निर्मल मन जन सो मोहि पावा (अध्याय -3 )

गतांक से आगे .....
....और दुर्जन नें झपट कर सांवले सलोने का हाथ पकड़ लिया ....और उसके अंदर एक विद्युत कौंध गई ...शक्ति का एक ऐसा प्रवाह कि दुर्जन मूर्छित हो गया .
जब उसे चेत हुआ तो उसका सिर सांवले सलोने की गोद में था और वे उस जीवनभर कठोर कर्म करने वाले दुर्जन को अपने पीताम्बर से पंखा कर रहे थे .....
महाभाग दुर्जन तत्काल उठ बैठे और उन मायापति के चरणों में सिर रख कर बोले ...
..." मुझे नहीं पता तुम कौन हो ?लेकिन अब मुझे संसार में कुछ नहीं चाहिए .मैं अब यहीं रहूँगा और जिस दिन तुम्हारे दर्शन न हुए ...उसी दिन प्राण त्याग दूंगा ." 
भक्तवत्सल अहैतुक कृपालु भगवान श्री कृष्ण नें स्वयं अपने हाथों से गाय दुही ,बलराम जी फल लेकर आए और अपने हाथों से ....दुर्जन !!!को फल खिलाया और दूध पिलाया .
दुर्जन सिंह का ह्रदय परमानन्द से पुलकित हो रहा था .उसे ऐसा आनंद कभी प्राप्त नहीं हुआ था .
निःशेष कल्मष और इच्छा रहित दुर्जन परमानन्द में निमग्न थे और भगवान अपने सखाओं के साथ उसकी कुटिया तैयार कर रहे थे .
अब कन्हैया जाने को थे और दुर्जन से अनुमति मांग रहे थे .....अब दुर्जन दिन निकलने के पूर्व स्नान कर आसन पर बैठ जाते ..कन्हैया बाल  गोपालों के साथ कभी अकेले ...प्रतिदिन आते और साथ में माखन मिश्री ..दही दूध ..मोहनभोग और जाने क्या क्या लाते .और दुर्जन को बड़े प्रेम से भोजन कराते .
दुर्जन अंदर बाहर से तृप्त थे ..उनके जैसा महाभाग्यशाली व्यक्ति और कौन होगा ?इस प्रकार प्रतिदिन भगवान से भोग प्राप्त करते ...
...हुए ,दुर्जन को एक वर्ष व्यतीत हुआ...अब उन्हें परमज्ञान प्राप्त हो चुका था .
एक दिन दुर्जन को विचार आया ....' मेरे गुरुदेव तो वे पंडित जी हैं ...जिनके कारण परमात्मा स्वयं मेरे समीप आए .मैंने उनसे वादा किया था , यदि मुझे कुछ मिला तो तुम्हे भी हिस्सा मिलेगा ".
 यह विचार आते ही दुर्जन बेचैन हो गए .
उस दिन जब कान्हा आए तो तो दुर्जन बोले .....
...हे ! कान्हा  मैं अपने गुरुदेव का दर्शन करना चाहता हूँ .यदि आपकी आज्ञा हो तो कर आऊं ?
ठीक है जाओ ....कान्हा बोले .
लेकिन मेरे लौटने पर आप मुझे मिलोगे न ?
अरे दुर्जन ! मैं तुमसे भिन्न कहाँ हूँ ...तुम कभी भी कहीं भी मुझे याद करोगे ...मैं उपस्थित हो जाऊंगा .
और दुर्जन ..पंडित जी से मिलने चल पड़े .पंडित जी कुदाल से अपने खेत की गुड़ाई कर रहे थे ...
दुर्जन को देखते ही वे कुदाल छोड़ कर भागे ....
दुर्जन नें उन्हें दौड़ा कर पकड़ा और पंडित डर के मारे ...थर थर कांपने लगे और सोचने लगे .......
.." ..इस दुष्ट को एक काल्पनिक स्थान का पता बता कर मैंने भेजा ..अब ये लौटा है .इसे कुछ मिला न होगा ...अब मेरे प्राण नहीं बचेंगे ." 
