ढकोसला

क्या लिखूं ?कैसे लिखूं ?और क्योँ लिखूं ?आज कुछ समझ में नहीं आ रहा .ऐसा लगता है जैसे लिखने को कोई विषय ही नहीं बचा .जाने कैसे स्वामी विवेकानंद
...." शून्य" पर घंटो बोलते रहे और ऐसा बोलते रहे कि लोग सुनते रहे . मेरे अंदर आज इतना बड़ा शून्य पैदा है कि बोलना तो दूर मैं कुछ लिख भी नहीं पा रहा हूँ .
क्या इसलिए लिखूं कि कुछ लिखना है .कुछ लिखने के लिए लिखना ....तो लिखना नहीं हुआ .जहाँ देखो एक " ढकोसला " ही दिखता है .
साहित्य में " ढकोसला " !!!
तथाकथित सोशल मीडिया में " ढकोसला " !!!
समाज में " ढकोसला " !!!
परिवार और समाज में " ढकोसला "!!!
अपने अंदर झांकता हूँ तो वहाँ भी एक " ढकोसला "
अभी अभी शारदीय नवरात्रि सम्पन्न हुई .चारो तरफ घ्वनि प्रदूषण फैला रहा .न रात में नींद न दिन में चैन .
नदियों में पानी की जगह मूर्तियां ही मूर्तियाँ दिखाई पड़ी .नौ दिन व्रत रखने वालों ने इतना खाया कि उस पैसे से महीने भर साधारण भोजन कर सकते थे .खूब नाचे .रोड जाम की .डांडिया किया .अंतिम दिन किसी किसी ने दारू भी पी और नशे में झूमते ....जिस देवी को नौ दिन पूजा उसे नदी में फेंक आए .....उनका सम्मानजनक विसर्जन तक न किया .
सौ सौ मीटर पर पूजा पंडाल ...ये मेरी मातारानी ...
ये तेरी मातारानी .ये मूर्ति उससे बड़ी ...वो मूर्ति उससे सुन्दर .ये पंडाल दस लाख का ...वो वाला बीस लाख का ....आखिर ये ढकोसला क्यों ?क्या अर्थ है "भगवती " को इस तरह बेवकूफ बनाने का .
क्या सिद्ध करना चाहते हैं ये " भक्त " कि जिसका डी जे  तेज बजेगा ...उससे देवी खुश होंगी ?
पूजा पाठ और प्रवचन के नाम पर इतना दिखावा क्यों ???इतना ढकोसला क्यों ???
धर्म की स्वतंत्रता के नाम पर ...ध्वनि प्रदूषण ...जल प्रदूषण और सबसे खतरनाक वैचारिक प्रदूषण फैलाना ....इससे बड़ा " ढकोसला " क्या हो सकता है भला ????

Comments

Anil. K. Singh said…
लाखों-करोड़ों लोग हुड़दंग कर रहे हैं। उसी में इक्के-दुक्के अच्छे भक्त भी बन सकते हैं। विसर्जन का उपाय सोचना चाहिए। सुधार-सुझाव जारी रहना चाहिए।