सबसे बड़ा सच !!!

आज मैं जब पूजा पाठ से निवृत्त हो कर बैठा तो मेरे शांत मन में अचानक एक प्रश्न कौंध गया कि 
जब एक दिन इस संसार से चले ही जाना है तो हम खामखां क्यों इतना बवाल पाले बैठे हैं ?परिवार के लोगों की इच्छा और अपनी इच्छा पूरी करने के दौरान ...हम क्या क्या नहीं करते ?जाने कितने लोगों के साथ कौड़ी कौड़ी की बेईमानी करते हैं .चोरी करते हैं .झूठ बोलते हैं .बड़ा घर ,बड़ा बैंक बैलेन्स ,बड़ी गाड़ी ....बनाते बनाते एक दिन खाली हाथ दुनिया से चले जाते हैं .
जिस बड़े घर को बनवाने के लिए हमनें इतने पापड़ बेले उसी घर में प्राण निकलने के बाद एक पल भी घर के अन्य लोग नहीं रखते .बिस्तर से उतार कर जमीन पर लिटा देते हैं .और आने जाने वाले ,घर वालों से कहते हैं ...जल्दी अंतिमसंस्कार की तैयारी करो !! ये हम प्रतिदिन देख रहे हैं और निश्चित ही हमारे साथ भी ऐसा ही होगा ...!!!!वो भी तब जब सब कुछ ठीक ठाक हो और हम मन मुताबिक पूरी जिंदगी जी लें .
इतना जानते हुए भी क्यों हम इस मायाजाल में उलझे हैं ? कहाँ से हम इस धरती पर आए और कहाँ चले जायेंगे ?कुछ भी नहीं पता .हर धर्म इसकी अलग अलग व्याख्या करता है .
और सौभाग्य से जिस दिन इसका उत्तर मिल जाता है ....उसी समय व्यक्ति परमज्ञान को उपलब्ध हो जाता है .फिर न कुछ जानना शेष रहता है ....न मानना और न ही पाना .
भगवतगीता कहती है ....." हजारों में कोई एक इसे आश्चर्य से देखता हैं .उनमें भी कोई एक इसे जानने का प्रयास करता है .उन प्रयास करने वालों में भी कोई एक ...जान पाता है और बहुत से ऐसे हैं जो जान कर भी नहीं जानते !!!!." 
जो जानने का प्रयास कर रहे हैं ...वे निश्चित ही साधुवाद के पात्र हैं .
एक साधारण सा उदहारण है ...रेल यात्रा का .हम सभी नें कभी न कभी रेल यात्रा की होगी .जिस श्रेणी का हमनें टिकट लिया है ...उसी में हमें यात्रा करनी होती है .इसी ट्रेन में प्रथम श्रेणी  वातानुकूलित शयनयान है जिसमे बहुत से महानुभाव स्वर्गिक सुख सुविधाओं का सुख भोगते यात्रा करते हैं .और इसी ट्रेन में साधारण अनारक्षित कोच है जहां भूसे की तरह भरे यात्री बड़े कष्ट में यात्रा पूरी करते हैं .पूरी ट्रेन को खींचने वाला इंजन एक ही है .टी टी ई घूमते रहते हैं ...गलत या बे टिकट यात्रियों की तलाश में .मिल जाने पर क्या होता है ?....पता ही होगा !!!
बस एक ही समानता है ....!!! स्टेशन आ गया तो उतरना ही पड़ेगा .चाहे ए सी में हों या जर्नल में .चाहे सहयात्री से मित्रता हो या दुश्मनी .चाहे ख़ुशी ख़ुशी यात्रा कटे या दुःख उठा कर .एक दिन सहयात्री को छोड़ कर अपने स्टेशन पर उतरना ही पड़ेगा .फिर न कोई फ़ोन करेगा न चिठ्ठी लिखेगा ...........
आप सोच रहे होंगे ..ये कैसी नकारात्मक चर्चा है .
मित्रों इससे बड़ी सकारात्मक चर्चा कोई हो ही नहीं सकती .थोड़ा विचार करें ....यही एक मात्र सत्य है बाकी सब मन बहलाने का साधन मात्र है .

Comments

Anil. K. Singh said…
बात चर्चा तक ठीक है। और आगे न बढि़ये गा। नहीं तो गौतम बुध्द की तरह घर से निकल जाओगे और हम लोग ढूंढते रह जाये गे।