वक्त का अंतर

मित्रों !....
आज मैं आपको ऐसी कहानी सुनाऊंगा ...जो मैंने नहीं लिखी .इस कहानी को सालों पहले मैंने एक स्वविकास की पुस्तक में पढ़ा था .न तो मुझे उस किताब का नाम याद है और न ही लेखक का .हाँ ...इतना याद है कि लेखक के अनुसार यह विश्वयुद्ध की सत्य घटना है .तो कथा कुछ यों है कि ..........
एक मनोवैज्ञानिक चिकित्सक थे .युद्धबंदी के रूप में हिटलर की फौज के द्वारा पकड़े गए . बाद में उनका पूरा परिवार भी पकड़ लिया गया .और उन सबको एक " यातना शिविर " में रखा गया .जहाँ सभी को कोयला खोदना पड़ता था .हर व्यक्ति का उसकी उम्र और वजन के हिसाब से कोयला खोदने का " कोटा "
निर्धारित था .इसके बदले उन्हें केवल भोजन दिया जाता था और नियत कोटे से कम कोयला खोदने पर "खुराक " में कटौती कर दी जाती थी .धीरे धीरे सभी के कपड़े चीथड़ों में बदल गए .उनका परिवार एक एक कर उनकी आँखों के सामने मरता गया .जो भी सदस्य मर जाता ....उसे गैस चेम्बर में जला दिया जाता ....और फिर डॉक्टर साहब को उस "राख " को फेंकने का काम सौंपा जाता था .
दस साल बीत गए ....डॉक्टर साहब जाने कैसे जिन्दा थे .वे सम्पूर्ण नग्नावस्था में अपने चेंबर के सामने बैठे थे ...चारो तरफ दूर दूर तक कड़ा पहरा था .डॉक्टर के जिन्दा रहने की सिर्फ एक वजह थी ...." सकारात्मक सोच " .
हाँ मित्रों !! याद आ गया .पुस्तक का नाम है " पावर ऑफ पॉजिटिव थिंकिंग " और लेखक हैं .." सर नॉर्मन विन्सेंट पील " .लेकिन लिखा इस कहानी को मैंने अपनी शैली में है .
हाँ तो डॉक्टर साहब नें अपनी एक अलग मानसिक दुनिया बसा ली थी .वे रहते जेल में थे लेकिन अपने आप को जेल में समझते नहीं थे .उनकी कल्पना थी कि वे अमेरिका के मशहूर शहर ...न्यूयार्क में "डॉक्टर " हैं .


उनकी खूबसूरत सेक्रेटरी कम बीवी है .और वे स्वतन्त्र और शानदार जीवन व्यतीत कर रहे हैं .अपनी कल्पना में ...डॉक्टर साहब नें अपनी सोच को इतना "रमा "दिया था कि उन्हें " सत्य और कल्पना " में केवल "वक्त का अंतर " दिखता था .
और एक दिन ....डॉक्टर साहब , साथी कैदियों के साथ खदान में कोयला खोदने गए .नियमानुसार शाम को कैदियों की खदान से वापसी पर गिनती होती होती थी .उस दिन भी गिनती हो रही थी .डॉक्टर साहब लाइन में दाए से बाए खड़े थे .गिनती करने वाला सिपाही कैदी नम्बर बोलता और उक्त नम्बर का कैदी दो कदम आगे खड़ा हो जाता था .गिनती करने वाला सिपाही गिन रहा था ....1.2.3.4........15.16.17
और तभी दूसरा सिपाही आया और उसने गिनती करने वाले से कुछ कहा .उसने ...दूसरे सिपाही को रजिस्टर पकड़ाया और चलता बना .अब नया सिपाही ...रजिस्टर हाँथ में लेकर नंबर बोल रहा था ...19.20.21.22.23.......और 18 नम्बर छूट गया .
और डॉक्टर गुफा के अंदर चले गए .....अब उनके पास 24 घंटे थे ...कोई नहीं जान पाएगा कल शाम से पहले कि 18 नम्बर लापता हो गया .सुनसान पाकर डॉक्टर साहब वहां से भागे और भागते रहे ...भागते रहे .रास्ते में युद्धग्रस्त इलाके से गुजरते हुए ....उन्होंने मरी हुई चिड़ियों का मांस खाया और गड्ढे का गन्दा पानी पिया .अंत में एक कोयला लदी मालगाड़ी में चढ़ कर वे पोलैंड और फिर फ्रांस यानी पेरिस पहुंचे .अंग्रेजी और फ्रेंच का उन्हें अच्छा ज्ञान था .....इस कारण उन्हें एक मशहूर होटल में वेटर की नौकरी मिल गई .
एक दिन उन्हें एक अमेरिकी परिवार की मेजबानी का अवसर मिला .उनकी योग्यता और बातों से प्रभावित होकर उस परिवार के मुखिया ने डॉक्टर साहब के सामने अमेरिका चलने का प्रस्ताव रखा और वे सहर्ष तैयार हो गए .
वे अब अमेरिका में थे .उन्हें वहाँ हूबहू वैसी ही सड़के और इमारतें दिखीं ....जो उन्होंने अपनी कल्पना में देखा था .कुछ समय बाद वे वैसे ही शानदार घर में रह रहे थे ...जैसा उन्होंने अपनी कल्पना में देखा था और उनकी खूबसूरत सेक्रेटरी कम बीवी भी थी .....और वे एक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक थे .......!!!!!!
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Comments

Anil. K. Singh said…
उनकी कल्पना साकार हो गयी। शायद उनकी एक कल्पना थी। हम लोग एक साथ हजारों कल्पनाएं कर रहे हैं। हम में उनमें यही अन्तर है।