और वे क्लास से बाहर चले गए


(प्रस्तुत कहानी ...मेरे बालपन की एक सुनहरी याद है जो मुझे आज याद आ गई .इसमें वर्णित पात्र एवं घटनाएँ पूरी तरह सत्य हैं )
बात 1981 की है .1981 से 1984 तक का समय मेरे बचपन और किशोरावस्था के संगम का सुनहरा समय था .मैं कक्षा छह में पढता था .अग्रिम पंक्ति में बैठने के लिए मैं कक्षा में झगड़ा कर लेता था .मेरी कक्षा लम्बाई में पूरब पश्चिम दिशा में थी ...और मैं पूर्व दक्षिण दिशा में ....सबसे आगे की बेंच पर अपने मित्र के साथ बैठता था . मेरे ठीक पीछे दो लड़कियां ....सुनीता और अर्चना बैठती थीं .
मेरे संस्कृत विषय के अध्यापक लम्बे ...दुबले पतले , दरम्यानी उम्र के एक कड़क और खडूस आदमी थे .बच्चों को मारने पीटने में वे कोई कंजूसी नहीं करते थे .संस्कृत के अलावा वे हमें गणित भी पढ़ाते थे ...रेखा गणित उन्हें विशेष प्रिय था .....और संस्कृत के रूप मुझे कभी याद नहीं होते थे .
अध्यापक महोदय लगभग प्रतिदिन संस्कृत के रूप सुनते और मैं रोज मार खाता ....वे कहते 60 अंश का कोण बनाओ और गाल पर तीन उंगलियों से इतना जोर से मारते कि उंगलियों की छाप उभर आती थी .
एक दिन अर्चना बोली ....." रोज मार खाते हो शर्म नहीं आती ?" 
" क्या करूँ मुझे रूप याद ही नहीं होते ." ....मैं बोला 
वह बोली ...." तुम एक काम करो ....अब जब भी दूबे (अध्यापक ) तुमसे रूप सुनाने को कहे ...तो तुम कहना ....लिख कर बताऊंगा !"
सो जब दूबे जी ने मुझे खड़ा किया तो मैंने कहा ...लिख कर बताऊंगा !
और जैसे ही अगले लड़के को उन्होंने खड़ा किया और उनका ध्यान मेरे ऊपर से हटा .....वैसे ही मैंने पलट कर ' अर्चना ' की और देखा . और उसने अपनी कापी के पीछे '' लिख दिया ".
पता नहीं कैसे उसे रूप तुरंत याद हो जाते थे और याद रहते भी थे !!......मैं चुपचाप जाकर ...जो भी
" वो लिखती " वही शब्द ब्लैक बोर्ड पर लिख देता .
इस तरह लगभग प्रतिदिन मार खाने वाला मैं ....अब प्रतिदिन मार से बच जाता था . और एक दिन हमारी " ये हरकत " पकड़ी गई और फिर ......
खड़ी हो जाओ ....एक कड़कदार आवाज गूँजी .
और बेचारी अर्चना ...सिर झुका कर खड़ी हो गई 
तो ये बात है ...तभी मैं सोचूं कि अचानक ये गधा घोड़ा कैसे बन गया ! तो तुम हो इसकी मददगार .अब तुम दोनों एक दूसरे को दस दस थप्पड़ लगाओ ..........दूबेजी क्रोध से कांपते हुए बोले .
अर्चना नें मना किया लेकिन अध्यापक महोदय के दबाव में उसने मुझे धीरे से एक चपत लगाई .
ऐसे मारा जाता है ?......और दूबेजी मेरी ओर घूम कर बोले ....बताओ इसे कैसे मारते हैं ? 
और मैंने स्पष्ट मना कर दिया .
इसके बाद दुबेजी ने एक झन्नाटेदार थप्पड़ अर्चना को रशीद किया और मेरा पारा चढ़ गया . जैसे ही दूसरा थप्पड़ वे मारने चले कि मैंने मजबूती से उनका हाथ पकड़ लिया और आग्नेय नेत्रों से उन्हें देखने लगा . दुबेजी आवाक मेरा मुँह देखने लगे और चुपचाप क्लास से बाहर चले गए .

Comments

Anil. K. Singh said…
आपका बार-बार बचपन की याद दिला देते हैं। बहुत अच्छा।