नशा शराब में होता तो नाचती बोतल !!!
मित्रों !आज जिन घटनाओं का मैं वर्णन करने जा रहा हूँ ,उनका कालखंड 1978 से 1985के बीच का है .
उन दिनों मैं कानपुर शहर में रहता था .मैं यही पैदा हुआ और बचपन से जवानी की शुरुआत तक का समय यहीं गुजरा .मेरे पिताजी सरकारी कर्मचारी थे और हम ' कानपुर विकास प्राधिकरण ' की एक कॉलोनी में रहते थे .उस कॉलोनी में कुल चौबीस फ्लैट थे ....आमने सामने बारह बारह की संख्या में .
मेरे फ्लैट के ठीक दाईं तरफ ...मेरे बिलकुल पड़ोस में ' श्री दिनेश चंद्र बाजपेई जी ' सपरिवार रहते थे .हमारे आंगन की दीवाल एक थी .उनके बड़े पुत्र मेरे ही नामराशि थे लेकिन सभी उन्हें ' बच्चा ' कह कर बुलाते थे .वह मेरी ही उम्र का था ...मेरा दोस्त था और मेरे ही साथ एक ही कक्षा और एक ही विद्यालय में पढ़ता था .' बच्चा ' से दो साल छोटी थी ...' रन्नो '. तीसरी बेटी जो ' रन्नो ' से एक साल छोटी थी ...उसका नाम ' पुच्चू ' था ...जो अक्सर आंगन की दीवाल फांद कर मेरे बाथरूम से शैम्पू चुरा ले जाती थी लेकिन कभी पूरी बोतल नहीं ले जाती थी ...जितनी जरूरत होती उतना शैम्पू बालों में चुपड़ जैसे कूद कर आती वैसे ही चली जाती थी .तीसरी सबसे छोटी ' जॉनी ' मर्दाना वेश में रहने की शौक़ीन और उसके बाल एकदम तांबे के रंग के ....वो पेट्रोल सूँघने की एडिक्ट थी .सबसे छोटा ' आलोक ' जो उस समय गोद में था .
बाजपेई जी ....कानपुर महानगर पालिका में क्लर्क थे साथ ही अतिक्रमण हटाओ अभियान की लोकल कमान भी उनके हाँथ में थी .पैसे की कोई कमी नहीं थी और उनकी दसो उँगलियाँ घी में थीं .साईकिल से चलने वाली हमारी कॉलोनी में वे ही पहली बार मोपेड लेकर आए ....हीरो मैजेस्टिक मोपेड .
घर के पिछवाड़े उन्होंने बड़े ही शौक से एक मंदिर बनवाया था .उस मंदिर की छवि आज भी मुझे याद है .गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तकें पढ़ने के शौक़ीन थे .कल्याण ...नाम की पत्रिका से मेरा प्रथम परिचय वहीं हुआ था .
' बच्चा ' पढ़ने में ठीकठाक थे और हमारे मित्र तो थे ही .इसी बीच धीरे धीरे बाजपेई जी की आमदनी बढ़ने लगी ..हराम का पैसा आने लगा तो ' ऐब ' भी आने लगे और वे ' शराबी ' होने लगे .शराब के महंगे ब्रांड्स की खाली बोतलें उनके घर के अगवाड़े पिछवाड़े दिखने लगीं .फिर आए दिन शराब पीकर हंगामा होने लगा और बाजपेई जी दारू पीकर परिवार में मारपीट करने लगे .
बना बनाया ' बासमती चावल ' जो तमाम लोग खाने को नहीं पाते , नाली के रास्ते बहने लगा .सर्दियों में सुबह जब उनका घर बुहारा जाता तो 'मूंगफली और बादाम ' के छिलकों से भरी टोकरी बाहर फेंकी जाती थी .टेपरिकार्डर की तेज आवाज में ...होली दीवाली जैसे त्योहारों पर ....दारू के नशे में रातभर नाचना ...
....बाजपेई जी का प्रिय शौक बन गया .हद तो तब हो गई ...जब बिना पूजापाठ किए ' पानी ' भी न पीने वाले ' बाजपेई जी ' .....सुबह उठ कर सबसे पहले
' शराब ' पीने लगे और एक दिन शराब के नशे में पूजा करते हुए ,उन्होंने ' मंदिर ' में ही पेशाब कर दिया .
एक दिन तो वे अपने नजदीकी रिश्तेदार की ' बेटी ' को ही भगा लाए और मोहल्ले में हंगामा हो गया .उनके रिश्तेदार बीचबचाव में आए तो ' बाजपेई जी '
चाकू लेकर उनके पीछे दौड़े और वे हमारे घर में घुस गए .पता नहीं क्यों ?...शराबी होने के बावजूद ...बाजपेई जी , हम लोगों का बड़ा लिहाज करते थे ,
वे हमारे घर में नहीं घुसे और रिश्तेदार महाशय की जान बच गई .
नशे की हालत में बाजपेई जी का तकियाकलाम था ..
...." नशा शराब में होता तो नाचती बोतल " .फिर उनकी फितरत या कहिए भाग्य परिवर्तन के कारण , उनकी आमदनी बंद हो गई और नौकरी पर संकट के बादल छा गए .
' बच्चा ' की पढाई छूट गई . ' रन्नो ' के विषय में ...मैं जानबूझ कर कुछ नहीं कहना चाहता .' पुच्चू ' का हाल नहीं पता .और ' जॉनी ' सुनते हैं ड्रग एडिक्ट हो गई .और एक खुशहाल परिवार " शराब " की नामुराद बोतल में समा गया .मेरे कानपुर से आने तक तो स्थिति दयनीय थी ...अब तक तो बाजपेई जी मरमरा गए होंगे ....और लोग कैसे होंगे कुछ नहीं पता ....
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