सदा खुश रहो !!


मित्रों !
आज तक मानसिक तनाव और अवसाद  (डिप्रेशन )  विषय पर अनगिनत शोध हुए ,लेख लिखे गए ,तमाम स्थानों पर इससे निपटनें के प्रैक्टिकल तरीके सिखाये जा रहे हैं और इसी ब्लॉग में इस विषय पर तमाम लेख मिल जायेंगे ....इस विषय पर सलाह देने वालों की कोई कमी नहीं है .इतना सब होते हुए भी यह समस्या दिन प्रतिदिन विकराल रूप धारण करती जा रही है .
तरह तरह की दुर्घटनाएँ ,आत्महत्याएं और जीवन की अनचाही परिस्थितियां इस " तनाव " की ही देन हैं .किसी आपराधिक घटना के घट जाने पर लोग दोषी व्यक्ति को अपराधी घोषित कर देते हैं 
कानून की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत ...न्यायालय भी उसे दोषी मान कर दंड देता है .
लेकिन दोषी व्यक्ति नें ...अमुक अपराध किया तो क्यों किया ? इस क्यों का कोई निश्चित उत्तर मिलता नहीं .
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ...आने वाले कुछ ही समय में शारीरिक रोगों के अस्पतालों से अधिक संख्या ....मानसिक रोग के अस्पतालों की होगी .
ऐसा क्यों है ? यह तनाव पैदा क्यों होता है ?इसका विश्लेषण करने पर पता चलता है कि       " तनाव " एक प्राकृतिक क्रिया है और प्रत्येक जीवित प्राणी में यह पाया जाता है .
जीवन ....सहजता की मांग करता है .एक छोटे बच्चे को भी तनाव में देखा जा सकता है .और बूढ़े तो कभी खुश दिखते नहीं ...केवल खुश होने का कभी कभी अभिनय करते हैं .
तनाव और अवसाद से निपटने का एक ही उपाय है ...." खुश रहो " 
क्योंकि ख़ुशी किसी परिस्थिति की मोहताज नहीं .खुश रहने के लिए धन और सुविधाओं की जरूरत नहीं .कई लोग धनी और सुविधासम्पन्न होते हुए भी ...तनावग्रस्त रहते हैं .कई लोग विपन्नता में भी खुश रहते हैं .तो मित्रों ..खुश रहने का निर्णय व्यक्ति का स्वयं का होता है .खुश रहना ...स्वयं का चुनाव है .परिस्थितियां बदलती रहती हैं .सुखदुःख आते जाते हैं .मान अपमान होता रहता है ,लेकिन फिर भी हर परिस्थित में खुश रहना व्यक्ति के अपने आधीन है .जिसने            " ख़ुशी "का चयन किया उसे कोई ' दुःखी '
नहीं कर सकता !! और जिसने " दुःखी " रहने का निर्णय किया उसे कोई " खुश"  नहीं कर सकता .
सुख ..दुःख ..लाभ ..हानि ..जय ..पराजय ..मान और अपमान में जो समभाव अर्थात सहजता से रहता है ...वही योगी है ......ऐसा " गीता " में लिखा है .

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