और दुर्जन ' हे गुरुदेव ' कह कर पंडित जी के चरणों में गिर पड़े .पंडित जी आशर्यचकित हो कर देखते रहे और कुछ ही देर में ...दुर्जन सिंह नें अपनी सम्पूर्ण " कृष्ण कहानी " उन्होंने सुना दी .
पंडित जी का मुख आश्चर्य से खुला रह गया ...
...और वे बोले ...क्या तुम सच कह रहे हो ?
दुर्जन बोले ... क्या आपने उनको कभी नहीं देखा 
पंडित जी बोले ....नहीं !!
तो क्या बिना देखे ...बिना जाने कथा कहते थे ?
पंडित जी कुछ नहीं बोले .
पंडित जी खेत में ही कुदाल छोड़ वहीं से दुर्जन के साथ चल दिये और लक्षित स्थान पर पहुँचे .
दुर्जन सिंह ने कहा ....गुरुदेव ! उनके आने का समय हो गया है ,अभी आप यहाँ नए आदमी हैं .कान्हा को आपके विषय में बता कर आपको बुला लूँगा तब तक आप यहीं कुटिया में विश्राम कीजिए .
निश्चित समय पर कान्हा आए और दुर्जन नें प्रार्थना की ...' प्रभु ! मेरे गुरुदेव आए हैं ...यदि आपकी अनुमति हो तो बुला लूँ !!
सहमति पाकर दुर्जन ..पंडित को बुला लाये .
पंडित जी किंकर्तव्यविमूढ़ थे क्योकि दुर्जन हवा में हाँथ घुमा घुमा कर जाने किस से बातें किये जा रहे थे ?कभी भूमि पर लोट जाते ,कभी किसी से लिपटने का अभिनय करते .उनको लगा अवश्य इस मूर्ख का दिमाग ख़राब हो गया है और मैं नाहक ही इसकी बातों में आकर यहाँ चला आया .तभी दुर्जन बोले ...' गुरुदेव आप तो इन्हें पहचानते ही होंगे ..यही तो हैं जिनकी कथा आप सुनाते हैं !!!
पंडित जी बोले .." दुर्जन !मुझे लगता है आप विक्षिप्त हो गए हैं .अरे !यहाँ कोई है ही नहीं ..
...पता नहीं आप  किससे बातें किए जा रहे हैं ?"
दुर्जन सिंह नें अपने आराध्य को देख कर कहा ...
...." प्रभु ! ये कैसी माया है ?यदि मेरे गुरुदेव को आप नहीं दिखेंगे ,तो ये मुझे झूठा मान लेंगे ." 
भगवान बोले ..."दुर्जन !ये पंडित जी जीवन भर मेरी कथा कहते रहे लेकिन इनका सम्पूर्ण ध्यान केवल दक्षिणा पर ही रहता था ...ये प्रतिदिन शास्त्रसम्मत विधि से मेरा पूजन करते हैं ....भोग 
लगाते हैं ..लेकिन इनका मन निष्कलुष नहीं है .
यद्यपि तुम डाकू थे परन्तु सरलहृदय ,स्पस्टवादी और सत्यवादी थे .तुम्हारे सहज विश्वास नें तुम्हे मेरा दर्शन कराया .अभी पंडित के कषाय कल्मष शेष हैं ....ये सीधे मेरा दर्शन नहीं कर सकते !!!
तुम पंडितका एक हाँथ पकड़ कर ...दुसरे से मुझे स्पर्श करो ...और फिर पंडित का वही हाल हुआ जो दुर्जन का हुआ था .भगवान का दर्शन कर वे कृतकृत्य हुए और कभी भगवान के कभी दुर्जन के चरणों में लोटने लगते .और पंडित घर वापस नहीं लौटे .
कालांतर में यही दुर्जन सिंह ...महाज्ञानी मध्वाचार्य के नाम से विख्यात हुए .
(समाप्त )





Comments

Anil. K. Singh said…
कथा बहुत अच्छी है। भक्ति भाव कोप्रबल करने वाली है। अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है। बहुत अच्छा।