क्या इसी को भाग्य कहते हैं ?


मित्रों ,कल मैं अपने एक पुराने मित्र से लगभग बारह साल बाद मिला .बीच बाजार मैंने उन्हें तुरंत पहिचाना और साथ में कुछ समय बिताने की गरज से एक चाय की दूकान पर जा बैठा .
सुख दुःख चर्चा के दौरान मैंने उनसे पूछा ..." कहाँ रहते हो भाई !और क्या करते हो ?" उन्होंने बताया कि वे दिल्ली में हैं और कुछ नहीं करते .मुझे आश्चर्य हुआ तो मेरा मनोभाव समझ कर वे बोले ....मैं सच में कुछ नहीं करता .
मेरी उनकी जानपहचान सालों पहले जब उनसे हुई ,उस समय वे एक फोटोग्राफी की दुकान करते थे ,शादी व्याह में वीडियोग्राफी का काम भी वे करते थे .
कुछ समय बाद धंधे में मंदी आने लगी और अंततः दुकान बंद हो गई ....उस दौरान हमारी कई मुलाकातें हुई ....तब ये किसी जगह चाऊमीन का ठेला लगाने की सोच रहे थे .इसके बाद जिंदगी मे आए तमाम परिवर्तनों के कारण हमारी मुलाकातें बंद हो गईं .
और आज बारह साल बाद हम मिल रहे थे .अपने बीते सालों के बजाय उन्होंने वर्तमान की चर्चा पसंद की और इस क्रम में इतना ही पता है कि वे " नई दिल्ली " की किसी " पॉस कॉलोनी " में " एक बंगले " में रहते हैं .दिन भर टी वी देखते हैं .बंगले का खानसामा भोजन नाश्ते की व्यवस्था कर चला जाता है और एक नौकरानी बर्तन झाड़ू पोछा करके चली जाती है .इनको वहाँ रहने खाने सोने के लिए ....उस बंगले का मालिक तीस हजार रूपए देता है .उनकी सेवा के लिए ये दो नौकर और राशन पानी बिजली की व्यवस्था तो थी ही .कामधाम कुछ नहीं .
मैं कहानी सुनता रहा और टुकुर टुकुर उनका मुँह देखता रहा और सोचता रहा ....क्या इसी को भाग्य कहते हैं ?

Comments

Anil. K. Singh said…
कुछ काम करो, कुछ काम करो।
यहां दुहराया गया है। कुछ करने के साथ जो अनुभव मिलता है । उससे आप वंचित हो सकते हैं। यह भाग्य नहीं है।