होइहैं सोइ जो राम रचि राखा

पंडित जी ...अपने बरामदे में तख़्त पर बैठे चन्दन घिस रहे थे .ठाकुर जी को नहलाकर ...उनको चन्दन लगा कर और उनका पूजन कर ...पंडित जी रामायण का पाठ करने लगे .....
होइहैं सोइ जो राम रचि राखा !
को करि सकत बढ़ावहि शाखा !!
तभी उनकी पत्नी बड़बड़ाते हुए घर से बाहर आईं और पंडित जी को क्रोधपूर्ण दृष्टि से देखते हुए अनाप सनाप बकने लगीं .पंडित अपनी पूजा अधूरी छोड़ कर ...भगवान को हाथ जोड़ कर ...पुजाही बांधने लगे और अलगनी पर फैलाया कुरता उतार कर ....गमछा झटकते हुए घर से बाहर निकल गए .उनकी दृष्टि अपने से चार फुट आगे तक ही थी ....वे बिना अगलबगल देखे ,तेज कदमों से चलते चले जा रहे थे .
नदी किनारे , मंदिर के बाहर बैठे ....पंडित जी सोच रहे थे ...वे गृहकलह की इस विपदा से कैसे निपटें ?
वे इसका कारण भी जानते थे लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे .' हारे को हरिनाम ' की तर्ज पर वे जब भी उदास या परेशान होते तो मंदिर में आकर बैठ जाते . उनका बड़ा लड़का बंगलौर में किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में बड़े पद पर था .पढ़ने में होशियार था .इंटर तक पढ़ने के बाद उसने घर छोड़ दिया .पता नहीं क्या क्या करके पढाई पूरी की और नौकरी पा गया . न घर से कुछ लेता था और न देता था .पांच साल से घर भी नहीं आया था .फोन से कभी कभार बात होती तो हूँ हाँ में जवाब देता था .खुद तो कभी फोन करता नहीं था .शादी की उम्र बीती जा रही थी लेकिन वो विवाह करना ही नहीं चाहता था .छोटा लड़का .....दसवीं पास कर दिल्ली भाग गया .क्या करता है कुछ पता नहीं .
दोपहर बाद पंडित घर लौटे .दरवाजे पर पंडिताइन बैठी उन्ही की राह देख रहीं थीं .पंडित को देख कर बोलीं .....यही कमी है तुममें ! कुछ भी कहो तो तुम भाग खड़े होते हो !! मैं भूखी प्यासी तुम्हारी राह देख रही हूँ .चलो भोजन करो .और पंडित हाँथ पैर धो कर चौके में जा बैठे .भोजनोपरांत वे खटिया पर लेटे और सो गए .दो घंटे पंडित सोते रहे अचानक हड़बड़ा कर उठ बैठे .उन्होनें बड़ा भयानक स्वप्न देखा था और उनका पूरा शरीर पसीने में डूबा था .वे उठ कर नल पर गए और हाँथ मुँह धोकर गटागट लोटा भर पानी पी गए .
कुछ देर बाद वे अपनी कोठरी में गए और वहाँ लोहे के ट्रंक को उलटने पलटने लगे .उनके हाँथ में एक कागज़ था .पंडित पढ़े लिखे थे और हिंदी ,अंग्रेजी ,
संस्कृत भाषा में उनकी सामान पकड़ थी .अंग्रेजी भाषा में लिखे उस कागज को कुछ देर तक देखते रहे
उसे लपेट कर जेब में रखा और बाहर आ कर खटिया पर विचारमग्न बैठ गए .
रात में भोजन करके ....बिस्तर पर लेटे ....पंडित जी स्थिर आँखों से छत को घूर रहे थे .पंडिताइन घर का काम खत्म कर उनके पास आकर बैठीं और बोलीं ...
.....क्या बात है ?आप सबेरे से ही कुछ अनमने से हैं .कउनो विशेष बात है ? ........" कल बताऊंगा " कह कर पंडित जी नें करवट बदल ली .
क्रमशः जारी 

Comments

Anil. K. Singh said…
अभी तक सबकुछ अच्छा है। देखते हैं आगे पंडित जी के साथ क्या होता है।