कितने रूपए ??? ......(समापन भाग )

 गतांक से आगे .....
एक खास बात है , इस कहानी में ....शायद ध्यान से पढ़ेंगे तो जान जायेंगे .वो बात ये है कि .....घर से बाहर रहने पर ....उदय भैया को कभी पैसे की कमी नहीं होती थी बल्कि उनके ऊपर तो जैसे पैसे की बारिश होती थी !!!!
हाँ तो उदय भैया हड़बड़ा कर उठे तो सामने एक दिगंबर बाबा को खड़े पाया .वे "वही बाबा जी " थे ,
जो हरिद्वार में मिले थे ...


उन्हें जगा कर ....बाबा एक दिशा की ओर चल दिए और उदय भैया उनके पीछे पीछे चलते हुए ....एक गुफा में पहुंचे .बाबा नें एक लाल द्रव एक लकड़ी की प्याली में उड़ेल कर उन्हें पीने को दिया और उसे पीते ही उदय भैया ....भूख ,प्यास ,शर्दी ,गर्मी ,सुख ,दुःख .
......सबसे मुक्त हो गए .
लगभग पांच साल तक भैया ....बाबाजी के सान्निध्य में विभिन्न प्रकार की योग साधनाओं का अभ्यास करते रहे .और एक दिन बाबाजी नें उनसे कहा .....
....." अब तुम मेरे आश्रम चले जाओ."
निर्देशानुसार ...भैया ,ऋषिकेश आश्रम पहुंचे .बहुत बड़ा आश्रम था . कई देशी विदेशी भक्त सैलानी यहाँ वहाँ आँख मूँदे बैठे थे .चारो तरफ आध्यात्मिक तरंग जैसी फैली थी .
उदय भैया ....आश्रम कार्यालय पहुंचे और जैसे ही उन्होंने वहाँ " बाबाजी " का पत्र दिया ......उनके लिए ऐसी व्यवस्था हुई जो उनकी कल्पना में ही थी .चलने के लिए ....ड्राइवर सहित शानदार कार .एक चौबीस घंटे का सेवक ,रहने के लिए शानदार सोफा ,बेड ,फ्रिज ,टी वी और आधुनिकतम सुख सुविधाओं से सुसज्जित कमरे .उन्हें एक महत्वपूर्ण पद भी मिला .
अब तो उदय भैया धर्म चर्चा और प्रचार प्रसार के लिए दूर दूर तक जाने लगे और पाँच साल में भइया ....अमेरिका ,इंग्लैण्ड ,जर्मनी ,ऑस्ट्रेलिया समेत जाने किन किन देशों का प्रवास और भ्रमण कर आए .
एक दिन .....प्रातः काल " ध्यान " करते समय ,दस सालों में पहली बार ....उदय भैया को " अपनी पत्नी ,बच्चों और घर " की याद आ गई और भैया ...बेचैन हो गए .जब उनकी उद्विग्नता बढ़ती गई तो उन्हें लगने लगा कि उन्हें तुरंत " बाबाजी " से मिलना चाहिए .और एक दिन अचानक भैया ....गंगोत्री की ओर चल पड़े .
गुफा में भैया ....बाबाजी के चरणों में पड़े थे और बाबाजी ...बड़े स्नेह से उनका सिर सहला रहे थे .
" क्या बात है ...उदय ?" .....बाबाजी नें पुछा .
अब उदय भैया को समझ नहीं आ रहा था कि वे अपनी बात कैसे कहें ?
और अंततः एक लम्बी चुप्पी के बाद ...भैया जी बोले
...." गुरुदेव !ये बताइए कि मैं गृहस्थ हूँ या सन्यासी ?
और बाबाजी नें कहा ...." उदय !तुम सन्यासी तो नहीं हो ....अभी तक तुम इस आश्रम के लिए ' दीक्षित ' नहीं हो .इसलिए तुम गृहस्थ ही हो ."
और जब यह प्रश्न पूछनें तुम यहाँ तक चले आए ...तो अब तुम ' घर ' वापस चले जाओ .अब लौट कर आश्रम जाने के स्थान पर तुम वापस घर लौटो .
और भैयाजी जैसे खाली हाँथ घर से चले थे ...वैसे ही दस साल बाद वापस लौटे .
उदय भैया घर लौटे तो चारो तरफ हड़कंप मच गया .दस साल तक गुमशुदा रहने पर लोगों नें उन्हें मृत मान लिया था .लेकिन उनकी पत्नी को उनके गायब होने के तीन दिन बाद ...रात में एक स्वप्न दिखा ...जिसमें एक दिव्य पुरुष उससे कह रहे थे ..." चिंता न कर ....एक दिन वह लौटेगा !!!"
 और फिर उसपर किसी की बात का कोई असर न हुआ .वह बच्चो को बताती रही ...पिता जी बाहर गए हैं .....और अपने पति को सामने देख वह भाव विभोर हो गई .
एक सप्ताह के अंदर ....उदय भैया नें अपने खंडहर हो चुके मकान के पुनर्निर्माण की घोषणा की .मकान बन गया .बच्चों के नाम अलग अलग खातों में पर्याप्त धन जमा हो गया .पत्नी के पास वस्त्राभूषणों की बाढ़ आ गई .कहते हैं ...उदय भैया के पास कोई चमत्कारी शक्ति थी ...वो जितना चाहते उतना धन ...जाने कहाँ से प्रकट हो जाता था .भैया पूछने पर मौन धारण कर ऊपर आसमान देखने लगते .
और एक दिन भैया फिर गायब हुए और आज तक नहीं लौटे .पता नहीं कहानी सच है या झूठ ....लेकिन किंवदंतियों में लोग इसे सच मानते हैं .

Comments

Anil. K. Singh said…
लगता है इस कहानी से परिचित हैं। हमने नहीं सुना था। अच्छा लगा। नया पन है। नये तरह की कहानी है।