झोला तो लेते जाओ ! सामान किसमें लाओगे ?

 श्री लालाराम जी , समुद्र के किनारे ...बेहद सुरक्षित और शांत इलाके में ....स्थित अपने शानदार आउट हाउस के लॉन में ....फ़व्वारे के किनारे ,एक बड़ी छतरी के नीचे ....एक आरामकुर्सी पर बैठे ...चाय पी रहे थे .उनके सामने ,उनकी धर्मपत्नी भी एक कुर्सी पर बैठी चाय की चुस्की ले रहीं थीं .बड़े लॉन में हिरन के दो बच्चे ...हरी मखमली घास पर कुलांचे भर रहे थे और फ़व्वारे के चारो तरफ भरे साफ पानी में दो बत्तखें तैर रहीं थीं .बसंत का मौसम था ,सुबह का समय और चिड़ियों के कलरव के बीच सुन्दर माहौल में ....लालाराम अपनी पत्नी से ....बातें कर रहे थे .
लालाराम जी स्वयं एक लब्धप्रतिस्ठित साहित्यकार थे ,जो वे पचास साल की उम्र के बाद बने थे .इस समय उनकी उम्र साठ साल थी और इन दस सालों में उनके जमीन से आसमान की बुलंदी तक पहुंचने की कहानी ....बड़ी दिलचस्प थी .
लालाराम उन दिनों बेरोज़गार हो गए थे .बड़े लाड़प्यार से पले थे ...सो कोई शारीरिक परिश्रम वाला काम करना , उनके बस की बात नहीं थी .बहुत से काम धंधे किए ....पैसा भी कमाया लेकिन बचा नहीं पाए .अंत में दो दुकानें कीं और यही मामला फेल हो गया .
और व्यापार में घाटा उठा ....वे खड़े पैर बेरोजग़ार हो गए .बच्चे बड़े हो रहे थे और खर्चे बढ़ते जा रहे थे .और धीरे धीरे लालाराम ....डिप्रेशन में चले गए .डाइबिटीज़ के मरीज़ थे ...सो बीमार रहने लगे .इसी बीच उनके मन में लिखने का विचार आने लगा .लालाराम को ईश्वर की कृपा से . ...एक स्मार्टफोन प्राप्त हुआ .और लालाराम उस मोबाइल फोन में खो गए .और एक दिन यू ट्यूब पर उन्हें एक आइडिया मिला .लालाराम ने झटपट अपनी वेव साइट बनाई और कभी भी हिंदी में टाइप न करने वाले ...लालाराम नें छह घंटे में अपनी पहली कहानी लिखी .धीरे धीरे उनकी गति बढ़ने लगी और जैसे जैसे उनकी गति बढ़ती गई ....देश विदेश में उनके पाठकों की संख्या बढ़ती गई .
इस तरह बिना कुछ पाए ....लालाराम , लिखते रहे ..लिखते रहे .और एक दिन एक ऑनलाइन पब्लिशिंग कंपनी के जरिये ....उनकी ' कहानियों का एक संग्रह ' प्रकाशित हो गया , जो दिनोदिन लोकप्रिय होता गया और जिस दिन उनके ' कहानी संग्रह ' को अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई ....उसी दिन उनके ब्लॉग के जरिए उन्हें पचास हजार डॉलर मिले .
अब तक लालाराम जी के सारे दुःख दूर हो चुके थे .
आये दिन साहित्य सम्मेलनों में सम्मान समारोह होने लगे .कुल मिलाकर लक्ष्मी जी की उन पर ऐसी कृपा हुई कि लालाराम जी सोच नहीं पाते थे कि पैसा कहाँ खर्च करें ? बच्चे सेटल्ड हो गए थे .लालाराम दुनिया घूम चुके थे और आज अपनी पत्नी के साथ अपने बीते दिनों की चर्चा कर रहे थे .इसी बीच चाय पी चुकी उनकी पत्नी उठी और बोली ..." आज घूमने क्यों नहीं गए ? कितनी बार कहा है सुबह सुबह घूमने जरूर जाया करो .अभी पिछले हफ्ते शुगर का फास्टिंग लेवल 170 था .तुम तो चाहते नहीं मैं कभी खुश रहूँ .
जाओ सामने कम से कम दो किलोमीटर घूम कर आओ . लौटते समय दूध और शब्जी लेते आना .शब्जी में टमाटर और अदरक जरूर ले लेना .आलू मॅहगा होने वाला है ...पूछ लेना एक बोरा आलू का क्या रेट है ?
लालाराम ...अपना सिर पकड़ कर सोच रहे थे , .....
' भगवान ! आपने सब कुछ बदल दिया लेकिन इसका स्वभाव नहीं बदल पाए .क्या मेरी किस्मत में जिंदगी भर पत्नी की डांट खाना ही लिखा है ? न खुद चैन से रहती है और न रहने देती है .सोच रहा था शांति से आज की कहानी लिखूंगा ....अब ये देखो !!!
और वे चुपचाप उठ कर टहलनें चल दिये . तभी पत्नी पीछे से चिल्लाई ...." अरे ! झोला तो लेते जाओ . सामान किसमें लाओगे ?"

Comments

Anil. K. Singh said…
यही दिन हम देखना चाहते हैं जल्दी से आ जाता तो अच्छा रहता। देरी से आये गा तब भी स्वागत करें गे। बहुत अच्छा।