समय सुनसान थी .सीढ़ियों पर बैठे .....उदय भैया घुटनों में मुँह छिपाए .....रो रहे थे .
रोते रोते हिचकी बंध गई .उसी समय किसी नें भैया के कंधे पर हाँथ रखा . एक ' साधु बाबा ' खड़े ...भइया के आँसू पोंछते हुए कह रहे थे ....जाओ नहा कर आओ ! मैं यहीं बैठा हूँ .
कुछ देर बाद ...एक शानदार होटल के रेस्टोरेंट में उदय भइया बैठे शानदार भोजन का आनंद ले रहे थे और ' साधु बाबा ' उनके सामने बैठे थे ...भोजनोपरांत ' बाबाजी ' उदय भैया के साथ लॉबी में जाकर बैठे .आरामदायक सोफे पर बैठते ही ....उदय भैया की आँखे नींद से बोझिल होने लगीं और वे गहरी नींद में सो गए .
जब उनकी आंख खुली तो शाम के पांच बज रहे थे .उदय भैया झटके से उठे और चारो तरफ देखने लगे .इतने मैं ...सूट पहने और टाई लगाए एक नौजवान ...
....उदय भैया के पास आया और उनसे बातें करने लगा .
होटल के शानदार कमरे के शानदार बेड पर बाए पैर के घुटने पर दायाँ पैर चढ़ाये ....अपने दोनों हाँथ सिर के नीचे रखे ....पैर का अँगूठा हिलाते ...उदय भैया
पंखा चलते देख रहे थे और बाबाजी के विषय में सोच रहे थे .
सुबह वे जैसे ही सो कर उठे .........
क्रमशः जारी .....
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Comments

Anil. K. Singh said…
कहानी अच्छी है लेकिन आगे क्या है जानने के लिए अभी और इन्तजार करना पडे़ गा। हमें भी कोई जल्दबाजी नहीं है।